हेमंत शर्मा, देवास। मध्यप्रदेश की नौकरशाही पर फिर सवाल खड़े हो गए हैं। यहां वर्तमान अपर कलेक्टर शोभाराम सिंह सोलंकी पर एक आदिवासी विधवा महिला की 32 बीघा जमीन हड़पने का गंभीर आरोप लगा है। मामला सिर्फ भ्रष्टाचार का नहीं, बल्कि सत्ता के दुरुपयोग और आदिवासी अधिकारों की खुली लूट का है। आरोप के मुताबिक, वर्ष 2023 में जब शोभाराम सोलंकी SDM बागली के पद पर थे, तब उन्होंने पवित्रा बाई सिसोदिया नामक आदिवासी महिला और उनके बेटों मनीष व रोहित सिसोदिया की पुश्तैनी जमीन को अपनी पत्नी कमलाबाई सोलंकी के नाम पर दर्ज करवा लिया। पवित्रा बाई का कहना है कि यह रजिस्ट्री फर्जी दस्तावेज़ों और तहसीलदार-रजिस्ट्रार की मिलीभगत से की गई, जिससे परिवार की पुश्तैनी जमीन प्रशासनिक दबदबे के चलते छीन ली गई।
आज तक न कोई FIR दर्ज हुई और न कोई कार्रवाई
पीड़ित परिवार पिछले दो सालों से न्याय के लिए भटक रहा है। उन्होंने 181 सीएम हेल्पलाइन, जनसुनवाई, और कलेक्टर ऑफिस में कई बार आवेदन दिए, लेकिन आज तक न कोई FIR दर्ज हुई और न कोई कार्रवाई। परिवार का आरोप है कि जब उन्होंने जमीन वापस देने की मांग की तो अपर कलेक्टर सोलंकी ने उन्हें धमकाया और कहा – “चुप रहो वरना अंजाम बुरा होगा।” पीड़ित परिवार के साथ स्थानीय प्रतिनिधि हाटपीपल्या थाने पहुंचे और पूरे मामले की औपचारिक शिकायत दर्ज कराई। परिवार ने साफ कहा कि यदि अब भी न्याय नहीं मिला तो वे उच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे।
अपर कलेक्टर शोभाराम सोलंकी का पक्ष:
जब इस पूरे मामले में अपर कलेक्टर शोभाराम सिंह सोलंकी से बात की गई, तो उन्होंने आरोपों को पूरी तरह गलत बताया।
सोलंकी ने कहा — “यह जमीन मेरी पत्नी ने रखाबाई नामक महिला से 38 लाख रुपए में खरीदी थी। पैसे देने के बाद आपसी विवाद हुआ होगा, इसी कारण शिकायत की जा रही है। असल धोखाधड़ी तो उस व्यक्ति ने की जो गलत तरीके से रजिस्ट्री कराने पहुंचा।मेरे पीछे कुछ लोग ब्लैकमेलिंग कर दबाव बनाना चाहते हैं। यह सौदा पूरी तरह वैध था।”सोलंकी का दावा है कि उन्होंने किसी भी आदिवासी महिला की जमीन हड़पने जैसी हरकत नहीं की, बल्कि यह पूरा विवाद झूठी कहानी बनाकर उन्हें फंसाने की कोशिश है।

पवित्रा बाई की जगह किसी और महिला की फोटो
इस पूरे मामले में lalluram.com ने जब रजिस्ट्री की पड़ताल की तो सामने आया कि पवित्रा बाई के फोटो की जगह किसी और का फोटो लगा हुआ है जिसे पवित्र भाई बताया गया है। पवित्राबाई विधवा महिला है जबकि फोटो में दिख रही महिला शादीशुदा नजर आ रही है। ऐसा कहा जा सकता है कि रजिस्ट्री करने के लिए किसी फर्जी इसमें संभवत रजिस्टर की मिलीभगत होने की भी संभावना हो सकती हैं। सूत्रों का कहना है कि मिली भगत से पवित्र बाई की बेश कीमती जमीन को नाम ट्रांसफर करवा लिया गया और इसकी जानकारी उन्हें जब लगी जब वह खेती करने अपनी जमीन पर जा रहे थे और उन्हें खेती करने से रोक दिया गया। इसके बाद से पवित्रा बाई और उनके दोनों बेटे लगातार अपर कलेक्टर की शिकायत हर स्तर पर कर रहे हैं लेकिन इनकी कोई मदद नहीं। मदद की गुहार लगाने के लिए परिवार मुख्यमंत्री से मिलने का प्रयास कर रहा है।
सच कौन बोल रहा है?
एक ओर आदिवासी विधवा परिवार दो साल से न्याय की गुहार लगा रहा है, तो दूसरी ओर जिला प्रशासन का उच्च अधिकारी खुद पर लगे आरोपों को नकार रहा है। मगर सवाल यह है -अगर रजिस्ट्री वैध थी, तो भूमि विवाद दो साल से क्यों लंबित है?और अगर नहीं थी, तो इतने बड़े पद पर बैठे अधिकारी के खिलाफ अब तक कार्यवाही क्यों नहीं हुई? प्रदेश में यह कोई पहला मामला नहीं, जब अधिकारियों पर जमीन हड़पने के आरोप लगे हों। लेकिन जब आरोप का निशाना खुद एक अपर कलेक्टर हो, तो यह पूरे सिस्टम की ईमानदारी पर बड़ा सवाल है।
अब नजरें मुख्यमंत्री मोहन और गृह मंत्रालय पर
क्या वे इस मामले में निष्पक्ष जांच के आदेश देंगे, या फिर यह भी किसी फाइल में दबा रहेगा? क्योंकि यह घटना सिर्फ एक जमीन की नहीं, बल्कि व्यवस्था के खोखले न्याय और अफसरशाही के अहंकार की कहानी है। जहां एक ओर आदिवासी परिवार भूख और अन्याय से जूझ रहा है, वहीं सत्ता के पद पर बैठा अधिकारी खुद को “सही” साबित करने में लगा है। अगर ऐसे मामलों में तुरंत कार्रवाई नहीं हुई, तो जनता समझ जाएगी -“इस सिस्टम में अब इंसाफ नहीं, सिर्फ सत्ता की पहुंच चलती है।”
पत्नी का आधार कार्ड अब तक अपडेट नहीं
इसमें बड़ी बात यह भी है कि अपर कलेक्टर ने अपनी पत्नी का आधार कार्ड और डॉक्यूमेंट अब तक अपडेट नहीं करवाए जिसमें पत्नी के साथ पिता का नाम आ रहा है ताकि अधिकारी के नाम की कहानी पहचान ना हो सके। यहां अपर कलेक्टर शोभाराम सोलंकी की पत्नी का नाम रजिस्ट्री में कमलाबाई पिता सरदार सिंह है। क्या अधिकारी अब तक अपने ही परिवार के आधार कार्ड और डॉक्यूमेंट अब तक क्यों अपडेट नहीं करवा पाए इस पर भी बड़ा सवाल खड़ा होता है। सीधे तौर पर या आरोप सिद्ध होते हुए नजर आते हैं कि अपर कलेक्टर अपनी ताकत का गलत इस्तेमाल कर रहा है और अगर सही इस्तेमाल कर रहा होता तो पत्नी के साथ पति का नाम रजिस्ट्री में क्यों नहीं लिखा गया।
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