Norway Chess 2025: नॉर्वे चेस 2025 टूर्नामेंट में भारत के मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन डी गुकेश ने एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। उन्होंने छठे दौर के मुकाबले में अपने करियर में पहली बार पूर्व वर्ल्ड नंबर-1 मैग्नस कार्लसन को क्लासिकल टाइम कंट्रोल फॉर्मेट में मात दी । यह मुकाबला गुकेश के लिए खास इसलिए भी रहा क्योंकि कार्लसन ने पहले राउंड में उन्हें हराया था।

दबाव में भी नहीं टूटी गुकेश की एकाग्रता

स्टावेंजर में खेला गया यह मुकाबला रोमांच से भरपूर रहा। 18 वर्षीय गुकेश ने सफेद मोहरों से खेलते हुए शुरुआत से ही अनुशासन दिखाया और कार्लसन की हर चाल का मजबूती से जवाब दिया। हालांकि मैच के बीच तक कार्लसन बेहतर स्थिति में नजर आ रहे थे, लेकिन गेम के अंतिम क्षणों में उन्होंने एक चूक कर दी और यहीं से मैच का रुख बदल गया।

गुकेश ने इस मौके का पूरा फायदा उठाते हुए इतिहास रच दिया। उन्होंने संयम और सटीक रणनीति के साथ मैच खत्म कर दिया। हार से बौखलाए कार्लसन को चेस बोर्ड पर गुस्से में हाथ पटकते हुए देखा गया। बाद में वो बिना किसी से बात किए सीधे अपनी कार में बैठकर वहां से रवाना हो गए।

गुकेश से क्लासिकल में हार कार्लसन के लिए बड़ी झटका

गौरतलब है कि इस फॉर्मेट में कार्लसन खुद को ‘राजा’ मानते रहे हैं। कुछ दिन पहले ही उन्होंने गुकेश के खिलाफ जीत के बाद एक क्रिप्टिक सोशल मीडिया पोस्ट किया था – “अगर आप किंग के करीब आते हैं, तो चूकना मत।” लेकिन अब वही गुकेश ने उन्हें उनके ही खेल में मात दे दी। यह दूसरी बार है जब किसी युवा भारतीय खिलाड़ी ने Norway Chess टूर्नामेंट में क्लासिकल फॉर्मेट में कार्लसन को हराया है। इससे पहले 2024 में आर. प्रग्गनानंदा ने यह कारनामा किया था।

गुकेश ने हाल ही में वर्ल्ड चैंपियनशिप भी जीती थी

गुकेश ने दिसंबर 2024 में सिंगापुर में आयोजित वर्ल्ड चेस चैंपियनशिप के फाइनल में चीन के डिंग लिरेन को हराकर खिताब जीता था। 18 साल की उम्र में वर्ल्ड चैंपियन बनने वाले वे पहले खिलाड़ी बने थे। इससे पहले यह रिकॉर्ड 1985 में गैरी कास्पारोव के नाम था, जिन्होंने 22 साल की उम्र में यह उपलब्धि पाई थी।

ओलिंपियाड जीत में भी निभाई थी अहम भूमिका

गुकेश ने पिछले साल बुडापेस्ट में आयोजित चेस ओलिंपियाड में भी भारत को चैंपियन बनाने में निर्णायक भूमिका निभाई थी। ओपन कैटेगरी के फाइनल राउंड में उन्होंने जीत दर्ज कर भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था।

क्लासिकल चेस: सोच और धैर्य का असली इम्तिहान

गौरतलब है कि क्लासिकल फॉर्मेट चेस का सबसे पारंपरिक और गंभीर फॉर्मेट माना जाता है। इसमें खिलाड़ियों को आम तौर पर 90 से 120 मिनट तक का समय मिलता है। इसी फॉर्मेट में कार्लसन की मजबूत पकड़ मानी जाती थी, लेकिन गुकेश की समझदारी और ठहराव ने उन्हें भी हरा दिया।

नॉर्वे चेस में गुकेश की वापसी

यह जीत गुकेश के लिए वापसी भी थी, क्योंकि इसी टूर्नामेंट के पहले दौर में उन्होंने कार्लसन से हार का सामना किया था। लेकिन अब उन्होंने शानदार जवाबी जीत के साथ यह दिखा दिया कि वे सिर्फ वर्ल्ड चैंपियन नहीं, बल्कि भविष्य में शतरंज के नए युग के लीडर भी हैं।

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