रायपुर- भू-राजस्व संहिता में रमन सरकार द्वारा लाये गये संशोधन के खिलाफ पूर्व केन्द्रीय मंत्री और प्रदेश कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख डॉ. चरणदास महंत ने कहा है कि पूरे छत्तीसगढ़ में और खासकर आदिवासी समाज में भू-राजस्व संहिता के इस संशोधन के खिलाफ गहरी नाराजगी है. आदिवासियो के हितों पर कुठाराघात करने के लिये रमन सरकार संविधान की मूल भावना के विपरीत जाने से भी परहेज नहीं है.  रमन सरकार की इस मनमानी के परिणाम स्परूप  आज आदिवासी समाज आंदोलनरत है.
भारतीय संविधान ने आदिवासियों को जो सुविधायें एवं अधिकार दिये हैं, अपनी संपत्ति, भूमि को सुरक्षित एवं संरक्षित करने के लिये उस मूल भावना को रमन सरकार आमूल चूल नष्ट कर रही है.  भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(5), 19(6), 244 (1) 143, 275, 368, 13(3) के खिलाफ भू-राजस्व संहिता का यह संशोधन वास्तव में संविधान का स्पष्ट उल्लंघन होने के पूर्णतः असंवैधानिक है.  राज्य सरकार यदि आदिवासियों के हित कोई निर्णय लिया है तो उसे पहले प्रदेश के आदिवासियों एवं जनप्रतिनिधियों को विश्वास में लेना था.  सरकार की गुपचुप कार्यवाही से यह स्पष्ट है कि यह उद्योगपतियों को पिछले दरवाजे से जमीन देने की साजिश है.
आदिवासियों की जमीन को आम आदमी की खरीद फरोख्त से बचाने के लिये संविधान में छठी अनुसूचि के तहत प्रावधान किये गये है.  जिस सख्त कानून से आज तक आदिवासियों की जमीन संरक्षित थी परंतु इस संशोधन से रमन सरकार चुनावी वर्ष में चला चली की बेला में उद्योगपतियों के हाथ कौड़ी के दाम बेचने के अपने कुत्सित षड़यंत्र में कामयाब हो गयी है.  इस कुचेष्ठापूर्ण षड़यंत्र का पूरी कांग्रेस पार्टी पुरजोर विरोध करती है.  भू राजस्व संहिता में आदिवासियों से संबंधित एवं उनके जमीन की खरीद-बिक्री से संबंधित जो भी संशोधन किए गए हैं वह मान्य नहीं किए जा सकते क्योंकि अनुसूचित क्षेत्र की जमीन एवं भूखंड भी इसमें शामिल होगी तथा पेशा एक्ट जो कि स्पेशल एक्ट की श्रेणी में आता है और आदिवासियों के हितों के संरक्षण के लिए केंद्र सरकार के द्वारा बनाया गया है एवं अनुसूचित क्षेत्र को संविधान में परिभाषित किया गया है तथा अनुसूचित क्षेत्र को नियंत्रित करने के संबंध में समस्त कानून बनाने का अधिकार संविधान अर्थात लोकसभा एवं राज्यसभा से पारित करते हुए राष्ट्रपति की सहमति से बनाए गए संवैधानिक संशोधन तथा नियम ही लागू किए जा सकते हैं, जबकि वर्तमान में दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से छत्तीसगढ़ शासन ने संविधान के सारे प्रावधानों को ताक पर रखते हुए एक ऐसा संशोधन कर दिया है, जिससे आदिवासियों के संपूर्ण हितों का समापन कर दिया जाएगा एवं बहुत ही जल्द संविधान की मंशा तथा संविधान के उपबंधों के विपरीत छत्तीसगढ़ सरकार आदिवासियों की भूमि को पूंजीपतियों को बेचने में स्वयं समर्थ हो जायेगी.  यह दुर्भाग्यपूर्ण नीति संविधान में प्रदत्त प्रावधानों के विपरीत है तथा इसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता.  यह संशोधन अपने आप में अवैध एवं शून्य माना जाना चाहिए.