नवरात्रि का नाम सुनते ही श्रद्धा, शक्ति और मां दुर्गा की भक्ति का भाव जाग उठता है. वर्ष में दो बार सार्वजनिक रूप से मनाई जाने वाली चैत्र और शारदीय नवरात्रि के अलावा एक तीसरा रूप भी है गुप्त नवरात्रि, जो आम जनमानस में कम जाना-पहचाना लेकिन तंत्र साधकों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. गुप्त नवरात्रि साल में दो बार-आषाढ़ और माघ मास की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक मनाई जाती है.

आषाढ़ माह की गुप्त नवरात्रि 26 जून से शुरू हो रही है और 4 जुलाई को समाप्त होगी. इसकी विशेषता यह है कि इसमें देवी की पूजा खुलेआम नहीं होती, बल्कि गुप्त और तांत्रिक विधियों से की जाती है. विशेष रूप से 10 महाविद्याओं जैसे काली, तारा, त्रिपुर भैरवी, छिन्नमस्ता आदि की साधना इस काल में की जाती है.

साधना का स्वर्णकाल

तंत्र, मंत्र और सिद्धि की दिशा में बढ़ने वाले साधक इसे ‘साधना का स्वर्णकाल’ मानते हैं. इस दौरान की गई साधनाएं अधिक प्रभावशाली मानी जाती हैं और कहा जाता है कि यदि सही विधि से की जाए तो व्यक्ति अलौकिक शक्तियों, आत्मबल, और मानसिक ऊर्जा को जागृत कर सकता है.

साधना में लीन होने का समय

गुप्त नवरात्रि का रहस्य और शक्ति इसी में छिपी है कि यह सार्वजनिक भक्ति से हटकर अंतरात्मा से जुड़ने और साधना में लीन होने का समय होता है. यह काल उन लोगों के लिए विशेष होता है जो आध्यात्मिक ऊंचाई, मनोकामना सिद्धि या आत्मबल की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं. इसलिए यह नवरात्रि भले ही गुप्त हो, पर इसका महत्व गहन और दिव्य होता है.