रायपुर. देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अब नहीं रहे. उन्होंने एम्स में 94 वर्ष की उम्र में गुरुवार को अंतिम सांसे ली. उनकी तबीयत बिगड़ने की खबरों के बीच बुधवार देर शाम ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एम्स पहुंचे थे, वहीं आज सुबह से ही उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू, भाजपा अध्‍यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, राहुल गांधी और लाल कृष्‍ण आडवाणी गुरुवार सुबह पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का हालचाल जानने एम्स अस्पताल पहुंचने लगे थे. वहीं सुबह लगभग 10 बजे के बाद से ही एम्स में बड़े नेताओं के आने-जाने का सिलसिला शुरु हो गया था. इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कई राज्यों के मुख्यमंत्री ने अपना आज का दौरा रद्द कर दिया.

2009 में पहली बार तबीयत बिगड़ी, वेंटिलेटर पर रखा गया

2009 में भी वाजपेयी की तबीयत बिगड़ गई थी. उन्हें सांस लेने में दिक्कत के बाद कई दिन वेंटिलेटर पर रखा गया था. हालांकि, बाद में वे ठीक हो गए और उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई. इसके बाद कहा गया कि वाजपेयी लकवे के शिकार हैं. इस वजह से वे किसी से बोलते नहीं थे. बाद में उन्हें स्मृति लोप हो गया. उन्होंने लोगों को पहचानना भी बंद कर दिया.

तीन बार प्रधानमंत्री बने 

वाजपेयी सबसे पहले 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने. बहुमत साबित नहीं कर पाने की वजह से उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. दूसरी बार वे 1998 में प्रधानमंत्री बने. सहयोगी पार्टियों के समर्थन वापस लेने की वजह से 13 महीने बाद 1999 में फिर आम चुनाव हुए. 13 अक्टूबर 1999 को वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने. इस बार उन्होंने 2004 तक अपना कार्यकाल पूरा किया. 2014 के दिसंबर में अटलजी को भारत रत्न देने का ऐलान किया गया. मार्च 2015 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने प्रोटोकॉल तोड़ा और अटलजी को उनके घर जाकर भारत रत्न से सम्मानित किया.

 

वाजपेयी ने BJP को ऐसे सियासत में शून्य से शिखर तक पहुंचाया

अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था, ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा.’ इसी का नतीजा है कि मौजूदा समय में केंद्र की सत्ता से लेकर देश की 20 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं. जनसंघ, जनता पार्टी और बाद में बीजेपी की नींव रखने वाले चेहरों में से एक नाम अटल बिहारी वाजपेयी का भी है. 6 अप्रैल 1980 को बीजेपी का गठन हुआ, एक राजनीतिक दल के रूप में पहले लोकसभा चुनाव में पार्टी के खाते में महज दो सीटें ही आई थी. इसके बावजूद वाजपेयी ने हार नहीं मानी और उन्होंने कहा था, ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा.’ इसी का नतीजा है कि मौजूदा समय में केंद्र की सत्ता से लेकर देश की 20 राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं.

अटल बिहारी वाजपेयी का जन्‍म 25 दिसंबर 1924 को हुआ, इस दिन को भारत में बड़ा दिन कहा जाता है. देश के राजनीतिक इतिहास में बीजेपी ने जब एंट्री की थी तो उस समय शायद ही किसी ने भी सोचा होगा कि एक दिन पार्टी देश के आधे हिस्से में सत्ता संभाल रही होगी. बीजेपी को शून्य से शिखर तक पहुंचाने में वाजपेयी ने सबसे अहम भूमिका अदा की. वाजयेपी 1942 में राजनीति में उस समय आए, जब भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान उनके भाई 23 दिनों के लिए जेल गए. 1951 में वाजपेयी ने आरएसएस के सहयोग से भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई जिसमें श्‍यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेता शामिल हुए.

1957 में वाजपेयी पहली बार बलरामपुर संसदीय सीट से चुनाव जीतकर राज्‍यसभा के सदस्‍य बने. वाजपेयी के असाधारण व्‍यक्तित्‍व को देखकर उस समय के वर्तमान प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि आने वाले दिनों में यह व्यक्ति जरूर प्रधानमंत्री बनेगा. 1968 में वाजपेयी राष्‍ट्रीय जनसंघ के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने. उस समय पार्टी के साथ नानाजी देशमुख, बलराज मधोक तथा लालकृष्‍ण आडवाणी जैसे नेता थे. 1975-77 में आपातकाल के दौरान वाजपेयी अन्‍य नेताओं के साथ उस समय गिरफ्तार कर लिए गए, जब वे आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी की आलोचना कर रहे थे. 1977 में जनता पार्टी के महानायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्‍व में आपातकाल का विरोध हो रहा था.

जेल से छूटने के बाद वाजयेपी ने जनसंघ का जनता पार्टी में विलय कर लिया. 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी की जीत हुई थी और वे मोरारजी भाई देसाई के नेतृत्‍व वाली सरकार में विदेश मामलों के मंत्री बने. विदेश मंत्री बनने के बाद वाजपेयी पहले ऐसे नेता थे जिन्‍होंने संयुक्‍त राष्‍ट्र महासंघ को हिन्‍दी भाषा में संबोधित किया. जनता पार्टी की सरकार 1979 में गिर गई, लेकिन उस समय तक वाजपेयी ने अपने आपकी एक अनुभवी नेता व वक्‍ता के रूप में पहचान बना ली. इसके बाद जनता पार्टी अंतर्कलह के कारण बिखर गई और 1980 में वाजपेयी के साथ पुराने दोस्‍त भी जनता पार्टी छोड़ भारतीय जनता पार्टी से जुड़ गए. वाजपेयी बीजेपी के पहले राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष बने और वे कांग्रेस सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शुमार किए जाने लगे. 1994 में कर्नाटक, 1995 में गुजरात और महाराष्‍ट्र में पार्टी जब चुनाव जीत गई उसके बाद पार्टी के तत्कालीन अध्‍यक्ष लालकृष्‍ण आडवाणी ने वाजपेयी को प्रधानमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित कर दिया था.