रायपुर. नरवा, गरवा,घुरवा,बाड़ी की दृष्टि से रायपुर जिले के आंरग विकासखंड के ग्राम बनचरौदा के गोठान में पूरे प्रदेश के लिए एक माॅडल कायम किया है. इसी कड़ी में अब रायपुर जिले में गोठानों में पैरा को सुरक्षित रखने के लिये तकनीकी सहयोग भी लिया जाएगा.

कलेक्टर डाॅ. एस. भारतीदासन के मार्गदर्शन में गत दिवस जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी डाॅ. गौरव कुमार सिंह ने कृषि, कृषि इंजीनियरिंग, जनपदों के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों की बैठक लेकर कलस्टरों के गौठानों में बेलर जैसे कृषि यंत्रों के उपयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया. इससे जनसहयोग से गौठान में पशुओं के लिए चारे की उपलब्धता बढ़ाने तथा धान कटाई और बाली को निकालने के उपरांत पैरे को बंडल बनाकर ट्रांसपोर्ट एवं लंबे समय तक उपयोग में लाने में मदद मिल सकेगी. इससे स्व-सहायता समूहों की महिलाओं को स्वरोजगार एवं आय अर्जन का अतिरिक्त साधन भी मिल सकेगा. सबसे बड़ी बात यह होगी कि किसान खेत के पैरा को आग लगाकर नष्ट करने के स्थान पर सदुपयोग करने की दिशा में बेहतर कार्य कर सकेंगे.

गौरतलब है कि राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा पर्यावरण प्रदूषण के स्तर में कमी लाने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्देश दिए गए है. गत दिनों दिल्ली जैसे स्थानों में पैरा या पराली जलाने आदि के कारण पर्यावरण प्रदूषण ने भयावह रूप ले लिया था. इस संबंध में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा नरवा,गरवा,घुरवा,बाड़ी के माध्यम से पैरा को खाद बनाने, पशु चारा बनाने तथा पर्यावरण को बचाने की बात की गई थी और राज्य के नागरिकों एवं किसानोें से अपील की गई थी.

जिले के किसानों से आग्रह किया कि वे पैरा नहीं जलाये बल्कि इसे गेठानों को जनहित में ज्यादा से ज्यादा दान करें. इसी तारतम्य में अब तक रायपुर जिले के 276 गांवों के 3719 किसानों ने अपने एक लाख छः हजार एक सौ चैरासी क्विंटल पैरा गौठानों के लिए दान करने पर सहमति दी है. इसमें से धरसीवा विकासखण्ड के 487 कृषक द्वारा 10,783 क्विंटल, आरंग के 932 कृषक द्वारा 47,750 क्विंटल, अभनपुर के 841 कृषक द्वारा 14140 क्विंटल और तिल्दा विकासखण्ड के 1459 कृषक द्वारा 33,511 क्विंटल पैरा गोठानों में दान करने की बात कही गई है.

खेतों में कृषि अवशेषों को नहीं जलाने की अपील की गई और इसके माध्यम से खेतों में जैविक खाद बनाकर उर्वरक बनाने की अपील भी की गई. बैठक में गौठानों में महिला स्व-सहायता समूहों की सहायता से और गोबर से गमला बनाने, वर्मी कम्पोस्ट बनाने के साथ-साथ अगरबत्ती, दोना पत्तल, कागज पत्तल , कपड़े का थैला, साबुन बनाने जैसे कार्यों को विस्तार देने के निर्देश दिए गए.