बलरामपुर। पूरे छत्तीसगढ़ में पूरे उल्लास और भक्तिभाव से नवरात्र का पर्व मनाया जा रहा है. बलरामपुर में आदिवासी समाज अपने अनोखे और पारंपरिक रीति-रिवाजों से माता की पूजा-अर्चना करते हैं. यहां बैगा पूजा का अपना अलग धार्मिक महत्व है. इस पूजा में बैगा देवार देवी का दरबार लगाते हैं.

लोहे की सलाखों से भेदते हैं अपने गाल

बैगा समाज लोहे की सलाखों से अपने गाल और जीभ भेदते हैं. उनका मानना है कि इससे देवी प्रसन्न होती हैं. लोगों का मानना है कि इस तरह पूजा-अर्चना करने से खुशहाली आती है और नकारात्मक ताकतों से गांव को छुटकारा मिलता है.

 

बैगा देवार अपने पूर्वजों के समय से चले आ रहे रीति-रिवाजों का अनुशरण करते हैं. यहां के लोगों की देवी मां में बहुत आस्था है. उनका कहना है कि देवी मां खुद उनके दरबार में आती हैं.

लोगों का कहना है कि मां उनकी मनोकामना जरूर पूरी करती हैं, इसलिए पूरा गांव 9 दिनों तक देवी की आराधना में पूरी श्रद्धा के साथ लगा रहता है.

 

महानवमी के बलि देने की प्रथा

महानवमी के दिन बकरे की बलि देने की प्रथा बरसों से चली आ रही है. इसके बाद ही अनुष्ठान पूरा माना जाता है. इस इलाके के लोग मानते हैं कि बैगा आदिवासियों की पूजा से माता प्रसन्न होती हैं.