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जीएसटी लागू होने में अब हफ्ते से भी कम का वक्त बचा है. ऐसे में कारोबारी कैसे इस नई कर व्यवस्था से खुद को जोड़ सकते हैं. आईए जानते हैं.

जीएसटी के लिए रजिस्ट्रेशन 

जीएसटी कानूनों के तहत टैक्सबेल प्रॉडक्ट्स और सर्विसेज की सप्लाइ करने वाली कंपनियों को उन सभी राज्यों में रजिस्टर कराना होगा, जहां वे सप्लाई करती हैं. फिलहाल किसी मौजूदा कानून के तहत किसी राज्य में रजिस्टर्ड संस्थाओं को अब जीएसटी की व्यवस्था में माइग्रेट होना होगा. इसके अलावा अनरजिस्टर्ड संस्थाओं को संबंधित राज्यों में रजिस्टर कराना होगा. इस काम के लिए विंडो की शुरुआत 25 जून से हुई है और यह एक महीने तक चलेगी.

इनवॉइस के लिए IT सिस्टम 
जीएसटी लागू होने के पहले दिन से ही आईटी सिस्टम्स को तैयार रखें ताकी इनवाइस जारी कर सकें. इनवाइस के फॉर्मेट्स में जितना जल्दी संभव हो बदलाव करें. जीएसटी के मुताबिक आपको कस्टमर से संबंधित डेटा और टैक्स कोड को आईटी सिस्टम में अपडेट करना होगा.

अपनी टैक्स पोजिशंस को फाइनल करें
गुड्स और सर्विसेज की सप्लाइ पर जीएसटी व्यवस्था के तहत टैक्स लगेगा. क्रेडिट प्रोविजन्स में भी बदलाव देखने को मिलेगा. यदि एक कंपनी कई राज्यों में रजिस्टर्ड है तो जीएसटी के लिए अलग कंपनी के तौर पर माना जाएगा. जीएसटी के तहत यह जरूरी है कि ट्रांजैक्शंस को संस्था के आईटी सिस्टम में कन्फिगर किया गया हो.

अपने बिजनस प्रॉसेसेज को अपडेट करें
अभी मैन्युफैक्चरिंग या गुड्स की सेल्स या फिर सर्विसेज के प्रोविजन पर टैक्स लगता है, लेकिन नई व्यवस्था में गुड्स और सर्विसेज की सप्लाइ पर टैक्स लागू होगा. इसके अलावा प्रक्रिया में भी कई संशोधन किए गए हैं. जैसे, अनरजिस्टर्ड वेंडर्स से परचेज की स्थिति में सेल्फ इनवाइसिंग. इसलिए इन बदलावों के अनुसार बिजनस प्रॉसेसेज को अपडेट करना होगा.

वेंडर्स और कस्टमर्स के साथ कॉन्ट्रैक्ट में करें संशोधन
मौजूदा अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था के तहत इनपुट सर्विसेज और इन सेवाओं के लिए इनवॉइस रिसीव करने वाले कस्टमर्स की लोकेशन की जरूरत नहीं होती. जीएसटी की व्यवस्था के तहत जब तक सभी राज्यों में क्रेडिट पूल अलग से मेनटेन नहीं होता है. तब तक यह जरूरी है कि इनपुट सर्विसेज पर इनवॉइस वहीं रिसीव हो, जहां सर्विसेज मुहैया कराई जाएं.

प्रॉडक्ट का प्राइस तय करने में बरतें सावधानी
फिलहाल सप्लाई चेन पार्टनर्स मसलन डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिटेलर्स के मार्जिन का आकलन इस मान्यता पर होता है कि वे अपने बिक्री मूल्य पर सिर्फ वैट देने के लिए जिम्मेदार हैं. आने वाले दिनों में सप्लाई चेन पार्टनर्स को भी अपने बिक्री मूल्य पर जीएसटी देने की जरूरत होगी और टैक्स रेट में बदलाव और क्रेडिट की उपलब्धता के कारण इसी के हिसाब से उनके मार्जिन का फिर से आकलन करने की जरूरत होगी.

सही वक्त पर टैक्स के लिए क्रेडिट क्लेम करें
जीएसटी कानून में इकट्ठा टैक्स क्रेडिट को आगे बढ़ाने के अलावा बचे हुए स्टॉक पर भुगतान किए गए विभिन्न टैक्स क्लेम करने के लिए प्रावधान किए गए हैं. इसके लिए तय शर्तों का पालन करना होगा. इसके अलावा, वैट क्रेडिट बैलेंस को आगे बढ़ाने के लिए टैक्सपेयर्स को फॉर्म सी, फॉर्म एफ, फॉर्म एच आदि के रूप में टैक्स डिक्लेरेशन फॉर्म या सर्टिफिकेट दाखिल करना होगा.