तनवीर खान, मैहर। 2 अक्टूबर को हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देश 155वीं गांधी जयंती माना रहे है। लेकिन मैहर जिले का सुलखमा गांव इन सब से भी अलग है। पूरा गांव गांधी जी के आदर्शो पर चलता है उन्हीं पर जीता है और उन्हीं पर रमता है, इस गांव के निवासी आज भी महात्मा गांधी के द्वारा चलाए जाने वाले चरखे को आज भी चला रहे हैं, लेकिन आज उन्हीं की रोजी रोटी पर संकट है। सुध लेने वाला कोई नहीं।
मैहर जिले का सुलखमा गांव आज भी महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपनों को साकार कर रहा है। गांव के लोग बापू को आदर्श मानकर उनके पद चिन्हों पर चलते आ रहे हैं। यहां के हर घरों में आज भी गांधी जी का चरखा चलता है। सूत काटे जाते हैं कंबल और कपड़े हाथों से बनाए जाते हैं। यही इनकी रोजी रोटी है। भले ही यहां के लोग आधुनिक दौर से काफी पीछे हो बावजूद इसके चरखे का मुंह नहीं छुटा।
जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की आबादी करीब 3000 है। पाल समाज की बहुलता वाले इस गांव के लोग स्वावलंबन को अपने जीवन में इसका हिस्सा मानते हैं। क्या बच्चे क्या बड़े क्या बुजुर्ग गांधी जी के आदर्श विरासत के तौर पर बस गई है। चरखे के अलावा भी इनका भेड़ पालन व्यवसाय है। सुलखामा के करीब 200 परिवारों में भले ही ग्राम स्वरोजगार का साधन हो पर वे उतना भी नहीं की उनके जीवन स्तर को उठा सके।
सरकारी योजनाओं को न मिल पाने का दर्द भी गांव वालों के चहरे पर साफ दिखाई देता है। जरूरत है ध्यान देने की बापू की विरासत को सहेजने की गांव वालो की जिंदगी मे रोशनी पहुंचाने की और साकार करने की ग्राम स्वराज का सपना है।
मैहर के सुलखमा गांव के लोगों को उमीद है कि जिला प्रशासन कोई मदद करेगा। लेकिन उमीद पर पानी फिर जाता है। गांव के लोगों की माने तो गांधी के ग्राम स्वरोजगार अब फीकी पड़ रही है। धीरे-धीरे कर हर घर में गांधी जी के चरखे की धुन बंद हो रही है। बाजय यह कि चरखा चला कर लोगों का जीवन यापन करने में कठिनाई का सामने करना पड़ रहा है। यहां के नवयुवक लोग पलायन करने में मजबूर हैं। ग्रामीणों के तरफ प्रशासन भी ध्यान नहीं दे रहा। कंबल बना कर तैयार तो कर लिया जाता मगर मजदूरी नहीं निकल पाती है। प्रशासन और जनप्रतिनिधियों से कई बार ग्रामीण आधुनिक चीजों की मांग की है। पर कोई सुध नहीं ले रहा। यही वजय है धीरे धीरे कर के गांधी जी के आदर्शों में चलने वाले गांव में अब चरखे की धुन धीमी पड़ती जा रही है।
2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन कई बार जिले के अधिकारी उस गांव में पहुंचे व गांव के लोगों की इस कला की प्रदर्शन का लुत्फ भी उठाया वा उन्हें आधुनिक सामान देकर उनका सहयोग करने की बात तो कहीं जिसे सुनकर ग्रामीणों के चेहरे पर खुशी भी आई। लेकिन वह खुशी नाराजगी में बदल गई है। ग्रामीणों का कहना है कि, अधिकारी आते हैं हमें आश्वासन देते हैं उसके बाद चले जाते हैं हमें मशीन देने का वादा कई सालों से किया जा रहा है। लेकिन आज तक मशीन मुहैया नहीं कराई गई है। सिर्फ 2 अक्टूबर गांधी जयंती के दिन ही हमें याद किया जाता है। उसके बाद कोई यहां पलट कर नहीं देखा ना ही उन्हें हमारे सुलखवा गांव का नाम याद रहता है
अपर कलेक्टर शैलेंद्र सिंह से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने बताया की हमें जानकारी लगी है कि जिले के सुलखवा गांव में गांधी के आदर्शों को, गांधी की विरासत को जिंदा रखा जा रहा है उनके आदर्शों पर चलकर समाज को संदेश दे रहे हैं। लेकिन उन्हें सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है। इसको लेकर हम प्रयास करेंगे और गांव का दौरा कर उनके लिए जो भी बेहतर हो सकेगा। वह करेंगे हम कोशिश करेंगे की जितने भी सामाजिक संगठन है बढ़-चढ़कर इसमें हिस्सा ले ताकि ग्रामीण द्वारा किए गए काम की वेतन मजदूरी मिल सके।
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