रायपुर. घर से माता-पिता अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए स्कूल भेजते हैं, लेकिन जब स्कूल में कॉपी और किताबों की जगह बच्चों के हाथों में बर्तन हों और बच्चे बर्तन धो रहे हों तो इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा. सरकार शिक्षा के गुणात्मक विकास का दावा जरुर करती है, पर मैदानी स्तर पर इसकी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है. सरकार स्कूलों के माध्यम से भोजन दे रही है. जिससे गरीब के बच्चे भी स्कूल में पढ़ाई पर ध्यान दे. लेकिन स्कूल में बच्चों को भोजन देने के बाद उन्हें झूठे बर्तन धुलवाए जा रहे हैं.

सरकारी स्कूल में मासूम बच्चियों से बर्तन धुलवाया जा रहा है. जबकि स्कूल में बकायदा इस काम के लिए कर्मचारी नियुक्त किए जाते है. अब आपकों सच्चाई की को बयां करती हुई एक वीडियो दिखाते है. जिसमें साफ दिख रहा है कि किस तरह से बच्चियां नल में छल्ली लगी थालियों को धुल रही हैं. एक युवक छत्तीसगढ़ी भाषा में उनसे कुछ सवाल जवाब करता है. जिसमें युवक कहता है यहां खाना बनाने वाला कोई नहीं है क्या. जिसके जवाब में बच्चियां कहती है हां है. बच्चियां कह रही है कि यहां खाना बनाने वाले लोग बर्तन नहीं धुलते है वो ही लोग हर रोज बर्तन धुलते है.

दरअसल ये पूरा मामला कही और का नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का है. ग्राम पंचायत गोपालपुर के हीरापुर स्कूल का है. यहां थालियां धो रही बच्चियों में एक दो नहीं बल्कि 4 बच्ची है. इन्हें देखकर ऐसा लग रहा है कि इनकी उम्र मजह 6 से 7 साल की होगी. जिन्हें किताबी ज्ञान देने की बजाय बर्तन धोने का ज्ञान दिया जा रहा है. शिक्षा व्यवस्था के सुधार के लिए जिम्मेदारों के द्वारा कई तरह की बातें कहीं जाती रही हैं. लेकिन आज भी जमीनी हकीकत इससे कोसों दूर है.

ऐसे में अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या प्रशासन इन स्कूलों के शिक्षकों पर कोई कार्रवाई करती है या नहीं या फिर इसी तरह इस पूरे रवैये को देखती रहेगी. आखिर कब तक इन नन्हें नन्हें हाथों में किताबों की जगह बर्तन देते रहेंगे. और स्कूल प्रबंधन इन गरीब बच्चियों का फायदा उठाती रहेगी. और सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेगी.

देखिए वीडियो…

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