मनोज साहू. रायपुर. छत्तीसगढ़ में मेडिकल साइंस आज इतनी ज्यादा तरक्की कर रही है कि अब लोगों को अपने ही शहर में ही किडनी ट्रांसप्लांट, हार्ट सर्जरी की सुविधा मिल रही है। इसी कड़ी में प्रदेश के चिकित्सा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ गया है। जहां श्रीबालाजी सुपरस्पेश्यालिटी हॉस्पिटल मोवा में डॉक्टरों की टीम ने लीवर ट्रांसप्लांट कर इस नई चुनौती को स्वीकार कर अपनी कुशल दक्षता का परिचय दिया है। डॉक्टरों के मुताबिक पिछले ७—८ साल से लीवर की परेशानी से जुझ रहे ४५ वर्षीय सुदामा वर्मा को उनकी पत्नी छटनी देवी ने लीवर का हिस्सा डोनेट कर पति की जान बचाई। डॉक्टरों की टीम ने इस आॅपरेशन को सफल बनाने के लिए अपनी पूरी एनर्जी लगा दी थी, करीब २० घंटे तक चले इस आॅपरेशन के बाद, मरीज की ३३६ घंटे और ४० डॉक्टरों की टीम के सतत निगरानी और देखभाल हॉस्पिटल के आखिरकार डॉक्टरों को बड़ी सफलता मिली। यह लीवर ट्रांसप्लांट पहला ऐसा केस है जो छत्तीसगढ़ में पहली बार हुआ है। वहीं, यह देश का भी पहला केस होगा जिसमें मरीज कन्जनाइट सोलिट्री (जन्मजात सिंगल किडनी) वाले मरीज का सफल लीवर ट्रांसप्लांट हुआ है।
अभी तक हमारे प्रदेश में मृत व्यक्ति से लीवर अथवा किडनी लेने की स्वास्थ्य व्यवस्था पूर्ण रुप से सक्रिय नहीं हो पाई है। जिस दिशा में स्वास्थ्य विभाग कार्यरत है। इन परिस्थितियों के बावजूद भी इस आॅपरेशन की खासियत यह है कि हमारे प्रदेश में लीविंग लीवर ट्रांसप्लांट का आॅपरेशन पहली बार हुआ है। छत्तीसगढ़ में पहली बार हुए इस सफल लीवर ट्रांसप्लांट के लिए मा.मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, गृहमंत्री राम सेवक पैकरा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव, आईजी मुकेश गुप्ता, महापौर प्रमोद दुबे, स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक, स्वास्थ्य संचालक रानू साहू आदि ने श्रीबालाजी हॉस्पिटल एवं इस आॅपरेशन में शामिल टीम के सदस्यों को बधाई दी।
यहां बता दें कि लीवर ट्रांस्प्लांट करते समय मरीज की स्थिति काफी नाजूक थी, आॅपरेशन के दौरान जान जाने का भी खतरा। जिससे परिजनों को अवगत कराया फिर डॉक्टरों ने इस चुनौती को स्वीकार करते कर दिन-रात मेहनत करके इस आॅपरेशन को सफल बनाया। छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स की १० वीं बटालियन में ट्रेड कॉस्टेबल के पद पदस्थ अंबिकापुर निवासी ४३ वर्षीय सुदामा वर्मा लंबे समय से लीवर की परेशानी से जुझ रहा था। जिसे उनकी पत्नी छटनी देवी वर्मा ने अपना लीवर डोनेट की।
जिसे सुदामा के शरीर में ट्रांसप्लांट किया गया। छत्तीसगढ़ में पहली बार हुए इस सफल लीवर ट्रांसप्लांट के लिए मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी, गृहमंत्री राम सेवक पैकरा, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव, आईजी मुकेश गुप्ता, महापौर प्रमोद दुबे, स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक, स्वास्थ्य संचालक रानू साहू आदि ने श्रीबालाजी हॉस्पिटल एवं इस आॅपरेशन में शामिल टीम के सदस्यों को बधाई दी।
ये रही सर्जन की टीम
डॉ. पी. बालाचंद्रन मेनन, डॉ. देवेन्द्र नायक, डॉ. पुष्पेन्द्र नायक, डॉ. राघवेन्द्र बाबू, डॉ. प्रेम कुमार, डॉ. विशाल सग्गर, डॉ. विवेक गोयल, डॉ. अमित अग्रवाल, डॉ. सुमीत गुप्ता, डॉ. विजय मोटवानी, डॉ. अनुराधा दुबे, डॉ. एसएस मोहंती, डॉ. साईनाथ पत्तेवार, डॉ. तुषार जैन, डॉ. दीपक जायसवाल, डॉ. दुष्यंत पटेल, डॉ. निकेश गांधी, डॉ. स्नेहल राणा, डॉ. सुनील, डॉ. गोबिन्दु, डॉ. ज्योतिश, डॉ. भरत, डॉ. रूद्र साहू, डॉ. टीडी माखीजा, डॉ. योगेश धबार्दे, डॉ. शची दीवान, डॉ. कुपूल बोस।
मैनेजमेंट, आईसीयू और मेडिकल स्टॉफ की टीम
नीता नायक, डॉ. बिरेन्द्र पटेल, नितिन पटेल, डॉ. शुभम अवस्थी, डॉ. रामपुकार पातर, अजय वाधवानी, भोजराम पटेल, शोभेन्द्र पटेल, हिमांशु साहू, देबाशीष रायचौधरी, अनोज पंडा, सीजू सेबासटीन, लिली विक्टर, प्रेम ज्योति साव, डॉ. राघवेन्द्र बारीक, अनुज कुमार, कमलेश कुमार, गौतम कुमार, आशाराम चेलक, प्रदीपा दास, प्रेमलता पटेल, राजेन्द्र कुमार, रामेश्वरी साहू, खेमलाल, दामिनी पटेल, भानुमति, गिरजा साहू, पुष्पा कबीर पंथी, महेश्वरी साहू, मधु बिसेन, डॉ. जयेश रायचा, डॉ. संदीप, डॉ. भूपेन्द्र डॉ. धनेन्द्र साहू, डॉ. रूपेन्द्र, डॉ. डोमेन्द्र, डॉ. अभिषेक, डॉ. तेजराम आदि शामिल थे।
करीब 16 घंटे चला आॅपरेशन
प्रत्यारोपण करने वाली टीम के प्रमुख डॉ. बाला चंद्रन मेमन, डॉ. देवेन्द्र नायक, डॉ. पुष्पेन्द्र नायक ने बताया कि लीवर डोनर से लीवर का पार्ट निकालने का आॅपरेशन सुबह साढ़े ६ बजे शुरू हुआ, जो देर रात करीब २ बजे तक चला। जैसे ही पार्ट निकाला गया, उसे तुरंत दूसरे आॅपरेशन थियटर में रेसीपेंट के पास ले जाया गया। वहां रात्रि करीब ८ बजे आॅपरेशन शुरू किया गया, जो मध्यरात्रि ढ़ाई बजे तक पूरा हुआ। आॅपरेशन सफल रहा है।
3-6 सप्ताह में बन जाएगा पूरा लीवर
सुदामा को उसकी ४० वर्षीय पत्नी छटनी देवी ने लीवर दान किया। उसके लीवर को निर्धारित सेप में काटकर निकाला गया और उसके पति सुदामा के शरीर में प्रत्यारोपित किया गया। डॉक्टरों का कहना है कि लीवर दान करने वाले व्यक्ति का लीवर ३ से ६ सप्ताह में दोबारा सामान्य आकार का हो जाएगा। लीवर शरीर का ऐसा अंग है, जिसका आकार बढ़ता रहता है। आॅपरेशन के बाद मरीज पहले की तरह जीवन-यापन कर सकता है।
लीवर की प्रत्यारोपण सर्जरी की जरुरत कब होती है.
डॉ देवेन्द्र नायक एवं डॉ. पुष्पेन्द्र नायक ने बताया कि जिन मरीजों की स्थिति अन्य उपचारों से नियंत्रित नहीं की जा सकती, ऐसे मरीजों में लीवर फेलियर के इलाज के विकल्प के रूप में लिवर प्रत्यारोपण किया जाता है। लिवर कैंसर से रोगग्रस्त लोगों के इलाज के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है। लीवर फेलियर दो प्रकार का होता है, तीव्र लिवर फेलियर जिसमें अचानक से या जल्दी से लिवर की कार्यवाही विफल हो जाती है और यह आमतौर पर दवाओं से होने वाली लिवर की खराबी या क्षति से होता है। हालांकि लीवर प्रत्यारोपण तीव्र लीवर फेलियर के उपचार में प्रयोग किया जाता है लेकिन ज्यादातर इसका प्रयोग जीर्ण लिवर फेलियर के उपचार में किया जाता है। जीर्ण लीवर फेलियर कई महीनों या सालों में होता है। विभिन्न स्थितियों के कारण जीर्ण लिवर फेलियर हो सकता है। इसका सबसे आम कारण है सिरहोसिस, एक प्रक्रिया जिसमें स्कार ऊतक सामान्य लीवर ऊतक की जगह ले लेते हैं। और लिवर की कार्यवाही खराब हो सकती है। सिरहोसिस लिवर प्रत्यारोपण का अक्सर उद्धृत किया जाने वाला कारण है।
–श्रीबालाजी हॉस्पिटल रायपुर के डॉक्टरों की टीम को मिली बड़ी सफलता
-पत्नी ने पेश की मिसाल, लीवर डोनेट कर बचाई पति की जान
आपने सावित्री और यमराज की कहानियां किताबों में जरूर सुनी होगी, कि सावित्री ने यमराज से अपने पति के लिए जीवनदान मांगा था। यह बात केवल कहानियों तक ही सीमित नहीं रही, लेकिन आज इस कलयुगी जीवन में सावित्री की किरदार में भी कई ऐसी पत्नियां है जो अपने पति के लिए स्वयं के जीवन को कुर्बान कर देती है। कुछ ऐसा ही वाक्या अंबिकापुर की एक महिला ने सच कर दिखाया। जहां ४० वर्षीय छटनी बाई वर्मा नाम की महिला ने असल जिंदगी में अपनी जान को दांव पर लगा कर पति की जिंदगी बचा ली। छटनी देवी वर्मा बताती है कि पिछले ७—८ साल से लिवर की परेशानी से जुझ रहे ४५ वर्षीय सुदामा वर्मा को पत्नी छटनी देवी ने लीवर का हिस्सा डोनेट कर पति की जान बचाई।
पत्नी को पता चला, तो लीवर डोनेट करने को तैयार हुई
छटनी देवी वर्मा ने बताया कि उनके पति सुदामा अंबिकापुर में २००१ से छत्तीसगढ़ आर्म्स फोर्स १०वीं बटालियन के ट्रेड कॉस्टेबल के पद पर पदस्थ है, वे पिछले ७—८ साल से लीवर की परेशानी से जुझ रहे थे। उन्होंने कई बड़े अस्पतालों के चक्कर लगाए लेकिन उन्हें कहीं भी आराम नहीं मिला। कई जगह जाने के बाद पता चला कि उनका लीवर पूरी तरह से खराब हो चुका है। मरीज सुदामा ने बताया कि उनका इलाज कर रहे डॉ. बाला चंद्रन मेमन रायपुर पहुंंचे थे, तब उनसे संपर्क हुआ, इस दौरान इलाज के लिए श्रीबालाजी हॉस्पिटल रायपुर पहुंचे। जहां डॉक्टर ने बताया कि ट्रांसप्लांट के अलावा तुम्हारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं है। इस बात को सुनकर मेरी पत्नी छटनी ने अपना लीवर डोनेट करने की बात कही। लीवर ट्रांसप्लांट की बात सुनकर थोड़ी सी घबराहट तो हुई, मगर डॉ. देवेन्द्र नायक, डॉ. पुष्पेन्द्र नायक साहब ने हमें काउंसलिंग की। उसके बाद हमने ट्रांसप्लांट करवाने का निर्णय लिया।
-नई जिंदगी की शुरूआत
–दो साल के बेटे की परवरिश और पति की जिंदगी की कसौटी
छटनी देवी कहती हैं शादी के २० साल बाद एक तरफ २ साल बेटा है तो दूसरी पति की जिंदगी की कसौटी से जूझ रही थी।
हम लोग बच्चे के आने की खुशी भी अच्छे से नहीं मना पाए थे कि पति की बीमारी का सदमा लग गया। जब डॉक्टरों ने बताया कि लीवर ट्रांसप्लांट कराना जरूरी है इसके अलावा कोई चारा नहीं हैं। तब मैंने अपना लीवर पति को देने की ख्वाईश रखी।
पहले तो परिवार के लोगों ने मना किया लेकिन बाद में सब तैयार हो गए। श्रीबालाजी हॉस्पिटल आने के बाद जब डॉ. देवेंद्र नायक से मिले तो उन्होंने हम लोगों का मनोबल बढ़ाते हुए मुझे समझाया कि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं हम लोग हैं। लीवर देने के बाद भी तुम अपनी जिंदगी पहले जैसे ही आराम से जी सकती हो। जब मैंने डॉक्टर साहब को बताया कि मुझे सिर्फ पति की चिंता है बस उसे कुछ ना हो। तो फिर उन्होंने कहा कि हम तुम्हें कुछ नहीं होने देंगे और नहीं तुम्हारे पति को। तुम दोनों यहां से एक अच्छी स्वस्थ्य जिंदगी की शुरूआत करते हुए जाओगे।
प्रत्यारोपण सर्जरी क्या है
लीवर प्रत्यारोपण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लीवर फेलियर के परिणामस्वरूप एक गैर-कार्यकारी लीवर को सर्जरी से हटा दिया जाता है और पूर्ण या आंशिक रूप से स्वस्थ लिवर से प्रतिस्थापित किया जाता है। लिवर कैंसर सर्जरी करवाते समय, अगर यह ज्ञात होता है कि लीवर की कार्य क्षमता बहुत ही बिगड़ चुकी है तो ऐसे में लीवर प्रत्यारोपण करना बहुत ही आवश्यक है क्योंकि सिर्फ प्रभावित भाग हटाने से लीवर फेलियर हो सकता है। प्रत्यारोपण के लिए, लीवर जीवित या मृत डोनर से लिया जा सकता है। चूंकि, कोई भी यंत्र या मशीन विश्वसनीय तरीके से लीवर का कार्य नहीं कर सकती, जिन मरीजों का लीवर फेल हो चुका हो उनकी स्थिति में प्रत्यारोपण ही एकमात्र विकल्प होता है। जिन रोगियों को लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है, वे आमतौर पर तीव्र या जीर्ण लीवर फेलियर से पीड़ित होते हैं। आमतौर पर, लीवर प्रत्यारोपण को गंभीर जटिलताओं, जैसे अंत-चरण जीर्ण लिवर रोग, से पीड़ित रोगियों के लिए वैकल्पिक उपचार के रूप में आरक्षित किया जाता है। अचानक से लिवर फेल होना एक दुर्लभ स्थिति है।
ओडिशा, बिहार, जम्मू-कश्मीर जैसे ८ राज्यों में नहीं हैं आॅपरेशन की ऐसी सुविधा
इन राज्यों को पीछे छोड़ आगे निकला छत्तीसगढ़
श्रीबालाजी ग्रुप आॅफ हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. देवेन्द्र नायक, डॉ. पुष्पेन्द्र नायक ने बताया कि चिकित्सा के क्षेत्र में छत्तीसगढ़ ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। यहीं वजह है कि अब किडनी ट्रांसप्लांट, हार्ट सर्जरी जैसे बड़े से बड़ा आॅपरेशन यहां होने लगा है। चूंकि बिहार, झारखंड, ओडिसा, गोवा, हिमांचल प्रदेश, मणिपुर और जम्मू कश्मीर में स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव देखा गया है। इन राज्यों को छत्तीसगढ़ पीछे छोड़ते हुए अब लीवर ट्रांसप्लांट के क्षेत्र में अपना कीर्तिमान स्थापित किया है।
लीवर की प्रत्यारोपण सर्जरी के बाद देखभाल
कुछ दिनों के लिए आईसीयू में रखा जाता है। डॉक्टर और नर्स आपकी स्थिति को मॉनिटर करते रहेंगे जिससे किसी भी प्रकार की जटिल को टाला जा सके। वे आपके नए लिवर की कार्यवाही की जांच भी करेंगे। आपको अस्पताल में १५ से २० दिन बिताने हो सकते हैं। अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद भी आपको नियमित रूप से डॉक्टर्स से चेक-अप करवाने होंगे। सर्जरी के बाद भी आपको कई हफ़्तों तक कुछ रक्त परीक्षण करवाने हो सकते हैं। प्रत्यारोपण के बाद आपको आजीवन दवाएं लेनी होंगी, कुछ दवाएं रोग निरोधक क्षमता बनाये रखने के लिए जिससे बीमारियां प्रत्यारोपित लिवर पर हमला न कर सकें और कुछ दवाएं जटिलताओं से बचने के लिए दी जा सकती हैं।
सर्जरी के बाद संभव जटिलताएं और जोखिम : लिवर प्रत्यारोपण का कुल सफलता दर ९४ प्रतिशत से ज्यादा है और अधिकांश प्राप्तकर्ता अपनी सामान्य गतिविधियां कर पाते हैं और ९५प्रतिशत स्थितियों में जीवन की गुणवत्ता पहले के सामान हो जाती है। प्रत्यारोपण की सफलता इसपर भी निर्भर करती है कि रोग का निदान किस स्टेज पर हुआ। जितनी जल्दी रोग का पता चलेगा, उसके उपचार के परिणाम भी उतने ही बेहतर होंगे।
प्रत्यारोपण २ प्रकार के होते हैं
जीवित व्यक्ति (आम तौर पर परिवार के सदस्य) का लिवर प्रत्यारोपित करना, किसी मृत (हाल ही में) व्यक्ति का लिवर प्रत्यारोपित करना या स्प्लिट डोनेशन जिसमें मृत व्यक्ति के लिवर को दो हिस्सों (दांया और बांया) में करके दो शरीरों (एक बचा और एक वयस्क) में प्रत्यारोपित कर देते हैं (बड़ा हिस्सा व्यसक के शरीर में और छोटा हिस्सा बच्चे के शरीर में)।
लिवर प्रत्यारोपण की प्रक्रिया
अगर आपको यह सूचित किया जाता है कि किसी शवदायी डोनर का लिवर उपलब्ध है, तो आपको उस ही वक्त अस्पताल आना होगा। आपको अस्पताल में भर्ती करवाया जायेगा और सर्जरी से पहले आपके स्वास्थ्य की जांच की जाएगी जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि आप सर्जरी एक लिए तैयार हैं।
ट्रांसप्लांट सर्जन मरीज के पेट में एक लंबा चीरा (जिगर तक पहुंचने के लिए) बनाता है। चीरे का आकार आपकी शारीरिक बनावट और सर्जन के दृष्टिकोण पर निर्भर करता है।
सर्जन लिवर में रक्त आपूर्ति और पित्त वासिका को वियोजित कर देता है और फिर रोगग्रस्त लिवर को निकाला जाता है। इसके बाद सावधानी से वास्तविक लिवर के स्थान पर डोनर का लिवर रख दिया जाता है और रक्त आपूर्ति व पित्त वासिका को फिर जोड़ दिया जाता है। सर्जरी का समय मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। सर्जरी में सामान्यत: ६ से १८ घंटे का समय लगता है।
इसके बाद सर्जिकल धागों और स्टेपल्स की मदद से चीरा सिल दिया जाता है। इसके बाद मरीज को आईसीयू में रखा जाता है। अगर लिवर जीवित शरीर से लिया जा रहा है, तो ऐसे में डोनर के लिवर का कुछ हिस्सा (४०-७०प्रतिशत) ही लिया जाता है। ऐसे में पहले डॉक्टर डोनर का एक आॅपरेशन करते हैं जिसमें डोनर के लिवर का हिस्सा निकाला जाता है। यह सर्जरी तीन से चार घण्टे चलती है।
इसके बाद रोगी के शरीर में, उपर्लिखित मृत डोनर द्वारा प्रत्यारोपित लिवर को लगाने की सर्जरी की प्रक्रिया द्वारा, लिवर प्रत्यारोपित किया जाता है।
लीवर डोनेशन से संबंधित बातें
डोनर का लिवर स्वस्थ होना चाहिए, डोनर की उम्र से १८-६० के बीच होनी चाहिए।
लिवर डोनेट करने के पीछे का उद्देश्य आर्थिक लाभ नहीं होना चाहिए बल्कि यह सहायता के भाव से किया जाना चाहिए।
डोनर के लिवर का आकार प्राप्तकर्ता के लिवर के आकार से मेल खाना चाहिए।
डोनर अगर जीवित है तो उसका शारीरिक परीक्षण किया जाना चाहिए, जिसमें उपर्लिखित टेस्ट्स भी शामिल हैं।
आदर्श रूप से, डोनर का ब्लड ग्रुप प्राप्तकर्ता के ब्लड ग्रुप के लिए अनुकूल होना चाहिए
लीवर की प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए तैयारी
सर्जरी से पहले किये जाने वाले टेस्ट्स/ जांच
सर्जरी से पहले एनेस्थीसिया की जांच
सर्जरी की योजना
सर्जरी से पहले निर्धारित की गयी दवाइयाँ
सर्जरी से पहले फास्टिंग खाली पेट रहना
सर्जरी का दिन
सामान्य सलाह
प्रत्यारोपण के लिए डोनर ढूंढना
श्रीबालाजी हॉस्पिटल के इस कीर्तिमान को लेकर प्रबुद्धजनों ने ये कहा-
प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि
छत्तीसगढ़ एक के बाद एक नया कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। यह प्रदेश के लिए बड़ी उपलब्धि है। इस आॅपरेशन के लिए पूरी टीम को बधाई…
-डॉ. रमन सिंह, सीएम
डॉक्टरों की मेहनत
स्वास्थ्य के क्षेत्र में प्रदेश के डॉक्टर काफी मेहनत कर रहे है, हर चुनौती को फेस कर सफलता हासिल कर रहे है।
-अजय चंद्राकर, स्वास्थ्य मंत्री
एक नया आयाम
चिकित्सा के क्षेत्र में यह एक नया आयाम है। इस जटिल आॅपरेशन को सफल बनाने वाले पूरे टीम को बधाई।
-गौरीशंकर अग्रवाल
अध्यक्ष, विधानसभा
बड़ी चुनौती
लीवर ट्रांसप्लांट एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। इस चुनौति को फेस करना डॉक्टरों के लिए बहुत ही कठिन होता है।
-अजीत जोगी, छजकां
बेहतर बनाने में जुटा
सरकार ने शुरू से ही स्वास्थ्य सुविधा को बेहतर बनाने में जुटी है। यहां नई टेक्नोलॉजी के साथ डॉक्टर काम कर रहे हैं।
-राम सेवक पैकरा
गृहमंत्री
सराहनीय कदम
लीवर ट्रांसप्लांट के सफल आॅपरेशन के लिए पूरी टीम को मेरी तरफ से बधाई देता हूं, हॉस्पिटल के कुशल और दक्ष डॉक्टरों ने चुनौती को स्वीकार किया है वह सराहनीय है।
-भूपेश बघेल, पीसीसी अध्यक्ष
जटिल बीमारी का निदान
यह हमारे लिए गौरव का विषय है कि अब चिकित्सा के क्षेत्र में जटिल से जटिल बीमारी का निदान कर रहे है।
-टीएस सिंहदेव
नेता प्रतिपक्ष
सक्सेस कर दिखाया
स्वास्थ्य सुविधा के लिए हमारे डॉक्टर्स प्रतिबद्ध है, और श्रीबालाजी हॉस्पिटल में लीवर ट्रांसप्लांट के आॅपरेशन को सक्सेस कर दिखाया है।
-प्रमोद दुबे, महापौर
हर्ष का विषय
प्रदेश में पहली बार लीवर ट्रांसप्लांट होना यह अपने आप में ही हर्ष का विषय है।
पूरी टीम को मेरी तरफ से शुभकामनाएं।
-निहारिका बारिक स्वास्थ्य सचिव