रायपुर। अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष व नेत्र विशेषज्ञ डॉ. दिनेश मिश्र ने स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित राज्य स्तरीय ऑनलाइन क्लास एससीईआरटी में अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण और अंधविश्वास विषय पर रोचक एवं ज्ञानवर्धक जानकारी प्रदान की. कार्यक्रम के प्रारंभ में ऑनलाईन क्लास के प्रभारी सुशील राठौर ने विषय विशेषज्ञ का परिचय दिया. वहीं आभार प्रदर्शन स्टेट मीडिया सेंटर के प्रभारी प्रशांत कुमार पाण्डेय ने किया. इस अवसर पर संयुक्त संचालक डॉ. योगेश शिवहरे वरिष्ठ शिक्षा सलाहकार सत्या राज, डीआर साहू, भास्कर देवांगन और दिवाकर निम्जे उपस्थित थें.

डॉ. दिनेश मिश्र ने कहा कि कुछ लोग अंधविश्वास के कारण हमेंशा शुभ-अशुभ के फेर में पड़े रहते है. यह सब हमारे मन का भ्रम है. शुभ-अशुभ सब हमारे मन के अंदर ही है. किसी भी काम को यदि सही ढंग से किया जाये, मेहनत, ईमानदारी से किया जाए तो सफलता जरूर मिलती है. उन्होंने कहा कि 18वीं सदी की मान्यताएं व कुरीतियां अभी भी जड़े जमायी हुई है जिसके कारण जादू-टोना, टोनही, बलि व बाल विवाह जैसी परंपराएं व अंधविश्वास आज भी वजूद में है. जिससे प्रतिवर्ष अनेक मासूम जिन्दगियां तबाह हो रही है. उन्होंने कहा कि ऐसे वैज्ञानिक सोच को अपनाने की आवश्यकता है. उन्होंने आगे कहा कि अंधविश्वास को कुरीतियों के विरूद्ध समाज के प्रत्येक व्यक्ति एवं जनप्रतिनिधि को एकजुट होकर आगे आना चाहिए.

डॉ. मिश्र ने कहा प्राकृतिक आपदायें हर गांव में आती है, मौसम परिवर्तन व संक्रामक बीमारियां भी गांव को चपेट में लेती है, वायरल बुखार, मलेरिया, दस्त जैसे संक्रमण भी सामूहिक रूप से अपने पैर पसारते है. ऐसे में ग्रामीण अंचल में लोग बैगा-गुनिया के परामर्श के अनुसार विभिन्न टोटकों, झाड़-फूंक के उपाय अपनाते है. जबकि प्रत्येक बीमारी व समस्या का कारण व उसका समाधान अलग-अलग होता है, जिसे विचारपूर्ण तरीके से ढूंढा जा सकता है. उन्होंने कहा कि बिजली का बल्ब फ्यूज होने पर उसे झाड़-फूंक कर पुनः प्रकाश नहीं प्राप्त किया जा सकता न ही मोटर सायकल, ट्रांजिस्टर बिगड़ने पर उसे ताबीज पहिनाकर नहीं सुधारा जा सकता. रेडियो, मोटर साइकिल, टीवी, ट्रेक्टर की तरह हमारा शरीर भी एक मशीन है जिसमें बीमारी आने पर उसके विशेषज्ञ के पास ही जांच व उपचार होना चहिए.

डॉ. मिश्र ने शिक्षकों से विभिन्न सामाजिक कुरीतियों एवं अंधविश्वासों की चर्चा करते हुए कहा कि बच्चों को भूत-प्रेत, जादू-टोने के नाम से नहीं डराएं क्योंकि इससे उनके मन में काल्पनिक डर बैठ जाता है जो उनके मन में ताउम्र बसा होता है. बल्कि उन्हें आत्मविश्वास, निडरता के किस्से कहानियां सुनानी चाहिए. जिनके मन में आत्मविश्वास व निर्भयता होती है उन्हें न ही नजर लगती है और न कथित भूत-प्रेत बाधा लगती है. यदि व्यक्ति कड़ी मेहनत, पक्का इरादा का काम करें तो कोई भी ग्रह, शनि, मंगल, गुरू उसके रास्ता में बाधा नहीं बनता. इस ऑनलाईन क्लास के दरम्यान लगभग तीन हजार से भी अधिक बच्चों पालकों व शिक्षकों ने यू-ट्यूूब के माध्यम से देखा.