रायपुर- कानून व्यवस्था को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की समीक्षा बैठक पर कटाक्ष करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री डाॅक्टर रमन सिंह ने कहा है कि, यह अजीब सरकार है, जो आपराधिक घटनाओं पर गंभीर नहीं है. नक्सल क्षेत्रों समेत पूरे राज्य में कानून व्यवस्था की हालत बद से बदतर हो गई है. सरकार से यह संभल नहीं रहा है. उन्होंने कहा कि पुलिस अधिकारियों का सरकार दूसरा उपयोग कर रही है, ऐसे में ऐसे हालात तो बनेंगे ही.

पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ.रमन सिंह ने कहा कि बिगड़ती कानून व्यवस्था के मुद्दे पर हमारे नेताओं-कार्यकर्ताओं ने प्रदेश भर में धरना प्रदर्शन के जरिए सरकार का ध्यान खींचा है. राज्यपाल को भी ज्ञापन सौंपकर हमने इस विषय को उठाया है. रायपुर, बिलासपुर जैसे शहरों के बीच चौराहों पर हत्याएं हो रही है. बेटियों के साथ दुष्कर्म हो रहे हैं. थानेदार की भूमिका ऐसी रह गई है कि दस हजार रूपए लेकर जघन्य अपराधियों को छोड़ दिया जा रहा है. दबाव पड़ने पर सरकार इन अधिकारियों को लाइन अटैच कर देती है, निलंबित कर देती है, जबकि ऐसे थानेदारों को सीधे टर्मिनेट किया जाना चाहिए.
रमन सिंह ने कहा कि बस्तर में कहीं घटना होती है, तो वहां जाकर समीक्षा बैठक करने की ताकत तक इस सरकार में नहीं है. एक छोटी घटना होती थी, हम दौड़कर बस्तर जाते थे. इतने सारे बड़े-बड़े मंत्री घूमते है, लेकिन बस्तर जाने की हिम्मत किसी में नहीं है. इन सब विषयों पर बात की जाएगी, तो जवाब में रमन सिंह के 15 साल के कार्यकाल पर बात होती है. मैं क्या यह बोलकर गया हूं कि जब पूछा जाए, तो ऐसा व्यवहार करना. रमन सिंह ने कहा कि इस सरकार के 18-20 महीने निकल गए हैं, लेकिन ये अब तक 15 साल को भूले नहीं है. पांच साल भूलेंगे भी नहीं.
लेमरू प्रोजेक्ट पर टी एस सिंहदेव के बयान पर बोले रमन
लेमरू प्रोजेक्ट में प्रभावित ग्रामीणों को खुलकर विरोध करने की बात कहने वाले मंत्री टी एस सिंहदेव के बयान पर भी डाॅक्टर रमन सिंह ने निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि कैबिनेट में जब प्रपोजल आता है, तो सर्वसम्मति से पास हो जाता है. बोलने की ताकत तब नहीं होती, जब कैबिनेट में डिस्कस होता है. गांव वाले घेरते हैं, तब गांवों वालों के पक्ष में बात करते हैं. अजीत बात है. आप यदि सरकार का हिस्सा है, तो जवाबदारी सामूहिक होती है. सरकार में इनका बस नहीं है. सरकार में रहकर जहां विरोध करना चाहिए, वहां बस नहीं चलता. कभी बोलते हैं धरना दूंगा, प्रदर्शन करूंहा. कभी इस्तीफा दूंगा, मगर यह जनता को बहकावे में लाने के लिए कहा जाता है. इतनी नैतिक ताकत नहीं है कि कैबिनेट में विरोध करें.