रायपुर। छत्तीसगढ़ शासन की महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बारी के तहत नरवा संवर्धन-संरक्षण का काम वाटरशेड, जीआईएस और सिविल इंजीनियरिंग की आधुनिक तकनीकों से किया जाएगा। इसके अंतर्गत किए जाने वाले कार्यों का तकनीकी मानक, डिजाइन और गुणवत्ता इस तरह सुनिश्चित की जाएगी कि इसका अधिकतम और दीर्घकालिक लाभ लोगों को मिले। भूजल स्तर में सुधार और सिंचाई के लिए वर्ष भर पानी की उपलब्धता के लिए नरवा संवर्धन-संरक्षण के पहले चरण में हर विकासखंड में दस-दस नरवा पर काम किया जाएगा। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अपर मुख्य सचिव आर.पी. मंडल ने सभी कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को प्रस्तावित नरवा विकास क्षेत्र का स्थल निरीक्षण करने के निर्देश दिए हैं। उन्होंने परिपत्र जारी कर 10 दिनों के भीतर डीपीआर भी तैयार करने कहा है।

पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने डीपीआर में तकनीकी मानकों, डिजाइन, गुणवत्ता और समय-सीमा को अनिवार्यतः शामिल करने के निर्देश दिए हैं। नरवा वाटरशेड के डीपीआर में वाटरशेड, जीआईएस और सिविल इंजीनियरिंग के सिद्धांतों व तकनीकों के इस्तेमाल को शामिल करने कहा गया है। नरवा संवर्धन के काम में रिज टू वैली (Ridge to Valley) और सर्वेक्षण के वर्किंग फ्रॉम व्होल टू पार्ट (Working from Whole to Part) सिद्धांत का उपयोग करते हुए परिणाममूलक कार्ययोजना तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं। कलेक्टरों और जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों को डीपीआर में प्रथम चरण में संबंधित नरवा वाटरशेड को शामिल करने का आधार, चुनौतियां, बेसलाइन सर्वे, अपेक्षित लाभ, विभिन्न विभागों से अभिसरण की संभावना, जन सहभागिता, टीम वर्क प्लान और मितव्ययता जैसे पहलुओं को भी शामिल करने कहा गया है।

सरकार ने नरवा संवर्धन-संरक्षण के लिए ऐसे नालों को प्राथमिकता से शामिल करने के निर्देश दिए हैं जिनमें वर्ष भर पानी रहने की अधिकतम संभावना हो। जिन नालों से बरसात में खेतों की सिंचाई होती है, लेकिन बरसात के बाद सूख जाते हैं, ऐसे नालों का भी चयन करने कहा गया है। इन नालों के संवर्धन से भूजल स्तर सुधरने तथा कृषि रकबा एवं प्रति व्यक्ति आय बढ़ने जैसे परिणाम त्वरित रूप से नजर आएंगे।

परिपत्र में कहा गया है कि जल संरक्षण के लिए जरूरी संरचनाओं के निर्माण और नरवा वाटरशेड ट्रीटमेंट के लिए ‘भुवन’ एप की मदद से जियोमॉर्फोलॉजी, लिनियामेंट, मृदा क्षरण, ग्राउंड वाटर प्रास्पेक्ट, स्लोप और लैंड यूज लैंड कव्हर का विश्लेषण कर समुचित डीपीआर तैयार किए जाएं। ‘गुगल अर्थ प्रो’ की भी मदद इसमें ली जा सकती है। आधुनिकतम तकनीक के उपयोग से डीपीआर बनाने के साथ ही इसका सत्यापन सर्वे ऑफ इंडिया की टोपोशीट से भी करने के निर्देश पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने दिए हैं। साथ ही ट्यूबवेलों में 15 जून एवं 15 अक्टूबर का जलस्तर, खरीफ व रबी फसलों के सिंचित रकबे, वाटर बजटिंग के आंकड़ें तथा ग्रामीणों से चर्चा से प्राप्त तथ्यों को भी डीपीआर में शामिल करने कहा गया है।