भारत विविधतापूर्ण देश है. यह विविधता पर्व और त्योहारों में नजर आती है, जो एकता के साथ अनेकता का भी संदेश लिए होती है. इन त्योहारों में से एक दशहरा का अपना अलग महत्व है. अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाए जाना वाला यह पर्व विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग तरीके आयोजित किया जाता है. आज हम संक्षिप्त में बता रहे हैं कहां किस तरह मनाया जाता विजयादशमी पर्व…

बस्तर का दशहरा

जब दशहरा की बात आती है, तो छत्तीसगढ़ के बस्तर उत्सव का नाम सबसे पहले आ जाता है. दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह उत्सव 75 दिनों तक चलता है. यहां देश-विदेश के लाखों लोग आते हैं. बस्तर दशहरा में भाग लेने का अवसर एक सम्मान माना जाता है और देवी दंतेश्वरी से सर्वोच्च आशीर्वाद माना जाता है.

महाराष्ट्र

नवरात्रि के नौ दिन मां दुर्गा को समर्पित रहते हैं, दसवें दिन ब’चे अपनी पढ़ाई में आशीर्वाद पाने के लिए ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना करते हैं. मां सरस्वती के तांत्रिक चिह्नों की पूजा होती है. सिलंगण के नाम से सामाजिक महोत्सव के रूप में भी इसको मनाया जाता है.

पंजाब

दशहरा के दिन आगंतुकों का स्वागत पारम्परिक मिठाई और उपहारों से किया जाता है. यहां भी रावण-दहन के आयोजन होते हैं. लेकिन संयुक्त राजधानी चंडीगढ़ में पटाखों का उपयोग नहीं किया जाता है. उसके स्थान पर पटाखों के साउंड इफेक्ट का उपयोग किया जाता है.

कर्नाटक

मैसूर का दशहरा कौन नहीं जानता. पूरे भारत में प्रसिद्ध है. हाथियों का शृंगार कर पूरे शहर में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है. मैसूर महल को दीपमालिकाओं से दुल्हन की तरह सजाया जाता है. शहर में लोग टार्च लाइट के संग नृत्य और संगीत की शोभायात्रा का आनंद लेते हैं.

गुजरात

अनूठी परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध गुजरात में दशहरा लोगों के लिए खास दिन होता है. यहां रावण का पुतला दहन के साथ यहां का प्रसिद्ध व्यंजन फाफड़ा-जलेबी का आनंद लिया जाता है. गुजरात में हर त्यौहार के साथ कोई न कोई व्यंजन जुड़ा हुआ है.

मध्यप्रदेश

दशहरा के दिन परम्परा तरीके से शस्त्रों की पूजा की जाती है. रावण दहन के बाद लोग एक दूसरे को शमी के पत्ते को सोना समझकर देने का प्रचलन है. कई जगहों पर इसके वृक्ष की पूजा भी की जाती है. गिलकी (तोरई) के भजीए बनाए जाते हैं.

हिमाचल प्रदेश

कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है. स्त्रियां और पुरुष सभी सुंदर वस्त्रों से सज्जित होकर वाद्य यंत्रों को लेकर बाहर निकलते हैं. पहाड़ी लोग ग्रामीण देवता का धूमधाम से जुलूस निकाल कर पूजन करते हैं. दशमी के दिन शोभा निकाली जाती है.

उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड

सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी के दिन प्रात: और सायंकाल दुर्गा की पूजा में व्यतीत होते हैं. दशमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. दिल्ली दशमी वाले दिन रावण के बड़े-बड़े पुतलों का दहन कर लोग एक दूसरे को गले मिल दशहरे की शुभकामनायें देते हैं. रामलीला का आयोजन खास होता है.

तमिलनाडु

विवाहित औरतों को चूडिय़ां, बिंदी और अन्य साज श्रृंगार के सामान दिए जाते हैं. यहाँ सबसे आकर्षक परंपरा होती है, गोलू की परंपरा. इस परंपरा में गुडिय़ों को जिन्हें गोलू कहते हैं,उन्हें सीढिय़ों में सजाया जाता है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी पूर्वजों से एक दूसरे को मिलती हैं.

बंगाल, ओडिशा और असम

दुर्गा पूजा के दसवें दिन पश्चिम बंगाल में बिजॉय दशमी मनाया जाता है. पुरुष आपस में आलिंगन करते हैं, जिसे कोलाकुली कहते हैं. स्त्रियां देवी के माथे पर सिंदूर चढ़ाती हैं, आपस में भी सिंदूर लगाकर सिन्दूर के रंग से खेलती हैं. ओडिशा और असम मे 4 दिन तक त्योहार चलता है.

कश्मीर

अत्यंत पुरानी परम्परा के अनुसार नौ दिनों तक लोग माता खीर भवानी के दर्शन करने के लिए जाते हैं. ऐसा माना जाता है कि आश्विन शुक्ल दशमी को तारा उदय होने के समय विजय नामक मुहूर्त होता है. यह काल सर्वकार्य सिद्धिदायक होता है. इसलिए भी इसे विजयादशमी कहते हैं.

तेलंगाना, आंध्र प्रदेश

दशहरा नौ दिनों तक चलता है जिसमें तीन देवियां लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा करते हैं. यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा या कला संबंधी नया कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता है.

राजस्थान

देशभर में दशहरे का त्योहार धूमधाम से मनाते हैं, लेकिन राजस्थान में एक समाज विशेष लंकापति के दहन पर शोक में डूब जाते हैं. दरअसल, जोधपुर का श्रीमाली ब्राह्मण समाज खुद को रावण का वंशज मानता है और यह लोग मंडोर को रावण का ससुराल मानते हैं. रावण के वंशज गोधा श्रीमाली समाज के लोग इस दिन को शोक के रूप में मनाते हैं.