प्रज्ञा प्रसाद, रायपुर। वैलेंटाइन डे यानि प्यार करनेवालों का दिन। लेकिन कुछ लोग इस दिन देश की संस्कृति के रखवाले बने घूमते नज़र आते हैं. टीवी पर चैट शो आयोजित होते हैं. पश्चिमी सभ्यता और बाज़ारवाद की दुहाई देकर अपनी सभ्यता को बचाने के लिए केवल भाषणबाज़ी होती है. कुछ तत्व लाठी-डंडे लेकर युवक-युवतियों को मारने भी निकलते हैं.

लेकिन मेरा मानना है कि पश्चिमी सभ्यता का दिन कहने वाले लोग शायद ये नहीं जानते कि भारत में तो आदिकाल से ही ये सब हो रहा है और हमलोग इस तरह का दिन मनाने में मास्टर हैं. आप कहेंगे कि प्रेम का भी कोई एक दिन हो सकता है भला, तो आप बताइए कि हमारे देश में भी तो अलग-अलग रिश्तों के लिए अलग-अलग दिन फिक्स हैं. ये राखी क्या है? क्या भाई-बहन का प्यार दर्शाने के लिए एक ही दिन काफी है. अगर राखी न मनाई जाए, तो भाई-बहन के आपसी प्यार का पता नहीं चलेगा. और ये तीज, करवाचौथ और वट सावित्री क्या है भाई? पति के लिए दिन फिक्स! क्यूं भइया, आप तो कहते हैं कि प्यार के पर्व का एक दिन नहीं होना चाहिए. कर्तव्य तो सालों भर के लिए होते हैं, फिर दिखावा क्यूं.

प्रज्ञा प्रसाद, लेखिका और पत्रकार

वहीं फिर तीज, करवाचौथ जैसे पर्वों को करके दिखावा क्यूं? पति के लिए क्या एक ही दिन फिक्स होना चाहिए. उसी तरह विदेशों में मनाए जाने वाले अन्य डे पर भी लोग खूब भाषणबाजी करते हैं, तो ये जिउतिया क्या है? बच्चों के लिए एक दिन फिक्स? क्या ये पर्व करके ही आप प्यार या कर्तव्य प्रदर्शित कर सकते हैं, वैसे नहीं. तो जब विदेशों की सभ्यता-संस्कृति से इतनी ही चिढ़ है, तो अपने यहां ये सारे पाखंड और चोचले क्यों?

जहां तक रही बाज़ारवाद की बात, तो राखी के लिए भी मार्केट में राखियों और गिफ्ट्स की जमकर खरीदारी होती है. तीज-करवाचौथ की तो बात ही मत करें. उस दिन के लिए तो महिलाएं साड़ी-कपड़ा और न जाने क्या-क्या खरीदती हैं. तो उस वक्त बवेला क्यों नहीं मचाया जाता. मार्केटिंग स्ट्रैटजी तो उस समय भी काम करती है. अगर हमारे यहां अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने के लिए राखी, तीज, करवाचौथ, जिउतिया और अन्य त्योहार बनाए गए हैं, जब लोग दैनिक कार्यों को भूलकर एन्जॉय करते हैं, तो विदेशों में भी ऐसे ही दिन अपनी फीलिंग्स को दर्शाने के लिए बनाए गए हैं, ताकि व्यस्ततम दिनचर्या में से वे भी कोई दिन अपने प्यार, माता-पिता, दोस्त को समर्पित कर सकें, तो इसमें बुराई क्या है.

अगर उनके यहां कुछ अच्छा है, तो हमें अपनाना चाहिए और हमारे यहां कुछ अच्छा है, तो उन्हें, यही तो है ग्लोबलाइजेशन. लेकिन दरअसल कुछ लोग जिनके पास कोई काम-धाम नहीं है, उन्हें फालतू का हल्ला करने की बीमारी होती है. वहीं एक खूबसूरत और बेहतरीन त्योहार होली को भी लोगों ने कुरूप बना दिया है. इतने अच्छे त्योहार की ये हालत हो गई है कि इसके बहाने लोग मर्यादाएं तोड़ने से भी बाज़ नहीं आते. इस पर्व की आड़ लेकर लोग हर तरह की बदतमीजी कर लेते हैं. भाभी जो मां समान होनी चाहिए, लोग हर तरह के मज़ाक करते हैं. साली, जो छोटी बहन समान होनी चाहिए, उसमें भी सीमाओं का ध्यान नहीं रखते. वहीं भोजपुरी गानों का तो हाल ही बुरा रहता है, खासतौर पर इस दौरान जो एलबम आते हैं.

प्यार है भारतीय संस्कृति का हिस्सा

होली तो भगवान कृष्ण और राधा की नगरी में प्रेम का प्रतीक मानकर ही मनाई जाती है. हमारे देश में तो आदिकाल से ही यहां तक कि सभी देवी-देवता भी प्यार का संदेश देते रहे हैं. इस मामले में हमारी सभ्यता संस्कृति काफी फॉरवर्ड रही है.

तो फिर हम कैसे वैलेंटाइन डे का विरोध कर सकते हैं. हम कुछ करें, तो बहुत अच्छा, वहीं दूसरा कोई वही काम करे, तो खराब. वैसे भी हमारे देश के अधधकतर लोगों की मानसिकता यही है, इसलिए वैलेंटाइन डे भी जो मनाना चाहते हैं, उन्हें मनाने दें, फालतू का विरोध कर उन्हें परेशान न करें. आपको नहीं मनाना, तो न मनाएं. आप पर भी पाबंदी नहीं.

हां, जहां कुछ आपत्तिजनक होता देखें, वहां विरोध दर्ज कराएं. लेकिन ऐसे ही केवल घूमने-फिरने या साथ वक्त बिताने वालों को बेवजह परेशान न करें या विरोध भी न करें. कानून और सामाजिक मर्यादाओं का ध्यान रखते हुए सबको अपनी जिंदगी खुलकर जीने की आज़ादी है और सभी समझदार हैं. अगर वे इसी माध्यम से खुश होना चाहते हैं, तो उन्हें खुश होने दें. इसलिए सभी प्यार करने वालों को, पति-पत्नी को, दोस्तों को, परिवारों को और पूरे देश को मेरी तरफ से हैप्पी वेलेंटाइन्स डे.

(लेखिका और पत्रकार प्रज्ञा प्रसाद की किताब ‘अपने-अपने अंतरद्वंद्व’ से)