कर्ण मिश्रा, ग्वालियर। इतिहास के पन्नो में ग्वालियर की जीवनदायनी रही स्वर्ण रेखा नदी अब नाले में तब्दील हो गयी है। इसके सौंदर्यीकरण-संरक्षण मामला से जुड़ी याचिका पर आज अहम सुनवाई हुई है। ग्वालियर हाइकोर्ट की डबल बैंच में सुनवाई के दौरान मंगलवार को शासन ने एफिडेविट पेश किया। शासन की ओर से अर्बन एडमिनिस्ट्रेशन भोपाल के एक्जीक्यूटिव इंजीनियर ने एफिडेविट पेश किया। 

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एफिडेविट में दर्जनों खामियां मिलने और उनके जबाब न देने पर कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी करते हुए अधिकारी को पुराने अधिकारियों की तरह ही नालायक बताया। कोर्ट ने एक्जीक्यूटिव इंजीनियर को अनपढ़ कहते हुए बाबूगिरी के भरोसे चलने वाला अधिकारी बताया। साथ ही शासन को एफिडेविट के साथ प्रॉपर डिटेल रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है। वहीं 2017 से अब तक स्वर्ण रेखा प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों को भी तलब किया है। मामले की अगली सुनवाई 5 मार्च को  होगी।

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दरअसल ग्वालियर की स्वर्ण रेखा नदी का पानी सीवर लाइनों के जोड़े जाने के चलते अब पूरी तरह से गंदे नाले में बदल गया है। स्वर्णरेखा नदी के सौंदर्यीकरण और उसके पुराने वैभव में पुनर्जीवित करने को लेकर एक जनहित याचिका मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच में दायर की गई है। आज मंगलवार को सुनवाई के दौरान नगर निगम कमिश्नर, स्मार्ट सिटी सीईओ और वन विभाग से डीएफओ पेश हुए।

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वहीं कोर्ट के आखिरी आदेश के आधार पर अर्बन एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट की ओर से एग्जीक्यूटिव इंजीनियर भोपाल ने एफिडेविट के साथ प्रोजेक्ट से जुड़ी हुई रिपोर्ट पेश की। लेकिन हाई कोर्ट की डबल बेंच में सुनवाई के दौरान पेश किए गए एफिडेविट में दर्जनों खामियां मिलीं। उन खामियों से जुड़े हुए सवाल भोपाल से आए एग्जीक्यूटिव इंजीनियर से किए गए तो वह इसका कोई भी जवाब नहीं दे सके। 

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कोर्ट ने इस लापरवाही पर अधिकारियों को जमकर फटकार लगाई और तल्ख टिप्पणी करते हुए भोपाल से आए एग्जीक्यूटिव इंजीनियर को कहा कि इंजीनियर हो या अनपढ़ हो? भोपाल से TA-DA लेकर यहां आ गए। यहां का टाइप किया एफिडेविट लिया और कोर्ट में पेश कर दिया, उसके अंदर क्या लिखा है पढ़ने की कोशिश की? तुम्हे लायक समझ कर भोंपाल से यहाँ भेजा गया लेकिन तुम पुराने अधिकारियों की तरह ही लायक नही बल्कि नालायक ही हो”। किस बात की सरकार से तनख्वाह ले रहे हो, बाबूगिरी करने की या पोस्ट मैन कि तनख्वाह ले रहे हो। सच तो ये है कि तुम लोगों की काम करने की आदत ही बिगड़ गयी है। सारा काम बाबूगिरी के आधार पर चलाते हो। फिर कोर्ट से डांट सुनते हो। 

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जब  कोर्ट कोई ऑर्डर लिखता है तो उसका कोई अर्थ होता है। कोर्ट की ऑर्डर शीट कोई वेस्ट ऑफ पेपर नहीं है। हर बार की सुनवाई के दौरान न्यायालय का कीमती समय खराब किया जाता है। प्रोजेक्ट से जुड़ी जानकारी को लेकर सारा होमवर्क कोर्ट में ही किया जाता है जो बड़ी लापरवाही है। जो एफिडेविट और रिपोर्ट पेश करने आता है उस अफसर को यदि अंग्रेजी नहीं आती है तो उसका हिंदी अनुवाद करवाओ। एक ऐप डाउनलोड करवा दो, तत्काल आर्डर शीट हिंदी में आ जाएगी। भोपाल में बैठकर सब इंजीनियरिंग भूल गए हो। इंजीनियर होकर भी डफर्स से बुरे हो। हमें कहानी सुनने में कोई इंटरेस्ट नहीं है। अगली तारीख पर सख्त एक्शन लिया जाएगा।

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कोर्ट ने 2017 से अब तक स्वर्ण रेखा प्रोजेक्ट से जुड़े सभी अधिकारियों को तलब किया है। कोर्ट ने अगली सुनवाई 5 मार्च को तय की है जिसमें सभी अधिकारियों को पेश होने के निर्देश देते हुए 5 शासन को एफिडेविट के साथ प्रॉपर डिटेल रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए है।

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