महतां दर्शनं ब्रह्मज्जायते न हि निष्फलं
द्वेषादज्ञानतो वापि प्रसन्गाद्वा प्रमादतः
अयसः स्पर्शसंस्पर्शो रुक्मत्वायैव जायते
— ब्रह्म पुराण
अर्थ – महापुरुषों का दर्शन निष्फल नहीं होता, भले ही वह द्वेष या अज्ञान से ही क्यों न हुआ हो. लोहे का पारसमणि से प्रसंग या प्रामद से भी स्पर्श हो जाय तो भी वह उसे सोना ही बनाता है.
संगति का प्रभाव हम सब पर पड़ता है. मित्र के बिना जीवन अधूरा है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि हम अपनी मित्रता कुसंग लोगों के साथ रखे. एक कुसंग संगति का मित्र विष के सामान होता है और एक सत्संगति का मित्र औषधि. सत्संगति में रहकर हम चरित्रवान बन सकते हैं. अगर हम सत्संगति में रहते हैं तो हम अपनी जिंदगी में कभी गलत रास्ता नही पकड़ेंगे. एक सत्संगति वाला मित्र हमारा मार्गदर्शक होता है.
मित्रता ही सभी तनाव और दुख का उपचार है. मित्रता की मनोवृत्ति हमें तनाव मुक्त बनाती है. मैत्रीभाव ही हमारी प्रसन्नता का मुख्य कारण है. मैत्रीभाव संबंधो का नया संसार गढ़ता है. समूची सृष्टि प्रकृति के प्रति मित्रभाव का आनंद बड़ा है. मैत्रीभाव से सारा संसार चलायमान है. किसी को उसके जीवन में मित्रता लाभकारी होगी, इसका पता कुंडली से लगाया जा सकता है.
कुंडली का एकादश स्थान मित्रता का स्थान और चतुर्थ स्थान हर प्रकार के साथी के लिए होता हैं और इसी प्रकार सप्तम स्थान साथी का होता है. यदि इन स्थानों का स्वामी अनुकूल तथा शुभत्व लिए हो तो जीवन में मित्रता हमेशा ही फलकारी होता है. अतः आपको मित्रता का सुख ना प्राप्त हो रहा हो तो गुरू की शांति कराना, पीली वस्तुओं का दान करना मंत्र जाप करना चाहिए, जिससे आपके जीवन में कृष्ण तुल्य सखा प्राप्त हो सके और जीवन में सुख प्राप्त हो सके.