दिल्ली. प्रसिद्ध कोच ओएम नांबियार का गुरुवार को निधन हो गया है. इन्होंने पीटी उषा जैसी सर्वश्रेष्ठ ट्रैक एंड फील्ड स्टार दिया है. उनका निधन उम्र संबंधी बीमारियों के कारण हुआ है. वह 88 वर्ष के थे. वह पार्किन्सन की बीमारी से पीड़ित थे. नांबियार के परिवार में उनकी पत्नी लीला, तीन पुत्र और एक पुत्री हैं. उन्होंने कोझिकोडा जिले वडाकरा स्थित अपने आवास पर अंतिम सांस ली.

बता दें कि सबसे पहले द्रोणाचार्य पुरस्कार हासिल करने वाले प्रशिक्षकों में से एक और इस साल पद्मश्री पुरस्कार पाने वाले नांबियार को करीब एक हफ्ते पहले अस्पताल में भर्ती कराया गया. जिसके बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. पीटी उषा ने बताया कि उन्हें 10 दिन पहले दिल का दौरा पड़ा था.

पीटी उषा ने नांबियार के निधन को करार दिया क्षति 

उन्होंने इसे निजी क्षति करार दिया. उन्होंने मीडिया से कहा, ‘यह मेरे लिए बहुत बड़ी क्षति है. वह मेरे लिए पिता समान थे और यदि वह नहीं होते तो मैं इतनी उपलब्धियां हासिल नहीं कर पातीं. नीरज चोपड़ा के ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद मैं पिछले हफ्ते ही उनसे मिली थी. मैं क्या बोल रही हूं वह समझ रहे थे, लेकिन वह बात नहीं कर पा रहे थे.’

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पूर्व वायु सैनिक नांबियार ने कोच के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान उषा सहित कई अंतरराष्ट्रीय एथलीट तैयार किए. उषा 1984 में हुए लॉस एंजेलिस ओलंपिक में मामूली अंतर से कांस्य पदक से चूक गई थीं. उषा ने बाद में भी अपने कोच से करीबी संपर्क रखा था और वह पिछले सप्ताह ही उन्हें यह बताने के लिए गई थीं कि भाला फेंक (जैवलीन थ्रो) के एथलीट नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीता है.

पीटी उषा के अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वाले, जिन एथलीटों को तैयार किया, उनमें शाइनी विल्सन (चार बार की ओलंपियन और 800 मीटर में 1985 की एशियाई चैंपियनशिप की स्वर्ण पदक विजेता) और वंदना राव प्रमुख हैं.

15 साल तक वायुसेना में रहे नांबियार 

बता दें कि नांबियार का जन्म 1932 में कन्नूर में हुआ था. बाद में वह वायुसेना से जुड़ गए थे, जिसमें उन्होंने 15 साल तक सेवा की. वह 1970 में सार्जेंट के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. उन्होंने राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला से कोचिंग में डिप्लोमा लिया और सेना के एथलीटों को प्रशिक्षण देना शुरू कर दिया.

पद्मश्री के लिए चुने जाने पर नांबियार ने कोझिकोड में अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में कहा था, ‘यह पुरस्कार पाकर मैं खुश हूं हालांकि यह मुझे काफी पहले मिल जाना चाहिए था, लेकिन मैं तब भी खुश हूं. कभी नहीं से देर भली.’

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उषा को 1985 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था, जबकि नांबियार को उस वर्ष द्रोणाचार्य पुरस्कार मिला था. उन्हें देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने के लिए अगले 36 वर्षों तक इंतजार करना पड़ा. उन्होंने कहा था कि जब उषा लॉस एंजेलिस में पदक से चूक गई थीं तो वह लगातार रोते रहे थे.

1968 में लिया कोचिंग का डिप्लोमा 

नांबियार ने 1968 में कोचिंग का डिप्लोमा लिया था और वह 1971 में केरल खेल परिषद से जुड़े थे. उषा ने 1977 में एक चयन ट्रायल में दौड़ जीती थी, जिसके बाद नांबियार ने उन्हें प्रशिक्षित किया था.