यशवंत साहू, दुर्ग। हमारी अनुश्रुतियों में जटायु जैसे गिद्ध पात्र हैं. शकुंतला जिसके बेटे भरत के नाम से देश का नाम भारत पड़ा, शकुंत वन में अर्थात गिद्ध के रहवास में कण्व ऋषि को मिली थी. दुर्भाग्य से देश में गिद्ध पक्षियों की प्रजाति संकट में है. पूरे देश में गिद्ध विलुप्ति की कगार पर हैं. अच्छी बात यह है कि इधर के कुछ सालों में धमधा ब्लॉक में गिद्धों की इजीप्शियन प्रजाति अर्थात इजीप्शियन वल्चर को देखा गया है. ये बड़े पेड़ों में घोंसला बनाकर रह रहे हैं. इनकी प्रजाति के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह अच्छा अवसर है.

कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे और डीएफओ धम्मशील गणवीर ने आज इनकी संरक्षण की संभावनाओं पर विचार किया और उन क्षेत्रों में जहां इनकी बसाहट सबसे अधिक पाई गई है, वहां पर इनके कंजर्वेशन के लिए संरक्षित क्षेत्र बनाने के लिए जगह चिन्हांकित करने का निर्णय लिया. इसके पश्चात फारेस्ट और रेवेन्यू की संयुक्त टीम ने जगह चिन्हांकन के लिए सर्वे किया है.

डीएफओ गणवीर ने बताया कि खुशी की बात है कि इजीप्शियन वल्चर की प्रजाति हमारे यहां देखी जा रही है. यह दुर्लभ प्रजाति है, और इसके संरक्षण की जरूरत है. इसके लिए एक खास क्षेत्र बनाया जाएगा, जो एक तरह से वल्चर रेस्टारेंट की तरह होगा. गिद्ध मृतभक्षी होते हैं. मृतक जानवरों की लाशें यहीं लाई जाएंगी. इस क्षेत्र में ऐसे पौधे लगाये जाएंगे जो गिद्धों की बसाहट के अनुकूल होंगे. गिद्ध पीपल जैसे ऊंचे पेड़ों में बसाहट बनाते हैं. कंजर्वेशन वाले क्षेत्र में इस तरह की सारी सुविधाओं का विकास होगा जो गिद्धों की बसाहट के लिए उपयोगी होगी.

उन्होंने बताया कि भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियां हैं, इनमें से इजीप्शियन वल्चर एक प्रजाति है. यह छोटे आकार के गिद्ध होते हैं. उन्होंने बताया कि भारत में पहले बड़ी संख्या में गिद्ध पाये जाते थे, लेकिन दशक भर से पहले इनमें तेजी से गिरावट आई. इसका कारण था डाइक्लोफिनाक औषधि जो मवेशियों को दी जाती थी. मवेशियों के मरने के बाद जब गिद्ध इनके गुर्दे खाते थे तो यह औषधि भी उनके पेट में चली जाती थी, और जानलेवा होती थी. देश भर में इस औषधि पर प्रतिबंध लगा दिया गया, लेकिन गिद्धों की प्रजाति तब तक काफी कम हो चुकी थी.

संरक्षण के लिए युद्धस्तर पर हुआ काम

बता दें कि देश भर में बर्ड वाचिंग का जोर बढ़ा, इको टूरिज़्म की संभावना इससे बढ़ेगी. गिद्ध परंपरागत रूप से  सफाई कामगार (Scavenger) के रूप में काम करते हैं. इनकी संख्या बढ़ने से वातावरण की शुद्धता भी बढ़ेगी. खारुन नदी के किनारे स्पॉट किये जा रहे हैं. इस अभिनव पहल से संरक्षण की बड़ी मदद मिलेगी. यह समस्या कितनी गंभीर है, इसका पता इस बात से लगता है कि बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ने इसकी ब्रीडिंग के लिए 2009 में युद्ध स्तर पर कार्य किये थे.

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रामेश्वरम में अर्पित करते हैं गंगाजल

पक्षी विशेषज्ञ अनुभव शर्मा ने बताया कि भारत में पाये जाने वाले इजीप्शियन वल्चर दो प्रकार के होते हैं. एक स्थायी रूप से रहने वाले और दूसरे माइग्रेटरी. भारतीय साहित्य में इनके बारे में दिलचस्प वर्णन है. इजीप्शियन वल्चर संस्कृत साहित्य में शकुंत कहा गया है. अभिज्ञान शाकुंतलम में ऋषि कण्व को शकुंतला ऐसे ही शकुंत पक्षी के वन में प्राप्त हुई थी, जिसकी वजह से उन्होंने उसका नामकरण शकुंतला रख दिया. इसी शकुंतला के बेटे भरत से हमारे देश का नाम भारत पड़ा. माइग्रेटरी शकुंत पक्षी हिमालय से उड़ान भर कर रामेश्वरम तक पहुंचते हैं. इनके बारे में अनुश्रुति है कि ये शिव भक्त होते हैं और गंगा जल हिमालय से लेकर रामेश्वरम में भगवान शिव को चढ़ाते हैं.

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