पुरषोत्तम पात्र, गरियाबंद। वर्ष 2008 में अस्तित्व में आए उदंती सीता नदी टाइगर रिजर्व की पहचान बन भैंसें के नाम से होती है,पर पिछले कुछ वर्षो से यंहा हाथियों ने डेरा जमा लिया है. 1842 वर्ग किलोमीटर के वृहद क्षेत्रफल में फैले इस घने जंगल वाले टाइगर रिजर्व के एक तिहाई भागों में 100 गांव में 60 हजार की आबादी भी मौजूद है.

ऐसे में यंहा मानव हाथी द्वन्द अक्सर देखने को मिलता है. गांव में जब हाथी प्रवेश करते हैं, तो इस द्वनद के बीच जान जोखिम में डाले वन अफसर की भूमिका कैसे होती ही. आइए हम आपको बताते हैं.

उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व में 8 रेंज है. उनमें से 5 रेंज ऐसे हैं, जहां हाथियों की सर्वाधिक आवाजही होती है. उन्ही में से एक घनी आबादी वाले रेंज अरसिकन्हार में है. शाम के साढ़े 5 बजे अरसिकन्हार बस्ती के मुहाने पर 30 से 32 हाथियों का दल पहुंचा था. शाम ढलने को थे, ऐसे में काले हाथी जल्द ही नजरों से ओझल हो गए. चिंघाड़ और पेड़ों को तोड़ने की आवाज और हल्के लाइट की रोशनी से हमें पता चला कि हाथी मुख्य सड़क से लेकर गांव के तालाब तक फैले हुए हैं.

शाम को मुनादी करा दी गई थी. हाथी मित्र और वन अफसर मौके पर मौजूद थे. हाथी गांव की ओर बढ़ रहे थे, लेकिन अफसर और ग्रामीण उन्हें रोक रहे थे. रोकने के लिए जगह जगह आग जलाए गए थे. हाथी मित्र और ग्रामीण बराबर उन पर नजर रख रहे थे. आग की रोशनी देख हाथी गांव की तरफ आगे बढ़ना तो बंद किए, लेकिन जंगल की ओर नहीं लौटे थे. मुख्य रास्ते पर दोनों छोर पर आवाजही रोक दी गई थी. 3 घंटे तक हाथी और मानव द्वंद चलता रहा. फिर अंततः अफ़सरों के देशी जुगाड़ से हाथी को जंगल की ओर लौट गए.

अप्रैल 2019 में ओडिशा से दो दंतैल इस जंगल में पहुंच कर रहवास का मुयाना कर लौटे थे, फिर 2020 में हाथियों का बड़ा झुंड पहुंच गया. टाइगर रिजर्व के अलावा गरियाबन्द धमतरी सामान्य वन मंडल में चन्दा और सिकासेर नाम के दो दल सक्रिय हो गए.

फिलहाल सिकासेर दल के 30 से 32 हाथी अभ्यारण्य के तोरेंगा, कुल्हाड़ीघाट, सीतानदी, रिसगांव और अरसिकन्हार इलाके में घूम रहे हैं. अब तक हाथियों ने 8 लोगों को मौत के घाट उतार चुका है. उसमें से 10 माह पहले तक 3 मौत इसी अभ्यारण्य इलाके में हुई है.

इन सब के बावजूद हाथी की प्रवित्ति और मजबूरियों के आगे वन अमले के पास हाथी को खदेड़ने केवल देशी जुगाड़ है. कुछ ट्रैकिंग डिवाइस, वाकी टॉकी, लीड लाइट के अलावा हाथों से तैयार किया गया. बांस का डंडा और उसमे फंसा कर लाइट देने वाले फटाको के सहारे हाथी को बस्ती से खदेड़ने का काम करते हैं. देशी जुगाड़ ही कारगर साबित हो रहा है.

मानव हाथी द्वन्द में ट्रैकिंग यूनिट की भूमिका अहम होती है. हर रेंज में 8 से 10 ट्रेकिंग दल होते हैं, जो हाथियों के 24 घण्टे की गतिविधियों पर नजर बनाए रखते हैं. यंहा मौजूद महुआ तेंदू फल पेड़ के छाल के अलावा घने जंगलों के बीच बसे आबादी द्वारा बोए धान और मक्का का फसल हाथियों का पर्याप्त चारा हो जाता है.

परिक्षेत्र के भीतर पशुओं के लिए बनाए गए तालाबों में जी भर के मस्ती और पीने का पानी अब इन्हें यंहा बसने को मजबूर कर देता है. जंगल ही ठिकाना बना हुआ है. ऐसे में इन्हें अपने घरों से खदेड़ पाना नामुमकिन हो गया है. अब केवल जंगलों में ठिकाना बना कर रहने वाले लोग कैसे महफूज रहें, उसकी चिंता में दिन भर अमला रहता है.

देशी जुगाड़ के बीच टेक्नोलॉजी के नाम पर केवल एक ड्रोन कैमरा, रेडियो वेब्स से काम करने वाले 4 सायरन सिस्टम के भरोसे सभी की सुरक्षा निर्भर हैं. हाथी से हुए नुकसान कि भरपाई, उनके बेहतर रहवास हो या फिर ट्रैक्रर पर होने वाले खर्च के लिए अब तक महज 90 लाख ही सरकार ने मंजूर किए हैं.

देखिए ग्राउंड रिपोर्ट-

https://youtu.be/McQNDiFXpJ0

Read more- Health Ministry Deploys an Expert Team to Kerala to Take Stock of Zika Virus