आशुतोष तिवारी, जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा उत्सव का शुभारंभ काछनगादी रस्म के साथ हो चुका है. नवरात्रि के पहले दिन जोगी बिठाई की रस्म भी पूरी कर ली गई है. जिसके बाद बस्तर दशहरे के मुख्य आकर्षण फूल रथ की परिक्रमा का शुभारंभ हो चुका है। इस रस्म में बस्तर के आदिवासियों द्वारा हाथों से पारंपरिक औजारों से बनाए गए विशालकाय रथ की शहर परिक्रमा कराई जाती है। करीब 30 फीट ऊंचा और कई टन वजनी इस रथ को परिक्रमा के लिए खींचने सैकड़ों आदिवासी स्वेच्छा से आते हैं। परिक्रमा के दौरान रथ पर माई दंतेश्वरी का छत्र विराजमान किया जाता है।

बस्तर दशहरे की इस अनोखी परंपरा की शुरुआत 1410 ईस्वी में तात्कालिक महाराजा पुरुषोत्तम देव ने की थी। महाराजा पुरुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी जाकर “रथपति” की उपाधि प्राप्त की थी, जिसके बाद से यह परंपरा अनवरत जारी है। देश में इकलौती इस तरह की परिक्रमा को देखने हर साल हजारों लोग बस्तर पहुंचते हैं। फूल रथ की परिक्रमा शनिवार से गुरुवार तक चलेगी, जबकि रविवार को 8 चक्कों वाला विजय रथ निकाला जाएगा।

यह परंपरा लगभग 700 साल पुरानी है, और बस्तरवासी इसे नवरात्रि के तीसरे दिन से सप्तमी तक उसी उत्साह से निभाते आ रहे हैं। इस रथ को फूल रथ कहा जाता है, और माई दंतेश्वरी के मंदिर से उनका मुकुट डोली में रथ तक लाकर सलामी दी जाती है, जिसके बाद परिक्रमा की जाती है।

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