प्रज्ञा प्रसाद, रायपुर। खबर आई कि महाराष्ट्र के यवतमाल के इंजीनियर ने अपने पुरुष मित्र से शादी कर ली है. यहां के युवक ने इंडोनेशिया में रहने वाले अपने समलैंगिक साथी से शादी की. दोनों ही अमेरिका की एक कंपनी में साथ काम करते हैं.
बात करें अगर समलैंगिक संबंधों की, तो ये युवाओं को गर्त में लेकर जा रहा है. कई लोग कहते हैं कि ये एक व्यक्ति की पर्सनल चॉइस है. उसे अपना सेक्शुअल पार्टनर चुनने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. लेकिन मेरे मुताबिक हमारी प्रकृति में जिन भी चीजों का निर्माण हुआ है, उसमें कुछ भी बेकार या फालतू नहीं है.
स्त्री और पुरुष की शारीरिक संरचना भी इस बात की ओर इशारा करती है कि सेक्शुअल पार्टनर कौन होना चाहिए.
अगर प्रजनन के हिसाब से देखें, तो भी प्रकृति ने गर्भाशय स्त्री को दिया, पुरुष को नहीं दिया. दोनों को अधूरा बनाया. दोनों में कुछ न कुछ कमियां छोड़ीं और दोनों एक-दूसरे के संयोग से ही पूर्ण होते हैं.
समलैंगिकता लेकिन मानसिकता वही
सबसे बड़ी बात तो ये है कि समलैंगिक खुद भी औरत-मर्द की मानसिकता से बाहर नहीं निकल पाए हैं. समलैंगिकों में भी सचमुच में कहां औरत-औरत या फिर मर्द-मर्द के बीच रिश्ता होता है. वहां भी तो एक औरत और मर्द में ही रिश्ता होता है. नहीं समझे आप.. मैं समझाती हूं..
दरअसल क्या आपने कभी गौर किया है कि समलैंगिकों में भी एक का व्यवहार लड़कियों की तरह होता है और दूसरे का मर्द की तरह. एक मन से खुद को पुरुष समझता है और दूसरा खुद को स्त्री. कई समलैंगिक तो अपनी वेशभूषा को भी स्त्री और पुरुष की तरह रखते हैं.
शिव हैं अर्धनारीश्वर
भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर रूप धारण किया. इसका भी यही मैसेज है कि दोनों मिलकर ही पूर्ण होते हैं. दोनों मिलकर ही नई सृष्टि को भी जन्म देते हैं. समलैंगिक नई सृष्टि को जन्म नहीं दे सकते हैं और चाहे कोई कितनी भी दलीलें दे दें कि बच्चे गोद लिए जा सकते हैं या सरोगेसी से पाए जा सकते हैं. लेकिन ये भी सच है कि बायोलॉजिकल माता-पिता बनने का अनुभव बिल्कुल अलग होता है. साथ ही जो जिम्मेदारी जैविक माता-पिता निभाते हैं, उनके मन में बच्चों के लिए जो नैसर्गिक प्रेम होता है, वो दुर्लभ है और आश्चर्य करने वाला भी. क्योंकि बुरे से बुरा शख्स भी अपने बच्चों के लिए बुरा नहीं होता, अगर अपवादों की बात न करें तो.
फिर अगर सभी समलैंगिक हो जाएं, तो फिर सरोगेट मदर भी कहां मिलेंगी और गोद लेने के लिए भी बच्चे कहां मिलेंगे.
कई गंभीर बीमारियों का खतरा
समलैंगिक संबंधों में गंभीर बीमारियों का खतरा होता है. ऐसे लोगों में एचआईवी, एड्स और अन्य संक्रामक रोगों का खतरा बहुत ज्यादा होता है. यौन रोगों का आंकड़ा भी समलैंगिकों में बहुत ज्यादा होता है. एनल और ओरल सेक्स सेक्लेमाइडिया, गोनोकोकल संक्रमण होता है.
इसके अलावा समलैंगिको में आंत के संक्रमण, सर्वाइकल कैंसर की आशंका ज्यादा होती है. एक शोध के मुताबिक भी 30 प्रतिशत लेसबियन को यौन संक्रमण होता है. समलैंगिक स्त्रियां यानि लेस्बियन गर्भनिरोधक दवाओं का इस्तेमाल नही करती हैं, और न ही इनके बच्चे होते हैं. इन कारणों से इनमें स्तन और एंडरोमेट्रीअल कैंसर ज्यादा पाया जाता है.
मानसिक स्वास्थ्य समस्या
एक शोध की मानें तो करीब 75 प्रतिशत समलैंगिक व्यक्तियों को डिप्रेशन का शिकार पाया गया है. साथ ही आत्महत्या, मादक द्रव्यों के सेवन और रिश्ते की समस्याओं की आशंका भी ज्यादा पाई गई.
समाज पर असर
वहीं समाज पर भी समलैंगिक शादी का बुरा असर पड़ेगा. क्योंकि समाज की अपनी संरचना होती है. उसमें माता-पिता, भाई-बहन, पति-पत्नी सभी रहते हैं. ये संरचना समलैंगिक शादी से बिखरेगी. महिला और पुरुष के सोच में भी भिन्नता होती है, यही वजह है कि एक परिवार के अंदर महिला और पुरुष जब दोनों रहते हैं, तो परिवार और समाज का विकास ज्यादा हेल्दी और संतुलित तरीके से होता है. बच्चे और बुजुर्ग भी ऐसे परिवार में ज्यादा सुरक्षित रहते हैं. परिवार के बीच ज्यादा भावनात्मक लगाव भी होता है. बच्चों को माता-पिता दोनों की संतुलित परवरिश मिलती है.
(ये लेखक की निजी राय है)