रायपुर.  शिक्षा के अधिकार 2009 को लागू करने को लेकर हुई संगोष्ठी में शिक्षाविदों ने एक सुर में कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा पांचवीं और आठवीं की परीक्षा लेने का फैसला आरटीई कानून का उल्लघंन है. शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार का ये फैसला आरटीई कानून की मूल आत्मा के खिलाफ है. शिक्षाविदों ने प्रदेश में बंद होते सरकारी स्कूलों पर भी चिंता जताई.

काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट ने प्रदेश में प्राथमिक शिक्षा को एक अध्यययन किया जिसमें पाया कि आरटीई को लागू करने में छत्तीसगढ़ बेदह पीछे है. अध्ययन के बाद  देश में शिक्षा के अधिकार कानून यानि आरटीई के लागू करने को लेकर काम करने वाली एजेंसी नेशनल आरटीई फोरम ने इस पर चर्चा कराई कि हालात कैसे सुधारे जा सकते हैं.

इसमें बोलते हुए सोशल काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के सचिव प्रोफेसर अशोक पंकज ने कहा कि छत्तीसगढ़ में जनता सरकारी स्कूल पर निर्भर है. लेकिन सरकारी स्कूल बंद हो रहे हैं जो बेदह चिंताजनक है. उन्होंने इसे रोकने की दरकार बताई. पंकज ने कहा कि शिक्षक को ठेके पर रखा जा रहा है. बस्तर में आवासीय विद्यालय बहुत कारगर हैं लेकिन यहां अनुदेशक को केवल एक साल के लिए कांट्रेक्ट पर रखा जाता है. उन्होंने कहा कि इससे शिक्षा व्यवस्था की हालात बिगडी है. उन्हें नियमित किए जाने की ज़रूरत है.

वहीं संस्था की डॉक्टर सुमित्रा मित्रा ने कहा कि 35 प्रतिशत अप्रशिक्षित शिक्षक हैं. दुर्गम इलाकों में स्थित और खराब है. उन्होंने कहा कि शिक्षकों को प्रशिक्षण की ज़रूरत है. सुमित्रा मित्रा ने प्रदेश में माध्यमिक स्कूलों की कम संख्या पर भी चिंता जताई. उन्होंने कहा कि प्रदेश में माध्यमिक स्कूलों की औसत दूरी 15 किलोमीटर है जो काफी ज़्यादा है. इसी वजह से बच्चे प्राथमिक स्कूल की पढ़ाई के बाद स्कूल छोड़ देते हैं.

राष्ट्रीय आरटीई फोरम के संयोजक अमरीश राय ने कहा कि पांचवी और आठवीं की परीक्षा कराने का सरकार का फैसला बेदह चिंताजनक है. उन्होंने कहा कि सरकारी स्कूलों को बंद करके स्कूलों को प्राइवेट सेक्टर को देने की तैयारी की जा रही है जो बेदह खतरनाक कदम है.