जगदलपुर. बस्तर के जंगलों में अब सिर्फ गोलियों की गूंज नहीं है. अब वहां एक वैचारिक क्रांति की आवाज गूंज रही है. बीते महीनों में सुरक्षाबलों ने नक्सलवाद पर अब तक का सबसे बड़ा प्रहार किया है. कई कुख्यात नक्सली ढेर हुए, उनके गढ़ ध्वस्त किए गए, लेकिन यह लड़ाई सिर्फ बंदूक से नहीं जीती जा सकती. नक्सलवाद की जड़ें विचारधारा में हैं और उसे जड़ से खत्म करने के लिए वैचारिक मोर्चे पर भी संघर्ष जरूरी है. इसी मकसद से जगदलपुर के टाउन हॉल में बीजिंग से बस्तर तक कार्यक्रम का ऐतिहासिक आयोजन बस्तर शांति समिति ने किया.

कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गृहमंत्री विजय शर्मा ने 1989 की थ्यानमेन चौक की घटना को याद किया. उन्होंने कहा, बीजिंग में लोकतंत्र की मांग कर रहे हजारों छात्रों को चीन की कम्युनिस्ट सरकार ने टैंकों से कुचल दिया था. गोलियों से भून दिया था. उसी माओ की विचारधारा को भारत के नक्सली आज भी अपनाते हैं. शर्मा ने बताया कि कैसे माओ को अपना आदर्श मानने वाले ये उग्रवादी पिछले चार दशकों से बस्तर को एक युद्धभूमि में बदल चुके हैं. माओवादियों ने खुद को आदिवासियों का हितैषी कहा मगर उन्हीं का खून बहाया. हजारों घर जला दिए गए. हजारों निर्दोष मारे गए और कारण सिर्फ इतना था कि उन्होंने हिंसा का समर्थन नहीं किया.

जहां कभी नक्सलियों का राज था वहां अब संविधान की रोशनी पहुंच रही

डिप्टी सीएम शर्मा ने कहा, बस्तर आज बदल रहा है. जहां कभी नक्सलियों का राज था वहां अब संविधान की रोशनी पहुंच रही है. जहां डर का साया था वहां अब उम्मीद पल रही है. स्कूल खुल रहे हैं, बच्चे पढ़ने लगे हैं. गांवों में विकास की गूंज है. ये बदलाव केवल हथियारों से नहीं आया यह उन विचारों की जीत है, जो खून के बदले शिक्षा, भय के बदले विश्वास और हिंसा के बदले संवाद की बात करते हैं.

अब देश बस्तर की असली कहानी सुनें

विजय शर्मा ने कहा, बीजिंग से बस्तर तक कोई साधारण आयोजन नहीं था. यह लाल आतंक के खिलाफ एक वैचारिक युद्ध की शुरुआत थी. यह चेतना का उद्घोष था कि अब माओ की विचारधारा को भारत की आत्मा जवाब देगी. अब बस्तर की कहानी सिर्फ बंदूकें नहीं बताएंगी, अब कैमरा, कलम और नागरिक चेतना मिलकर सच्चाई को दुनिया के सामने लाएगी. अब वक्त है कि देश बस्तर की असली कहानी सुनें, क्योंकि जो सच नहीं जानता वह झूठ का शिकार बनता है.

नक्सलवाद को खत्म करने विचारों की लड़ाई भी जरूरी

कार्यक्रम का उद्देश्य नक्सलवाद का असली क्रूर चेहरा देश और दुनिया के सामने लाना था. इस आयोजन में द बस्तर फाइल्स फिल्म के निर्माता सुदीप्तो सेन, प्रदेश के गृहमंत्री विजय शर्मा सहित अनेक बुद्धिजीवी, कलाकार, पत्रकार और आम नागरिक बड़ी संख्या में शामिल हुए. इस आयोजन के जरिए यह संदेश दिया गया कि नक्सलवाद को केवल बंदूक की ताकत से नहीं मिटाया जा सकता, इसके लिए विचारों की लड़ाई भी उतनी ही जरूरी है, क्योंकि बंदूक एक को मारती है लेकिन विचारधारा पीढ़ियों को गुलाम बना सकती है, इसलिए इस विचार को जड़ से उखाड़ना होगा. यह लड़ाई सिर्फ पुलिस या सेना की नहीं है, यह हर उस नागरिक की है, जो लोकतंत्र, विकास और शांति में विश्वास रखता है.