मुंबई. मार्केट रेगुलेटर सेबी को मिडकैप और स्मॉलकैप (midcap and smallcap) में रिस्क बढ़ने का खतरा नजर आ रहा है यही वजह है कि सेबी ने संबंधित कंपनियों से और डिस्क्लोजर मांगे हैं. इसको और आसान शब्दों में समझते हैं. एमएफआई सेबी साथ मिलकर लगातार बातचीत कर रहे हैं कि लगातार एसआईपी के जरिए पैसा आ रहा है. वो ज्यादा मिडकैप और स्मॉलकैप फंड में जा रहा है. लार्जकैप फंड (large cap fund) में निवेश न के बराबर हो रहा है. इसलिए एक रिस्क बना हुआ है. एमएफआई और संबी चाहती है छोटे इन्वेस्टर्स को भारी नुकसान न हो जाए, इसीलिए डिस्क्लोजर नियमों में बदलाव किया जा सकता है. अप्रैल से इन्हें लागू किया जा सकता है.

लिक्विडिटी और ट्रैकिंग

अगर इन्वेस्टर्स पैसा निकालते है तो एक इन्वेस्टर कितनी जल्दी और कब तक पैसा निकाल सकता है, क्योंकि लार्ज कैप शेयरों को बेचकर तो तुरंत पैसा मिल जाता है. इन शेयरों में वॉल्युम हाई रहता है. लिक्विडिटी की कोई समस्या नहीं होती है. इसकी ट्रैकिंग कैसे होगी इसके लिए भी एडवाइजरी जारी होगी. इसकी ट्रेकिंग डेली पर हो सकती है. इन सभी कदमों से एक इन्वेस्टर्स को ये अंदाजा लग जाएगा कि फंड से पैसा कितने में निकल आएगा.

वैल्युएशन

जैसे शेयरों के वैल्युएशन की बात होती है. वैसे ही फंड के वैल्युएशन की बात होनी चाहिए. अब बात हो रही है कि पोर्टफोलियो के एग्रीग्रेड वैल्यु की जानकारी दी जानी चाहिए. हाई PE वाले शेयरों में निवेश किया जा रहा है या फिर लो PF वाले शेयरों में.

शेयर की जानकारी

चौथा और सबसे अहम ये फंड के पास कौन से शेयर (Share) है. जैसे मिडकैप और स्मॉलकैप (midcap and smallcap) फंड में सारे मिडैकप और स्मॉलकैप शेयर नहीं होते है सब मिक्स होता है. हालांकि, अभी तक इसकी जानकारी दी जा रही है. लेकिन अब इसे सही तरीके से बताना जरूरी होगा.

फंड (Fund) की वॉलेटिलिटी

फंड की वॉलेटिलिटी के बारे में भी बताना होगा. इससे इन्वेस्टर्स को ये पता चलेगा कि इसमें कितना रिस्क है. ज्यादा या कम.