पुरषोत्तम पात्रा, गरियाबंद. बच्चे पढ़ेंगे देश का भविष्य गढ़ेंगे, यह वाक्य कहने और सुनने में कितना अच्छा लगता है, मगर क्या बिना पढ़ाई के ही बच्चे देश का भविष्य गढ़ पाएंगे. यह हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि गरियाबंद में एक ऐसा ही गांव है ईचरादी, जहां सरकार ने स्कूल नहीं खोला तो ग्रामीणों ने मिलकर खुद ही स्कूल खोल दिया और चंदा इकट्ठा कर स्कूल में शिक्षक भी रख लिया. फिलहाल यहां पहली से 5वीं तक के 46 बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि ग्रामीणों ने स्कूल की मांग नहीं की हो. प्रदेश के मुखिया से लेकर शिक्षा मंत्री तक ग्रामीणों ने अपने बच्चों के लिए गुहार लगाई लेकिन सफलता नहीं मिली. ईचरादी कोचेंगा पंचायत का आश्रित गांव है. कोचेंगा में शासकीय मिडिल स्कूल है, लेकिन कोचेंगा से ईचरादी के बीच 11 किमी की दूरी वह भी घने जंगल के बीच से गुजरना पालकों को मंजूर नहीं था. इसके अलावा ईचरादी से 4 किमी दूरी पर स्थित कोचेंगा के ही आश्रित गॉव गरीबा में भी मिडिल स्कूल है, लेकिन यहां जाने के लिए भी बच्चों को घने जंगल से गुजरना पड़ता है, जिसकी वजह से गांव में ही स्कूल खोलने की मांग कर रहे थे.

लेकिन जब जिम्मेदार अधिकारी और नेता मांग रखने के बाद भी जब स्कूल खोलने के लिए जब की दिशा में जब कोई काम नहीं कर पाए तो ग्रामीणों को स्वयं कदम उठाना पड़ा. और एक नई मिसाल कायम कर दी. अब देखना यह है कि ईचरादी जैसे अन्य गांव भी कोई प्रेरणा लेकर ऐसा ही कदम उठाते हैं क्या.