सतीश चाण्डक, जगदलपुर। बस्तर के हालात पर एक फिल्म बनाई जा रही है. जिसका नाम है द वे ऑफ फ्रीडम. ये फिल्म बस्तर के अंदरुनी हालात से दुनिया को रुबरु कराएगी. इस फिल्म के बारे में फिल्म के निर्माण से जुड़े कलाकारों ने इसकी जानकारी प्रेस कांफ्रेंस में दी. फिल्म देशराज कलामंच के प्रमुख और एसडीओपी एसएस विन्धयराज बना रहे हैं.
देशराज कलामंच प्रोडक्शन हाउस की फिल्म द वे आफ फ्रीडम करीब दस करोड़ की लागत वाली इस फिल्म को डायरेक्टर करेंगे शिवनरेश केसरवानी. जो इससे पहले बंटी और बबली समेत बांग्ला फिल्मों को डायरेक्टर किया है. चर्चा में बताया गया कि इस पूरी फिल्म की शूटिंग लगभग दण्डकारण्डय क्षेत्र में ही होगी. साथ-साथ प्रदेश के प्रमुख शहरों में भी दृश्य फिल्माया जाएगा और कोशिश यही रहेगी कि पूरे कलाकार बस्तर से ही हो. इसके लिए आडिशन भी बुलाया गया है. साथ ही अगले पांच-छः माह में फिल्म पूरी कर दी जाएंगी। वहीं फिल्म की शूटिंग दिसम्बर माह में शुरू होगी और फिल्म करीब दो घंटे की रहेगी. इस फिल्म को हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के साथ-साथ स्थानीय भाषा का भी उपयोग किया जाएगा. इसस पहले एसएस विन्ध्यराज ने माटी के लाल, चलो जवानों जैसे नाटक बना चुके है. जिसके लिए उनके खिलाफ नक्सलियों ने पर्चे भी फैके थे.
एसएस विन्ध्यराज बताते है कि बस्तर और नक्सलवाद पर पहले भी फिल्म बन चुकी है लेकिन उसमें हकीकत सामने नहीं आई. दरअसल इस फिल्म में वो सब कुछ है जो वर्तमान में बस्तर के हालात है. यह फिल्म पूरी तरह निष्पक्ष होगी. बस्तर के ऐसे कई गांव है, जहां आज भी मूलभूत सुविधाएं नहीं है.
पर्दे पर दिखेंगे रमन्ना और हिड़मा जैसे नक्सली
बस्तर और प्रदेश में नक्सलवाद का चेहरा रमन्ना और हिड़मा भी इस फिल्म में नजर आएंगे. दरअसल उनके भी किरदार इस फिल्म में है. एसएस विन्ध्यराज ने बताया कि किस तरह बाहर से आए नक्सली स्थानीय लोगों को गुमराह करते है. क्योंंकि माओ से बस्तर का कोई लेना देना नहीं है. स्कूल भवन उड़ाने वाले, पुल-सड़क के बाधक, स्वास्थ्य सेवाओं से वंचित करने वाले आखिरकार आदिवासियों के हितैषी कैसे हो सकते है। इस फिल्म में हर एक किरदार होगा जो वर्तमान में बस्तर में अपनी भूमिका निभा रहा है। रमन्न्ना, हिड़मा जैसे नक्सली भी होगे तो पुलिस अफसर भी होंगे। पत्रकार भी होगे तो नेता भी होंगे।
नक्सली दहशत के बीच दिखेगा प्रेम प्रंसग और बस्तर की खूबसूरत वादियां
बस्तर को सिर्फ नक्सलवाद के नाम से जानना काफी नहीं है. आज बस्तर देश-दुनिया में सिर्फ नक्सलवाद के नाम से ही जाना जाता है. लेकिन इस फिल्म में जहा नक्सलवाद और आंतकी गतिविधिया दिखेगी तो दूसरी और इस फिल्म में प्रेम प्रसंग भी दिखेगा. किस तरह आदिवासी अपने प्यार का इजहार करते है. किस तरह आदिवासी अपनी संस्कृति से प्यार करते है. साथ ही बस्तर की खूबसूरत वादिया भी दिखेंगी. उन्होने बताया कि कलम में बहुत ताकत होती है. उनकी व्यक्गित राय है कि बारूद और कलम को तौला जाए तो कलम ज्यादा भारी होगा. क्योंकि मेरे आर्दश महात्मा गांधी थे जब वे आजादी के लिए लाठी लेकर अकेले चले तो पीछे कारवां खड़ा हो गया। इस फिल्म के माध्यम से देश व दुनिया के समक्ष एक विचार रख रहा हूं देखते है कि कितना असर करेगा।