कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। यूं तो देश-दुनिया में करोड़ों लोग क्रिकेट के दीवाने हैं। लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि आदिगुरु शंकराचार्य के वेदपाठी शिष्य भी किसी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खिलाड़ी से कम नहीं हैं। कोई हाथ में बैट थामता है तो विराट कोहली जैसा बन जाता है। वहीं दूसरे शिष्य के हाथ में जब गेंद आती है तो वह दुनिया के महान तेज गेंदबाजों से भी बेहतर गेंदबाजी करने लगता है। 

सनातन संस्कृति का परिधान धोती पहने दिखाई दे रहे यह सभी ज्योतिष पीठाधीश्वर आदिगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिष्य हैं। साथ ही उनके गुरुकुल के यह वेदपाठी गुरु भी हैं।  इन्हें धर्म-वेद शिक्षा के पठन पाठन के बाद जब भी फुर्सत का समय मिलता है तो सभी क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं। 

आदिगुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के परम प्रिय शिष्यों में 4 प्रमुख हैं। जो उनके गुरुकुल में नए शिष्यों को सनातन संस्कृति और वेद पुराण की शिक्षा देते हैं। इनमें से एक शिष्य का नाम रमेश है, जिनकी गेंदबाजी को देख सभी लोग दांतों तले उंगली दबा लेते हैं। रमेश मूल रूप से नेपाल के रहने वाले हैं। लेकिन सनातन संस्कृति की शिक्षा प्राप्त करने आदि गुरु शंकराचार्य के गुरुकुल पहुंचे थे। जहां आप वह खुद शिक्षक की भूमिका अदा कर रहे हैं। 

रमेश ने बताया कि वह 2007 के स्टूडेंट हैं। गुरुकुल के समय से ही उन्हें क्रिकेट खेलना और देखना बेहद पसंद है। इसलिए उन्हें इसकी नॉलेज भी है। गेंदबाजी और बल्लेबाजी के चलते ही वह क्रिकेट में ऑलराउंडर हैं। रमेश विकेट कीपिंग भी कर लेते हैं। उन्होंने बताया कि उनका फेवरेट प्लेयर रोहित शर्मा है।

रमेश के अलावा अंकित शर्मा भी आदिगुरु शंकराचार्य के शिष्य हैं। जो उनके गुरुकुल में शिक्षक भी हैं। अंकित का कहना है कि शास्त्रार्थ धर्मार्थ के बाद वह क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं। पूजा पाठ करने के बाद जब भी समय मिलता है तब हम क्रिकेट खेलते हैं। अंकित को बैटिंग पसंद है क्योंकि उन्हें विराट कोहली बहुत पसंद है।

वहीं मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा के रहने वाले और आदि गुरु शंकराचार्य के प्रमुख गुरु शिष्य राजू तिवारी का कहना है कि सभी शिष्यों को हर तरह की शिक्षा में पारंगत किया जाता है। क्योंकि स्वास्थ्य के लिए सभी चीज जरूरी होती है। भजन-पूजन के साथ ही शारीरिक रूप से मेहनत करना भी जरूरी होता है। यही वजह है कि उन्हें क्रिकेट बहुत पसंद है। उन्हें क्रिकेट में बैटिंग करना सबसे ज्यादा पसंद है। भजन-पूजन, ध्यान के बाद क्रिकेट खेलने से शारीरिक और मानसिक रूप से ताकत मिलती है।

आदिगुरु शंकराचार्य हाल ही में दो दिवसीय ग्वालियर प्रवास पर आए हुए थे। इस दौरान उनके शिष्यों का क्रिकेट का खुमार देखने मिला। गौरतलब है कि भारत सनातन संस्कृति का ध्वजवाहक है। और जगतगुरु शंकराचार्य के कंधों पर धर्म के प्रचार प्रसार और सनातन के विचार को लोगो तक पहुंचाने की जिम्मेदारी हैं। वही शंकराचार्य के शिष्यों पर भविष्य में इस धार्मिक भार को उठाने का कर्तव्य शामिल है। इस बड़ी जिम्मेदारी के बीच आदि गुरु शंकराचार्य के शिष्यों का क्रिकेट के प्रति जुनून देखते ही बनता है। क्योंकि यह शिष्य शास्त्रार्थ धर्मार्थ के जरिए मानसिक मजबूत होते हैं तो वहीं शारीरिक रूप से मजबूती के लिए क्रिकेट खेलना पसंद करते हैं। यही वजह है कि सनातन संस्कृति के परिधान धोती कुर्ते में इनके क्रिकेट खेलने का जुनून काबिले तारीफ है।

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