राजीव मिश्रा भिलाई- बीएसपी के सेक्टर 09 हाॅस्पीटल में नवजात शिशु को संक्रमित खून चढ़ाए जाने के मामले में बड़ी कार्रवाई की गई है. भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अंतर्गत केंद्रीय औषध एवं नियंत्रण संगठन ने राज्य सरकार को भेजी गई चिट्ठी में हाॅस्पिटल के ब्लड बैंक का लाइसेंस निलंबित किए जाने की अनुशंसा की है. इस अनुशंसा के बाद हाॅस्पिटल के ब्लड बैंक का लाइसेंस निलंबित कर दिया गया है.

गौरतलब है कि रायपुर निवासी एक परिवार के घर अक्टूबर 2015 में दो जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ था. इसमें से एक बच्चे की तबियत बिगड़ने पर बीएसपी के जवाहर लाल नेहरू हाॅस्पीटल सेक्टर 9 में डाॅक्टरों ने  परिजनों की जानकारी के बगैर बच्चे को संक्रमित खून चढ़ा दिया. खून के संक्रमण की वजह से नवजात बच्चे को एचआईवी की बीमारी हो गई.

पीड़ित बच्चे के पिता ने इस पूरे मामले में हाॅस्पिटल मैनेजमेंट के खिलाफ लंबी लड़ाई लडी. सूचना के अधिकार के जरिए मिले दस्तावेजों से यह जानकारी सामने आई कि बच्चे को चढ़ाया गया खून संक्रमित था. इस मामले की शिकायत छत्तीसगढ़ सरकार के अलावा स्वास्थ्य मंत्रालय भारत सरकार से भी की गई थी.

 

 

प्रदेश के सबसे बड़े हॉस्पिटल जवाहर लाल नेहरू अनुसन्धान एवं चिकित्सा केंद्र सेक्टर 9 के ऊपर अब तक की सबसे बड़ी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है. इस सबन्ध में ड्रग कंट्रोलर हिरेंड पटेल से पूरे मामले में पक्ष लेना चाहा, लेकिन संपर्क नहीं हो सका है. इस कार्रवाई के बाद पीड़ित बच्चे के पिता ने इस भ्रष्ट व्यवस्था के खिलाफ अपनी पहली जीत बताया है. वहीं हॉस्पिटल के डायरेक्टर डॉ कौशलेंद्र ठाकुर से जब हमने इस मसले पर बात की तो उन्होंने कहा कि अभी तक ऐसा कोई आदेश हमें नहीं मिला है.

हाॅस्पिटल मैनेजमेंट की लापरवाही एक नजर में-

सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेजों से पूरे मामले का खुलासा हुआ था. पीड़ित बच्चे के पिता ने जन्म से संबंधित सभी रिकार्ड सूचना के अधिकार के जरिए हाॅस्पीटल से मांगा. रिकार्ड के जरिए ही पिता को बच्चे के जन्म के वक्त खून चढ़ाए जाने की जानकारी मिली. 19 अक्टूबर 2015 को गर्भवती महिला को सेक्टर 09 हाॅस्पिटल में दाखिल कराया गया था. 21 अक्टूबर 2015 को जुड़वा बच्चों का जन्म हुआ. एक बच्चे का जन्म सामान्य तरीके से हुआ, तो दूसरे बच्चे के जन्म में कुछ अड़चनें आ गई. जन्म के बाद नवजात को 18 दिन तक हाॅस्पिटल में रखकर उसका इलाज किया जाता रहा. पीड़ित बच्चे के पिता का आरोप है कि बाद में 26 जून 2016 को बच्चे को खून चढ़ाया गया. यह खून परिजनों की जानकारी के बगैर चढ़ाया गया था. बच्चे की तबियत ज्यादा खराब हुई तब खून की जांच कराई गई. सूचना के अधिकार से मिले दस्तावेजों में यह बात सामने आई कि बच्चे को चढ़ाये गए खून की जांच एक्सपायरी हो चुके कीट से की गई थी. 1 जुलाई 2016 को बच्चे को संक्रमित खून चढ़ाये जाने की बात साफ हुई. खून की जांच रिपोर्ट में बच्चे में एचआईवी पाॅजीटिव पाया गया. 4 जुलाई 2016 को तात्कालीन कलेक्टर ने इस मामले में जांच के आदेश दिए थे. बच्चे को इलाज के लिए मुंबई भेजा गया था. 27 जुलाई 2017 को एसडीएम दुर्ग के साथ चार सदस्यीय टीम ने जांच की. 8 अक्टूबर 2017 को जिला टीकाकरण अधिकारी ने इस मामले की जांच कराई और 13 दिसंबर 2017 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की चार सदस्यीय टीम ने जांच की.