राजनीतिक संपदाक रूपेश गुप्ता/ कैमरामैन रेखराम देवांगन की गरियाबंद से विशेष रिपोर्ट

पड़ोसी राज्य उड़ीसा की सीमा से लगने वाला जिला है गरियाबंद. इसी जिले में उदंती अभ्यारण्य. इस अभ्यारण्य के साथ सीता नदी टाईगर रिजर्व क्षेत्र. एक ऐसा इलाका जो पूरी तरह से वन विभाग की घेरे बंदी में है. मतलब यहाँ इलाके रहवासियों को छोड़कर कोई भी बाहरी बिना इजाजत जंगल में प्रवेश नहीं कर सकता. लेकिन इसी इलाके जब ख़बर आई कि 25 एकड़ जंगल साफ कर दिया गया है और पड़ोसी राज्य उड़ीसा के लोगों ने कब्जा कर लिया तो राजधानी में हड़कंप मच गया. जैसे ही ये बातव वन मंत्री मो. अकबर तक पहुँची उन्होंने तत्काल जाँच समिति भी गठित कर दी.

लेकिन असल में वहाँ पर अभी स्थिति है क्या ? इसी का पड़ताल करने lalluram,com की टीम पहुँची उस स्थल पर जहाँ पर उड़ीसा के लोगों ने कब्जा कर लिया था. सबसे पहले सफ़र की शुरुआत राजधानी रायपुर से हुई, फिर अभनपुर, राजिम होत हुए हम पहुँचे जिला मुख्यालय गरियाबंद. यहाँ से हमारे साथ वन समितियों के कुछ साथी, कुछ स्थानीय पत्रकार और अधिकारी भी जुड़े. हम सभी अब उदंती अभ्यारण्य की ओर आगे बढ़े. आपको यहाँ यह भी बता दे कि यह इलाका माओवादी प्रभावित भी है. खैर टीम आगे बढ़ रही और जंगल घना होते जा रहा था. कुछ किलोमीटर की दूर तय करने के बाद हमारी उदंती अभ्यारण्य में प्रवेश कर चुकी थी.

अभ्यारण्य के भीतर कुछ दूर रास्ता दो पहिया वाहन से तय हुआ. लेकिन जिस जगह पर हमें पहुँचना वहाँ आगे का सफ़र पैदल ही तय करना था. नदी, पहाड़, घने जंगल को पार करते हुए हम आखिरकार उस जगह पर पहुँच गए जहाँ उड़ीसा के हथियारबंद लोगों ने कब्जा कर लिया था. मौके पर पहुँचने के बाद हमें बड़े पैमाने पर पेड़ कटे हुए, झोपड़ पट्टी के समान बिखरे हुए मिले.

स्थानीय निवासी और वन समितियों का कहना था, कि अधिकारियों की लापरवाही का ही यह नतीजा है. यह पूरी तरह से रिजर्व क्षेत्र है. ऐसे में बिना अधिकारियों के सहयोग से कोई यहाँ रहने लग जाए, बसाहट हो जाए ऐसा संभव नहीं. 25 एकड़ तक जंगल का सफाया हो जाए और अधिकारियों को पता न चले यह कैसे संभव है ? सारी घटनाएं स्थानीय अधिकारियों की जानकारी में रही होगी. वो तो यह मामला जंगल से जिला मुख्यालय और फिर आगे मीडिया में सामने आया तो कुछ कार्रवाई हुई थी. इसमें कब्जा करने वाले लोगों को हटाया गया था, गिरफ़्तारियाँ भी हुई, जेल भी भेजे गए. लेकिन इतनी ठोस कार्रवाई नहीं हुई कि उन्हें सजा हो पाती. कमजोर धारा लगने की वजह जमानत कब्जाधारी छूटते गए. आज भी तीर-कमान और अन्य हथियारों के साथ घुसपैठ जारी है.

यह सब उसी इलाके में हम सुन रहे थे, जहाँ पर कुछ समय तक प्रदेश के बाहरी लोगों का कब्जा था. यह एक तरह से हमारे किसी जंगल की रहस्यमयी कहानी से कम नहीं था, लेकिन था पूरी तरह से सच ! क्योंकि प्रमाण हमारे आँखों के सामने भी था. ग्राउंड रिपोर्ट का अभी ये एक हिस्सा है, इसके कई हिस्से अभी बाकी है. क्योंकि अभी अधिकारियों की नाकामी या कहिए मिलीभगत का पूरा चेप्टर बाकी है.  पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए lalluram.com