अनिल सिंह कुशवाह, भोपाल.पंचतंत्र की एक लोकप्रिय कहानी है, और शायद ही कोई ऐसा हो, जिसने ये कहानी न सुनी हो। जब कछुआ और खरगोश में दौड़ हुई तो कछुआ इसलिए जीत जाता है, क्योंकि खरगोश दौड़ के दौरान सो गया था। समय के साथ नई कहानी भी सामने आई। खरगोश को अपने पूर्वजों की गलती का अहसास हुआ तो इसे सुधारने के लिए फिर रेस की गई। इस बार खरगोश बिना रुके तेज चलता रहा और रेस जीत गया। ये तो हुई पंचतंत्र की कहानी, लेकिन क्या ‘राजतंत्र’ में भी कुछ ऐसा हो रहा है ?

पहली कहानी को 1992 के विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष में देखा जा सकता है। ‘बाबरी विध्वंस’ के बाद बर्खास्त हुई बीजेपी की सुंदरलाल पटवा सरकार को हिन्दू लहर पर इतना भरोसा था कि पूरी ताकत से चुनाव में उतरने की बजाय बीजेपी के अधिकांश नेताओं ने शपथ की तैयारी शुरू कर दी थी। बाबूलाल गौर सरीखे कई मंत्री फिर से मंत्री बनने के लिए नए शूट सिलवा चुके थे। लेकिन, जब नतीजे सामने आए तो समझ आया कि अति आत्मविश्वास के कारण रेस हार गए। बीजेपी ने 10 साल बाद बिना रुके तेज दौड़कर 2003 में कांग्रेस से फिर सत्ता वापस ले ली। तब से बीजेपी सत्ता में ही है।

सवाल यह है, क्या खरगोश अब भी इतना कॉन्फिडेंट है कि वह मानकर चल रहा है कि कछुआ बहुत पीछे है और रेस जीत ही नहीं सकता, या फिर कछुआ को भी लगता है कि जब सत्ता विरोधी लहर है तो क्यों तेज दौड़ा जाए, रेस तो उसे ही जीतना है ?

मध्यप्रदेश में कुछ ही महीनों में नई सरकार तय होनी है। ऐसे में हर कोई इसी ‘उधेड़बुन’ में लगा हुआ है कि अगली सरकार किसकी बनेगी ? यानी ‘उधेड़’ रहा है और ‘बुन’ रहा है। सत्ता के तीसरे कार्यकाल में बीजेपी का जो चाल, चरित्र और चेहरा दिखा, उससे हर किसी को संशय है कि क्या चौथी बार भी भाजपा मध्य प्रदेश में सरकार बना पाएगी ? ऐसे में सबकी नजर कांग्रेस पर है। इन संभावनाओं पर कांग्रेस क्षेत्रीय और जातीय समीकरणों को ‘केलकुलेट’ करते हुए कितने मजबूत उम्मीदवार खड़े करती है ?मुख्यमंत्री-मंत्रियों को उनके ही विधानसभा क्षेत्र में बांधे रखने का उसके पास क्या प्लान है ? प्रचार की धार कैसी रहती है ? टिकिट बंटने से लेकर नेताओं की एकजुटता और पोलिंग बूथ तक सधी हुई रणनीति कैसी रहती है ?

लेकिन, यह उतना आसान भी नहीं है। या फिर यह कहें कि यहीं आकर 2008 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस औंधे मुंह गिर पड़ी थी। तब का प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व यदि ’10 जनपथ’ पर भरोसा करता तो सुरेश पचौरी शायद मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री होते। लेकिन, कांग्रेस में कालीदास की कमी नहीं है। यानी, जिस डाल पर बैठे, उसी को काटते रहे। ऐसे में जब 2013 के विधानसभा चुनाव हुए तो सत्ता से नाराज होने के बावजूद मतदाता यह विश्वास नहीं कर सका कि प्रदेश में बीजेपी का कोई विकल्प भी है ! कांग्रेस को अपने विपक्ष में होने का अहसास ही बहुत देर से हो पाया। इस कारण सड़क पर भी कांग्रेस की कोई प्रभावी भूमिका दिखाई नहीं दी।

पिछले दिनों दिग्विजय सिंह के देशद्रोही होने के तमगे के विरोध में या कमलनाथ की ताजपोशी पर जैसा जलवा, मजमा और शक्ति प्रदर्शन भोपाल में दिखाई दिया, वह ऐतिहासिक था। इतने लोकप्रिय नेता, ऐसा व्यापक समर्थन और सरकार के खिलाफ ऐसा जज्बा, जब यह सब है तो फिर ऐसी क्या कमी है जो कांग्रेस पिछले 15 साल से प्रदेश की सत्ता से दूर है, इस पर कांग्रेस आलाकमान को गंभीरता से विचार करना होगा ?

कांग्रेस के सामने अब 2018 के विधानसभा चुनाव फिर हैं। लेकिन कांग्रेस की धीमी चाल मतदाताओं को फिर कंफ्यूज कर सकती है। जबकि, बीजेपी तैयारियों में इस बार भी बहुत आगे नजर आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ‘जन विश्वास’ रथ लेकर विधानसभा क्षेत्रों में निकले हुए हैं। सभाओं में भी भीड़ फिर से उमड़ रही है। लोगों में सत्ता को लेकर जो नाराजगी है, उसे सरकार और संगठन, दोनों दूर करने की कोशिश में जुटे नजर आ रहे हैं। 88 लाख परिवारों को टारगेट कर मुख्यमंत्री जनकल्याण योजना भी लांच की जा चुकी है। मुफ्त बिजली और मुफ्त आवास की सौगात भी दे दी गई है।

शिवराज की ये जन आशीर्वाद यात्रा आचार संहिता लगने से पहले प्रदेश की सभी 230 विधानसभा क्षेत्रों में पग भर लेगी। इस दौरान मुख्यमंत्री की 700 से ज्यादा छोटी बड़ी सभाएं होंगी। बीजेपी का संगठन भी बूथ स्तर पर अपनी टीमें गठित कर कार्यकर्ताओं को गांव और मोहल्लों की ओर रवाना कर चुका है। जबकि, कांग्रेस अब भी कमराबंद बैठकों से बाहर नहीं निकल पाई हैं। मीडिया से ‘गुड़ खाएं, लेकिन गुलगुले’ से परहेज जैसी स्थिति बनी हुई है।

कांग्रेस नेताओं ने बयानों और ट्वीटर के जरिए शिवराज की जन आशीर्वाद यात्रा पर सवाल जरूर उठाए। दावा किया, पीछे पीछे कांग्रेस की जन जागरण यात्रा चलेगी और सरकार की पोल खोलेगी। कांग्रेस की यह यात्रा पहले दिन तराना (उज्जैन) में तो हिट रही, लेकिन बाकी जिलों या विधानसभा क्षेत्रों में अप्रभावी है। या फिर यह कहें कि हिट होने के लिए फिट नहीं दिख रही। सतना में तो वरिष्ठ नेता राजेन्द्र सिंह की उपेक्षा से आहत कांग्रेस कार्यकर्ता अपने ही विधायक नीलांशु चतुर्वेदी के खिलाफ सड़कों पर आ गए। ऐसे में कमलनाथ जब टिकिट बांटेंगे तो दावेदारों, समर्थकों और गुटों में कहां-कहां और कैसी स्वीकार्यरोक्ति दिखेगी ? यही रेस का ‘टर्निंग पाइंट’ भी होगा ?

खैर, राज्य की राजनीति में पहली बार सक्रिय हुए कमलनाथ अभी संगठन को व्यवस्थिति करने में उलझे हुए हैं। उन्हें प्रदेश में अपने तूफानी दौरे शुरू करने के लिए राहुल गांधी के आने का इंतजार है। लेकिन, क्या ये इंतजार 4 महीने पहले कार्यकर्ताओं को निराश नहीं कर रहा है ?

कमलनाथ उद्धयोगपति होने के साथ ‘केलकुलेट पॉलिटिक्स’ के चतुर खिलाड़ी माने जाते हैं। केंद्र की राजनीति में इस कारण कई बार कांग्रेस के संकटमोचक बन चुके हैं। यही कारण है, कमलनाथ को अपने कार्यकर्ताओं से ज्यादा सपा, बसपा और जीजीपी जैसे दलों के जरिए जीत की संभावना ज्यादा नजर आ रही है। ये ‘मैनेजमेंट’ कमाल दिखा भी सकता है। लेकिन, समझौते बहुत करने पड़ते हैं।

‘टीम कमलनाथ’ के एक मेंबर के अनुसार बसपा सुप्रीमों मायावती भले ही मध्यप्रदेश में 40 सीटें मांगकर कांग्रेस के सामने मुश्किल खड़ी कर रहीं हैं। लेकिन, उम्मीद है साहब (कमलनाथ) बेहतर रास्ता निकाल लेंगे। बैसे, बसपा के साथ जाने के दो विकल्प हैं। पहला ये है कि बीजेपी के खिलाफ चुनाव से पूर्व बसपा के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़े। दूसरा विकल्प बीजेपी को नुकसान पहुंचाने के लिए उसके उम्मीदवारों के खिलाफ उसी जाति के प्रत्याशी को बसपा से खड़ा किया जाए। ताकि बीजेपी के वोटों को बांटकर जीत हासिल की जा सके।

पिछले तीन विधानसभा चुनावों को देखें तो बसपा की ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी, रीवा व सतना जिलों में दो से लेकर सात सीटों पर जीत हुई थी। भिंड, मुरैना, ग्वालियर, दतिया, शिवपुरी, टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना, दमोह, रीवा, सतना की कुछ सीटों पर दूसरे स्थान पर रहकर भी अपनी ताकत दिखाई। जिन सीटों पर बसपा ने जीत हासिल की वहां 0.35 फीसदी से लेकर करीब 11 फीसदी वोटों के अंतर से प्रतिद्वंद्वी प्रत्याशियों को शिकस्त दी। लेकिन, कांग्रेस और बसपा के वोट बंटने के कारण इन जिलों की करीब दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर दोनों को नुकसान झेलना पड़ता है। कमलनाथ क्षेत्रवार इसी ‘गणित’ को सेट करना चाह रहे हैं। सपा-जीजीपी के लिए भी ‘आकर्षक ऑफर’ हैं। फिलहाल, मध्यप्रदेश में रेस जारी है..!