छत्तीसगढ़ में वर्षभर प्रत्येक माह त्योहार होता है. इसमें सावन महीना के प्रमुख त्योहार हरेली यानि हरियाली कृष्णपक्ष अमावस्या के दिन मनाई जाती है. छत्तीसगढ़ में अक्षय तृतीया से कृषि वर्ष की शुरूआत होती है और फिर धान समेत खरीफ फसल की बोआई और रोपाई होता है. निंदाई-गुढ़ाई के बाद आषाढ़ की समाप्ति तक फसल की स्थिति संभल जाती है. वहीं पूरी धरती में जब पूरी हरियाली छा जाती है. तब प्रमुख त्योहार हरियाली मनाई जाती है. उस दिन छत्तीसगढ़ के किसान अपने पशुधन, कृषि उपकरण, ग्राम देवी-देवता और धरती की पूजा करते हैं.

ग्रामीण व्यवस्था में नाई, धोबी, पुरोहित, बैगा, लोहार, चरवाहा आदि पैनी-पसारी की व्यवस्था है. इसमें ज्यादातर यादव समुदाय के लोग पशुधन चरवाहे का काम करते हैं. गांव में हरियाली के दिन पहले ग्राम के चरवाहा वर्ग के लोग जंगली से जड़ी-बूटी लाकर पशुधन के लिए औषधि तैयार करते हैं. जिसे हरियाली की सुबह गोठान में पशुधन को सेवन कराया जाता हैं. किसान उस दिन अपने पशुधन को बट्टी रोटी, महुआ, नमक आदि औषधियुक्त पदार्थ भी खम्हार पत्ती के साथ खिलाते हैं, ताकि उनका पशुधन स्वस्थ रहे. चरवाहा वर्ग के लोग गोठान के प्रमुख देवी-देवता की पूजा कर होम करते हैं. इसके बदले में किसान उन्हें दान देते हैं.

किसान अपने आंगन में रेत और कंकड़ को बिछाकर हल समेत अन्य कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं. इसमें गुड़ और गेहूं आंटे से बने विशेष पकवान गुरहा चीला चढ़ाने का प्रावधान है. किसान अपने पशुधन, कृषि उपकरण और प्रकृति की पूजा कर कृतज्ञता जाहिर करते हैं. उस दिन चरवाहा वर्ग के लोग ग्रामीणों में बेहतर स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक घर के दरवाजे में नीम पत्ती समेत औषधि पौधे लगाते है. लोहार समुदाय के लोग चौखट में कील लगाते हैं. मान्यता की इससे घर में किसी प्रकार से अनिष्ट प्रवेश नहीं करता. इस दिन ग्रामीण अंचल के बैगा, तांत्रिक और पुरोहित आदि मंत्र सिद्धि करते हैं. उसी दिन नए शिष्य बनाने और गुरू गद्दी देने का प्रावधान भी है. हरियाली के दिन पारंपरिक खेलकूद का आयोजन होती है. इसमें प्रमुख रूप से कब्बडी, खुडुवा, चर्चा, दौड़, नारियल फेंक आदि शामिल है. बच्चों के लिए गेंड़ी का तैयार किया जाता है. कहीं-कहीं गेंड़ी दौड़ भी होती है.

दुनिया में बिखरी संस्कृति की छंटा

समूचा छत्तीसगढ़ सांस्कृतिकरूप बेहद समृद्ध है. यहां की लोक कला और संस्कृति छंटा दुनिया के कई देशों तक पहुंच चुकी है. छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद यहां के तीज-त्योहार, लोक कला और संस्कृति का महत्व और भी बढ़ा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार बनने के बाद से छत्तीसगढ़ी कला, लोक संस्कृति, तीज-त्योहार, खान-पान की ख्याति दुनिया के हर कोने में पहुंच रही है. मुख्यमंत्री के इन क्षेत्रों में व्यक्तिगत रूची के कारण छत्तीसगढ़ी संस्कृति को एक नया आयाम मिला. इससे छत्तीसगढ़ के निवासी गौरवान्वित हुए और छत्तीसगढ़ियों का आत्मविश्वास बढ़ा है. हरियाली त्योहार का संबंध किसान, खेती और पशुधन से है. रोका छेंका, नरवा, गरूआ, घुरवा, बारी जैसी किसान हित योजना से किसान और खेती दोनों को संरक्षण मिल रहा है.

सरकार ने बढ़ाया मान

वर्तमान भूपेश सरकार की कार्य और कुशल नीतियों के कारण दम तोड़ रही पारंपरिक त्योहार, लोक कला और संस्कृति पुर्नजीवित हुई है. राज्य सरकार ने हरेली के पर्व पर अवकाश घोषित किया है. किसान हितैषी सरकार होने के कारण जनप्रतिनिधि, अधिकारी-कर्मचारी तथा सरकार से जुड़े लोग भी अब गोठान तक पहुंच रहे हैं. इससे किसान और खेती-किसानी से जुड़े किसानों का आत्मविश्वास और मान बढ़ा है. सरकार किसी भी हो, लेकिन अन्नदाता किसान और उनके खेती से जुड़ी संस्कृति को बढ़ावा देना आवश्यक है, किसानों को संरक्षण मिलना आवश्यक है ताकि किसानों का मान-सम्मान बढ़े और वे दुनिया के सभी वर्ग के लोगों के लिए बिना किसी बाधा के लिए अनाज समेत अन्य भोजन सामाग्री पैदा कर सकें.