Egg-Chicken: अंडा-चिकन (मुर्गा) हमेशा सोशल मीडिया के निशाने पर रहते हैं. हर दिन सोशल मीडिया पर अंडे और चिकन के बारे में कोई ना कोई अफवाह फैलाई जाती है.

पोल्ट्री बाजार भी अपने कारोबार की परेशानियों से कम सोशल मीडिया पर आने वाली इन अफवाहों से ज्यादा जूझता है. अफवाहों को लेकर होने वाली परेशानी इतनी बड़ चुकी है कि पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया (पीएफआई) जलद ही इस संबंध में सख्त कदम उठा सकती है.


पीएफआई के अध्यक्ष रनपाल डाहंडा ने कहा सोशल मीडिया पर जो लोग अंडे-चिकन (Egg-Chicken) के बारे में एबीसीडी तक नहीं जानते ऐसे लोग मुर्गे-मुर्गियों की बीमारी, उनको दी जाने वाली दवाई पर ज्ञान देते हैं. इतना ही नहीं प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए दवाईयां इस्तेमाल किए जाने का दावा करते हैं. जो की एकदम गलत है. हम जल्द ही इस बारे में एक रणनीति बनाने जा रहे हैं. हम इन अफवाहों का जवाब भी देंगे और अफवाह फैलाने वालों पर कार्रवाई की मांग भी करेंगे. क्योंकि जो लोग अफवाह फैलाते हैं वो ये नहीं जानते कि 2.5 लाख करोड़ वाला पोल्ट्री सेक्टर देश की तरक्की में बड़ा योगदान देता है. और ज्यादा रोजगार देने वालों में भी आगे है.
अंडे और चिकन (Egg-Chicken)के प्रोडक्शन को लेकर भी सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाई जाती है. अंडे-चिकन के बारे में कहा जाता है कि मुर्गी से ज्यादा अंडे लेने और मुर्गे का वजन बढ़ाने के लिए दवाईयों का इस्तेमाल किया जाता है. जबकि बड़ी ही सामान्य सी बात है कि मुर्गी 24 घंटे में एक अंडा देती है. ये साइंस से भी प्रूफ है. अब कैसे संभव है कि दवाई या इंजेक्शन देने से मुर्गी एक की जगह दो अंडे देने लगेगी.
इसी तरह चिकन के लिए मुर्गों में एंटी बॉयोटिक्स दवाई का इस्तेमाल करने की अफवाह उड़ाई जाती है. जबकि एंटी बॉयोटिक्स कोई भी हो वो बहुत महंगी होती है. अगर बिना किसी बीमारी के एंटी बॉयोटिक्स खिलाएंगे तो चिकन की लागत बढ़ जाएगी. बीमारी न होने पर एंटी बॉयोटिक्स का मुर्गे पर बुरा असर भी होगा. जब चिकन का कारोबार मुश्किल से छह-सात रुपये किलो पर होता है तो ऐसे में पोल्ट्री फार्मर क्यों अपने मुर्गों को एंटी बॉयोटिक्सि खिलाएगा.