देश में इन दिनों रेवड़ी कल्चर को लेकर जबरदस्त चर्चा चल रही है. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है. अब सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों की मुफ्त की घोषणाओं पर निगरानी के लिए समिति के गठन का फैसला लिया है. अदालत के इस फैसले पर विशेषज्ञों की अपनी अलग राय है. वहीं मुफ्त कल्चर को लेकर अदालत में कई याचिका भी दायर की जा रही हैं.
ज्यादातर वरिष्ठ कानून विशेषज्ञों और अधिवक्ताओं का मानना है कि राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त उपहार के मुद्दे पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय, वास्तव में ‘समिति द्वारा दफन’ है. सुप्रीम कोर्ट ने 3 अगस्त को सरकार विपक्षी दलों, नीति आयोग, चुनाव आयोग, वित्त आयोग और भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के सदस्यों को शामिल करते हुए एक विशेषज्ञ समूह का गठन करने का फैसला किया, जो चुनाव के दौरान अर्थव्यवस्था पर राजनीतिक दलों द्वारा घोषित मुफ्त उपहारों के प्रभाव का अध्ययन करेगा.
समिति पर सवाल
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की पीठ ने केंद्र, चुनाव आयोग, वरिष्ठ अधिवक्ता और राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल और याचिकाकर्ताओं से सात दिनों के भीतर अपने सुझाव देने को कहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि समिति के गठन से यह मुद्दा खत्म हो जाएगा. उन्होंने कहा कि ‘समिति और अदालत के सामने सवाल ये है कि इन मुफ्त उपहारों का चुनाव पर क्या असर होगा? समिति इस सवाल का जवाब कैसे देगी?”
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि केवल एक समिति है जिसका गठन किया जा रहा है. अभी कोई रिपोर्ट नहीं आई है. अधिकार क्षेत्र का मुद्दा तभी उठेगा जब शीर्ष अदालत समिति की सिफारिशों पर कार्रवाई करने का फैसला करेगी. अभी तक, ऐसा लगता है कि इसे समिति द्वारा दफनाया जाएगा.
सुविधाओं को जारी रखने की वकालत
वहीं इंडियन सिविल लिबर्टीज यूनियन (ICLU) के संस्थापक और सुप्रीम कोर्ट के वकील अनस तनवीर ने जोर देकर कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट का संबंध चुनावी सुधारों से है, तो पहला कदम यह होगा कि 2019 से उसके सामने लंबित चुनावी बांड मामले को उठाया जाए. “इलेक्टोरल बॉन्ड का मुद्दा स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को प्रभावित करता है, जितना कि मुफ्त कल्चर कभी नहीं कर सकता. हम एक कल्याणकारी राज्य हैं और यह आवश्यक है कि सब्सिडी और तथाकथित ‘मुफ्त’ की घोषणा की जाए और इसे जारी रखा जाए. क्योंकि ज्यादातर आबादी को इसकी आवश्यकता होती है.
आर्थिक आपदा का बन सकता है कारण
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया कि लोकलुभावन मुफ्त उपहार मतदाता को सही निर्णय लेने से भटकाते हैं और यदि इसे अनियंत्रित किया जाता है, तो यह एक आर्थिक आपदा का कारण बनेगा. प्रख्यात तनवीर ने कहा कि तथाकथित ‘मुफ्त उपहार’ का अनुदान करदाताओं के पैसे का अपमान नहीं है, जिसका उपयोग मूर्तियों और एक नए सेंट्रल विस्टा बनाने के लिए किया जा रहा था. इस मामले पर सुझाव देने के लिए आमंत्रित किए गए सिब्बल ने कहा कि चुनाव आयोग को चर्चा से दूर रखा जाना चाहिए क्योंकि यह मुद्दा राजनीतिक और आर्थिक प्रकृति का है और चुनाव से संबंधित नहीं है. उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि संसद को इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए.
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