रायपुर। छत्तीसगढ़ में सूरजपुर जिले के फतेहपुर गाँव में एक आंदोलन बीते 50 दिनों से चल रहा है. आंदोलन को लेकर सरगुजा अँचल में ख़बरें तो छप रही है, लेकिन राजधानी तक ख़बर आते-आते कमजोर पड़ जा रही है. शायद यही वजह कि 50 दिनों के धरना के बाद भी गाँव वालों के बीच चर्चा के करने लिए कोई भी जनप्रतिनिधि नहीं पहुँचा है. न ही क्षेत्रीय विधायक पहुँचा है और न मंत्री के पास इतना समय है कि वे गाँव वालों से मिलकर कह सके कि धरना समाप्त करिए बैठकर मसला सुलझा लेंगे. न सत्ता पक्ष वालों ने सुध ली और न ही विपक्ष को मतलब रहा कि कहीं कोई जंगल में धरना भी चल रहा है. आदिवासियों का आंदोलन चल रहा है. विधानसभा में जहाँ छोटे-छोटे मुद्दे को जगह मिल जाती है वहाँ हसदेव अरण्य को लेकर किसी ने सवाल तक नहीं पहुँचा. किसी भी विधायक ने इस ओर सोचा भी नहीं कि सदन को बताया जा सके कि फतेहपुर गाँव में न तो दीवाली की रौनक रही और शायद आने वाले दिनों में होली के रंग फीकी पड़ जाए !

आदिवासियों की पीड़ा को इस वक्त उनके अपने लोग ही समझ रहे हैं. वे आदिवासी नहीं जो अब विधायक और मंत्री बन चुके हैं. अगर वे आंदोलनत् आदिवासियों की पीड़ा को समझते तो 50 दिनों के इस आंदोलन में एक दिन तो जरूर वे गाँव वालों से मिलने जाते. अब क्यों नहीं जा रहे हैं, यह समझ से परे है ? जबकि इलाके में वे हर जगह जा रहे हैं ?. असल में तारा गाँव में चल क्या रहा है उसे एक बार फिर जान लीजिए. सूरजपुर, सरगुजा और कोरबा जिला का समृद्ध वन क्षेत्र, जो कि हसदेव अरण्य कहलाता है. इस क्षेत्र के बीच में है फतेहपुर गाँव.फतेहपुर गाँव में एक बड़ा खनन प्रोजेक्ट आने को है. गाँव वाले इसी खदान का विरोध कर रहे हैं. इलाके में सिर्फ एक तारा गाँव के ही नहीं बल्कि तारा जैसे 30 गाँव के लोग नहीं चाहते कि वहाँ पर खदान खुले. गाँव वाले कहते हैं कि खदान खुलने से उनकी ज़िंदगी नर्क बन जाएगी. वे अभावों के बीच जी सकते हैं, लेकिन अपने जंगल को बरबाद होते नहीं देख सकते. इलाके में कोयला खदान का खुलना मतलब सिर्फ वन का नष्ट होना ही नहीं, बल्कि इलाके में रहने वाले लोगों के साथ हर प्राणियों के अस्तिव पर खतरा है.

छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला का कहना है कि हसदेव क्षेत्र की 20 ग्रामसभाओं के विरोध के बाबजूद हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉकों का आवंटन मोदी सरकार द्वारा किया गया. जिसके पीछे मूल कारण हैं कि राज्य सरकारों को कोल ब्लॉक देकर mdo अनुबंध के रास्ते पिछले दरवाजे से एक नामी कंपनी को सौंपा जा सके. एक कारपोरेट घराने के मुनाफे के लिए छत्तीसगढ़ के सबसे समृद्ध वन क्षेत्र हसदेव अरण्य का विनाश किया जा रहा हैं. जबकि वर्ष 2009 में इस सम्पूर्ण क्षेत्र में खनन पर प्रतिबंध स्वयं केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा लगाया गया था.

शुक्ला ने कहा कि रमन सरकार के नेतृत्व में पिछले 15 वर्षों में छत्तीसगढ़ को कार्पोरेट लूट का चारागाह बना दिया था. कंपनियों के इशारे पर जमीनअधिग्रहण, वन और पर्यावरण स्वीकृतियों को देने के लिए पांचवी अनुसूची, पेसा और वनाधिकर आदि कानूनों का खुले रूप से उल्लंघन किया गया. इसके खिलाफ पूरे प्रदेश में व्यापक जन आक्रोश रहा जिसके परिणाम स्वरूप कांग्रेस सरकार आज सत्ता में काबिज है. पिछले सरकार की जन विरोधी नीतियों और निर्णय को बदलने की बजाए वर्तमान भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार उन्हें आगे बढ़ा रही हैं. कांग्रेस पार्टी द्वारा जिस mdo( खनन के विकास और संचालन) अनुबंध का भारी विरोध किया जा रहा था आज उसे सार्वजनिक करने से बच रही हैं .

ग्रामीणों की ये है प्रमुख मांगे

  1. पेसा कानून 1996 एवं भूमि अधिग्रहण कानून 2013 की धारा (41) के तहत ग्रामसभा सहमति लिए बिना परसा कोल ब्लॉक हेतु किये गए जमीन अधिग्रहण को निरस्त किया जाए.
  2. वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत ग्रामसभा की सहमती पूर्व एवं वनाधिकारों की मान्यता की प्रक्रिया ख़त्म किया बिना दी गई वन स्वीकृति को निरस्त किया जाए.
  3. हसदेव अरण्य क्षेत्र में परसा, पतुरिया गिदमुड़ी, मदनपुर साऊथ कोल खनन परियोजनाओ को निरस्त किये जाए एवं परसा ईस्ट केते बासन के विस्तार पर रोक लगाई जाए.
  4. हसदेव अरण्य के जंगल से जुडी आदिवासी एवं अन्य ग्रामीण समुदाय की आजीविका व संस्कृति वन क्षेत्र में उपलब्ध जैव विविधता, हसदेव नदी एवं बांगो बांध के केचमेंट, हाथियों का रहवास क्षेत्र एवं छत्तीसगढ़ व दुनिया के पर्यावरण महत्वता के कारण इस सम्पूर्ण क्षेत्र को खनन से मुक्त रखते हुए किसी भी नए कोल ब्लाकों का आवंटन नही किया जाए.
  5. वनाधिकार मान्यता कानून के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक वन संसाधन के अधिकारों को मान्यता देकर वनों का प्रवंधन ग्रामसभाओं को सोंपा जाए.