गणेश चतुर्थी पर भूलकर भी चांद नहीं देखना चाह‍िए. ऐसा हम सभी अपने बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं लेक‍िन क्‍या आप जानते हैं क‍ि ऐसा क्‍यों कहा जाता है? आख‍िर क्‍यों कहते हैं सब क‍ि इस द‍िन चांद देखने से कलंक लगता है? क्‍या वाकई ऐसा होता भी है? अगर ये सारे सवाल आपके भी मन में हैं तो इस लेख में आपके सारे सवालों के जवाब म‍िल जाएंगे. आइए जानते हैं.

पौराण‍िक कथा के अनुसार, एक बार गणेशजी कई सारे लड्डुओं को लेकर चंद्रलोक से आ रहे थे, रास्ते में उनको चंद्रदेव मिले. गणेशजी के हाथों में ढेर सारे लड्डू और उनके बड़े उदर को देखकर चंद्र देव हंसने लगे. इससे गणपत‍िजी को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा को श्राप देते हुए कहा कि तुम्हें अपने रूप पर बहुत घमंड है न जो मेरा उपहास उड़ाने चले हो, मैं तुमको क्षय होने का श्राप देता हूं.

गणेश चतुर्थी की एक और कथा म‍िलती है इसके अनुसार एक बार गणेशजी अपने वाहन मूषक पर सवार थे. मूषकराज को अचानक एक सांप दिखाई दिया जिसे देखकर वे डर के मारे उछल पड़े जिसकी वजह से उनकी पीठ पर सवार गणेश जी भी भूमि पर जा गिरे. गणेशजी तुरंत उठे और उन्होंने इधर-उधर देखा कि कोई उन्हें देख तो नहीं रहा. तभी उन्हें किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी. यह चंद्रदेव थे. गणेश जी अपने गिरने पर चंद्रदेव को हंसता देख रूष्ट हो गए और चंद्रमा को श्राप दिया क‍ि तुम्हारा क्षय होगा.

ये दिया था श्राप

मान्‍यता है क‍ि चंद्रमा की दशा देखकर सभी देवताओं ने मिलकर गणेशजी को समझाया और चंद्रदेव ने भी उनसे क्षमा मांगी. गणेशजी ने चंद्रदेव को क्षमा तो कर द‍िया. लेकिन उन्‍होंने कहा कि मैं अपना श्राप तो वापस नहीं ले सकता. इसल‍िए महीने में एक बार ऐसा अवश्य होगा जब क्षय होते-होते एक दिन आपकी सारी रोशनी चली जाएगी. लेकिन फिर धीर-धीरे प्रतिदिन आपका आकार बड़ा होता जाएगा और माह में एक बार आप पूर्ण रूप में दिखाई देंगे. आपका दर्शन लोग हमेशा कर सकेंगे. लेक‍िन भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन जो भी आपके दर्शन करेगा, उसको झूठे कलंक का सामना करना पड़ेगा.

लेकिन अगर भूलवश आपने इस दिन चांद देख लिया …तब क्या करें?

श्रीमदभगवतगीता के दसवें स्कंध 56-57 अध्याय में इस बात की जानकारी दी गई है कि श्री कृ्ष्ण भी चतुर्थी के दिन इस श्राप से नहीं बच पाए थे औऱ उन पर उनके मित्र प्रसेनजीत की हत्या और सूर्य की स्यामंतक मणि को चोरी कर लेने का आरोप लगा था. यहां कहा गया है कि अगर आप गलती से या भूलवश इस दिन चंद्रमा देख लेते हैं तो भगवतगीता में इस कथा को सुनने से मिथ्या कलंक की संभावना घट जाएगी. इसके अलावा जातक श्री गणेशाय नम: का 108 बार जप करके श्री गणपति को दूर्वा सिंदूर अर्पित करके विघ्न का निवारण कर सकता है औऱ उसे इस कलंक आरोपण से मुक्ति मिल जाएगी.