भोपाल। मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन के पीछे छिपे अन्नदाता की बेबसी से लगता है सरकार ने सबक नहीं लिया है..! सब जानते हैं, प्रदेश में हर साल टमाटर की बम्पर पैदावार होती है। मंत्रियों-अफसरों के जुमलों में खूब सुना था कि प्रदेश में कैचप फैक्ट्रियां लगाईं जाएंगी, यहां तक कहा गया कि फिर विदेशों में भी लोग उंगलियां चाटेंगे और मध्यप्रदेश का नाम लेंगे ! इस भरोसे में इस बार ज्यादा टमाटर उगाना वाला किसान अब ठगा हुआ महसूस कर रहा है।
बड़वानी में स्थिति यह है कि टमाटर के भाव इतने कम लगाए जा रहे हैं कि किसान हताशा में आ गया है। कहीं खुद उखाड़ कर फेंक रहा है टमाटर, तो कहीं खेतों में चरने के लिए छोड़ दिए उसने जानवर ! किसानों के अनुसार अगर नही बढ़े भाव तो लागत निकालना तो बहुत दूर की बात, उठाना पड़ेगा भारी नुकसान। क्योंकि, व्यापारी और बिचौलिए टमाटर के भाव सिर्फ 2 से 4 रुपए लगा रहे हैं। इतने कम भाव मे तो खेत से टमाटर निकलाने के लिए जो मजदूरी लगती है, वह तक महंगी पड़ रही है। गुस्से में कई किसानों ने अब टमाटर को खेतों से तोड़कर फेंकना शुरू कर दिया है। ग्राम ऊँची के किसान लालू के अनुसार उसने 2 लाख रुपये खर्च कर टमाटर की फसल बोई है। लेकिन, यही भाव आगे भी रहे तो लागत निकालना तो दूर 50 से 60 हज़ार का उल्टा नुकसानउठाना पड़ेगा। यही टमाटर का भाव कुछ समय पहले 10-12 रुपये तक था। लालू का कहना है कि पिछली बार भी उसे टमाटर में वायरस लगने से नुकसान उठाना पड़ा था और बीमा भी नही मिला था। वहीं, राजपुर में भी किसान इतने कम भावों से इतने हताश हो गए हैं कि टमाटर तुड़वाई की मजदूरी बचाने के लिए अपने खेत की टमाटर की खड़ी फसल पर जानवर चराने के लिए छोड़ दिए हैं। राजपुर के किसान अनिल के अनुसार उसने 3.5 एकड़ में 3 से 4 लाख रुपये की लागत से टमाटर लगवाया था, लेकिन भाव नही आने के चलते अब भेड़ों के चरने के लिये छोड़ दिया है, ताकि ये उनका ही चारा बन जाएं।
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