सदफ हामिद, भोपाल। मध्य प्रदेश में दो सालों से बंद पड़े स्कूल 20 सितंबर से खोल दिए गए हैं, लेकिन इस बीच बड़ी अहम बात ये है कि सरकारी स्कूलों को बिना मैंटेनेंस ही खोल दिया गया है. प्रदेश के 90 हजार सरकारी स्कूलों के बैंक खातों का बैलेंस जीरो है. जिससे स्कूल प्रबंधन के पास व्यवस्थाएं जुटाने के लिए फंड ही नहीं है. कोरोना के बीच खुले स्कूलों का मैनटेनेंस, सैनेटाइजेशन, साफ-सफाई से लेकर एग्जाम के पेपर तक के लिए स्कूल प्रबंधन को जूझना पड़ रहा है. इस बीच बड़ा सवाल पैदा होता है कि क्या ये बच्चों की जान के साथ खिलवाड़ नहीं है.
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दरअसल, प्रदेश के सरकारी स्कूलों को हर साल आकस्मिक फंड दिया जाता है. जिससे स्कूलों का रखरखाव, व्यवस्थाएं, फर्नीचर, भवन की मरम्मत, और सालभर होने वाले खर्च, जैसे बच्चों के एग्जाम पेपर, स्टेशनरी पर होने वाला खर्च, डेली बेस्ड सफाईकर्मियों की पैमेंट जैसे कई खर्च शामिल हैं, लेकिन कोरोना काल में 2 सालों से स्कूल बंद होने से सरकारी स्कूलों को फंड नहीं मिला और सरकार ने स्कूलों को बिना फंड दिए ही खोल दिया है. जिससे कई स्कूलों का मैनटेंनेंस नहीं हो पाया तो, कई स्कूल साफ-सफाई सैनेटाइजर जैसी व्यवस्थाओं के लिए जूझ रहें हैं. जिसके चलते अब स्कूल संचालक सरकार से जल्द से जल्द फंड देने की मांग कर रहे हैं.
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वहीं भोपाल के जिला शिक्षा अधिकारी नितिन सक्सेना का कहना है कि उन्होनें इसको लेकर राज्य शिक्षा केंद्र को नोटशीट भेज दी है. जिसमें सरकारी स्कूलों को आकस्मिक फंड जल्द से जल्द रिलीज करने को कहा गया है.
इस पूरे मामले पर सियासत अब सियासत भी शुरु हो गई है. कांग्रेस का आरोप है कि प्रदेश के सरकारी स्कूल फंड की कमी से जूझ रहें हैं. स्कूल किस तरह से सैनेटाइजर साफ सफाई, बच्चों की सुरक्षा के लिए इंतेजाम करेंगे. 2 साल में सरकार ने स्कूल शिक्षा विभाग को फंड नहीं दिया. जिसका खामियाजा बच्चे और शिक्षक भुगत रहे हैं. प्रदेश सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि ये सरकार सिर्फ बोलने वाली सरकार है. धरातल पर सरकार द्वारा कुछ काम नहीं किया जाता.
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वहीं सरकार का कहना है कि अभी कोरोना के पेंडमिक से निकले हैं. स्कूल खोले गए हैं. सरकार स्कूलों की पूरी व्यवस्था को लेकर सजग है और फंड को भी निर्धारित रूप में लाया जा रहा है. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि फंड में भ्रष्टाचार करने का काम कांग्रेस ने किया है.
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