नई दिल्ली. रेलवे में भले ही महिलाओं की भर्ती को तवज्जो दी जा रही है, लेकिन अरसे से लोको पायलट की भूमिका निभा रहीं महिलाओं को ट्रेन में बुनियादी सुविधाएं भी नसीब नहीं हो पा रही हैं. रेल के ज्यादातर इंजनों में शौचालय तक नहीं हैं. ऐसे में लंबी दूरी की ट्रेनों में महिला लोको पायलट सेनेटरी पैड का इस्तेमाल करने मजबूर हैं.
समस्या यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि स्टेशन पर बने लोको पायलट के कक्ष में भी महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं बन पाए हैं. वहां भी उन्हें पुरुषों के शौचालय का ही इस्तेमाल करना पड़ता है. रेलवे में महिला लोको पायलट डेढ़ दशक से हैं. हाल के वर्षों में उनकी संख्या में बढ़ोतरी हुई है और इस समय करीब एक हजार से अधिक महिलाएं ट्रेन चला रही हैं. मगर, रेल के इंजनों में शौचालय की व्यवस्था आज तक शुरू नहीं हो पाई है. हालांकि, इस समस्या का पुरुष लोको पायलट भी सामना कर रहे हैं, मगर महिला लोको पायलट को इससे ज्यादा मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं.
200-300 किमी दूरी तक की ट्रेन चलाती हैं महिला लोको पायलट एक महिला लोको पायलट (स्वाति-परिवर्तित नाम) ने बताया कि महिलाओं से 200-300 किलोमीटर दूरी तक की ट्रेन-मालगाड़ियां चलवाने का नियम है. मगर, औसतन 40 किमी प्रतिघंटा की रफ्तार पर चलने वाली मालगाड़ियां इस दूरी को सात से आठ घंटे में पूरी करती हैं, इसलिए इंजन में शौचालय नहीं होने से मुश्किल होती है.
महिला लोको पायलट ने बताया कि प्राकृतिक आपदा, रेल दुर्घटना और खराब मौसम में ट्रेन का गंतव्य तक पहुंचने का कोई निश्चित समय नहीं होता है. आबादी से दूर सुनसान स्थानों व जंगलों में कई घंटे तक मालगाड़ी को खड़ा रखना आम बात है. महिला लोको पायलट की सुरक्षा की दृष्टि से यह स्थिति ठीक नहीं है.
बुनियादी सुविधाएं तक नही
मानवाधिकार आयोग की आपत्ति पर रेलवे ने 25 अप्रैल, 2016 को कहा था कि ट्रेनों के सभी इंजनों में शौचालय लगाए जाएंगे. छह साल बीतने के बाद भी 2,672 इलेक्ट्रिक इंजनों में एसी शौचालय व 97 इंजनों में वाटर क्लोसेट शौचालय लग पाए हैं. रेलवे बोर्ड के अफसरों का कहना है कि महिला लोको पायलट से पूछकर उनकी ड्यूटी लगाई जाती है.
फिलहाल बुनियादी सुविधाएं के तौर पर ट्रेनों के पुराने इंजनों में एसी लगाने की व्यवस्था की जा रही. जबकि, 9000-12000 हॉर्स पावर के नए इंजनों में एसी लगा होता है. इंजनों में शौचालय का कोई नियम नहीं है. प्रयोग के तौर पर कुछ इंजनों में शौचालय बनाए गए हैं. कार्यालय व रेलवे स्टेशन पर महिला कर्मियों के लिए चेंजिंग रूम, सेनेटरी पैड मुहैया कराने के अधिकार हैं. मगर, महिला लोको पायलट को यह अधिकार नहीं हैं. क्योंकि, रेलवे बोर्ड ने अभी तक क्रू सदस्यों के लिए गाइडलाइन नहीं बनाई है. जबकि महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने 2013 में कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकार संबंधित कानून लागू कर दिया था.
लोको पायलट के लिए 12 घंटे ड्यूटी तय
नियम के अनुसार लोको पायलट के लिए 12 घंटे ड्यूटी के तय होते हैं. इसलिए महिला पायलटों को बुनियादी सुविधाएं शौचालय न होने के कारण सेनेटरी पैड पहनकर ही ट्रेन चलानी पड़ती है. उन्हें आपात स्थिति के लिए अपने साथ अतिरिक्त सेनेटरी पैड रखना पड़ते हैं. रेलवे की ओर से महिला लोको पायलट को घर से लाने और छोड़ने का भी कोई प्रावधान नहीं है.
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