Dussehra Special: दशहरा को असत्य पर सत्य की जीत के रूप में मनाया जाता है. रावण दहन के बाद लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, और विजयादशमी की बधाई और शुभकामनाओं के साथ विशेष सोने की पत्तियां बांटते हैं. विजयादशमी के दिन सोने की पत्तियां बदल-बदलकर आशीर्वाद लेने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.

इन पत्तियों को सोने की बेल्ट के नाम से जाना जाता है. आखिर दशहरे पर क्यों दी जाती है सोने की पत्ती? ऐसा माना जाता है कि लंका पर आक्रमण करने से पहले भगवान श्री राम ने इसी वृक्ष के सामने सिर झुकाकर विजय की प्रार्थना की थी. उन्होंने इन पत्तों को छुआ, जिसके परिणामस्वरूप रावण पर उनकी विजय हुई. इसलिए, सदियों से यह माना जाता रहा है कि विजयादशमी के दिन सोने के प्रतीक के रूप में शमी की पत्तियों का आदान-प्रदान करने से सुख, समृद्धि और जीत मिलती है.

एक पौराणिक कथा के अनुसार, अयोध्या में वरतंतु नामक ऋषि ने कौत्स का पालन-पोषण किया और उन्हें अपना सारा ज्ञान प्रदान किया. ज्ञान प्राप्त करने के बाद जब कौत्स आश्रम छोड़ने लगे तो उन्होंने महर्षि वर्तन से गुरु दक्षिणा मांगने का अनुरोध किया. हालाँकि उन्होंने अपने शिष्य के इस अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया, बार-बार अनुरोध करने पर गुरु ने उनसे 14 करोड़ सोने के सिक्कों की मांग की. तब कौत्स ने सोने के सिक्कों के लिए अयोध्या के राजा राम से संपर्क किया.

कौत्स की इस समस्या को हल करने के लिए भगवान राम ने उन्हें शमी वृक्ष के नीचे प्रतीक्षा करने को कहा. तीन दिन के बाद उस पेड़ से सोने के सिक्कों की बारिश होने लगी और कौत्स गुरु दक्षिणा के लिए 14 करोड़ सिक्के लेकर वहां से चले गए. बाद में इन सिक्कों को गरीबों में बांट दिया गया. दरअसल धन के देवता कुबेर ने भगवान श्री राम की कृपा से यह चमत्कार किया था. (Dussehra Special)