रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश के अफसर हाईकोर्ट के आदेशों की खुलेआम अनदेखी कर रहे हैं. हाईकोर्ट में 2015 से दिसंबर 2019 तक अवमानना के करीब 4591 मामले पेश, 4124 मामले निराकृत हुए। इस वर्ष 2020 सितंबर में 1350 मामले पेंडिंग हैं। विडंबना यह है कि याचिका लेकर आने वाले याचिकाकर्ताओं, पीड़ितों को हाईकोर्ट के आदेश से फौरी राहत तो मिल जा रही है, लेकिन इसके कम्प्लाइंस और इन आदेशों के गुणवत्तापूर्ण पालन किए जाने में सरकारी विभाग और अफसर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
हाईकोर्ट के आदेशों के पालन किए जाने का कोई निश्चित नियम, गाइडलाइन, मापदंड नहीं होने से अफसरों पर प्रभावी कार्यवाही नहीं हो पा रही। हाईकोर्ट के ज़्यादातर केसों में राज्य सरकार पक्षकार होती है। सरकारी विभागों में गलत फैसले के खिलाफ याचिकाओं में हाईकोर्ट प्रक्रिया लंबित रहने के दौरान पक्षकार को अंतरिम राहत दे देता है या आदेश पर रोक लगा दी जाती है, लेकिन कई मामलों में अफसर जानते हुए भी हाईकोर्ट के आदेश की अनदेखी कर जाते हैं और प्रशासनिक उच्छृंखलता बढ़ती जा रही है, जबकि अवमानना मामले हाईकोर्ट की दण्डशक्ति और अस्मिता से जुड़ा है।
लंबित मामलों में पिछले 3 वर्षों के मुक़ाबले 63% की वृद्धि हुई। हालात यह है कि कई मामलों में हाईकोर्ट राज्य के मुख्य सचिव और डीजीपी को भी तलब कर चुका है। इसके बाद भी व्यवस्था में बदलाव नहीं हो पा रहा, क्योंकि अफसरों में हाईकोर्ट के भी आदेशों का डर नहीं रह गया है।
उक्त कारणों से अवमानना मामलों में प्रभावी कार्रवाई और गाइडलाइन जारी किए जाने की माँग के लिए हाईकोर्ट के अधिवक्ता संतोष कुमार पांडेय ने एक याचिका उच्च न्यायालय में दाख़िल कर बताया कि हाईकोर्ट द्वारा अवमानना मामलों के निस्तारण में सावधानियां नहीं बरती जा रही हैं। इसके कारण इस स्थिति का लाभ अवमाननाकर्ता अधिकारियों को मिलता है। वे परोक्षत: संरक्षित होते हैं और इस स्थिति से अधिकांश पीड़ित हतोत्साहित होते हैं, उनके विधिमान्य प्रत्याशाओं का हनन होता है, अत्यधिक वादकारी स्थितियां उत्पन्न होती है।
अवमानना मामलों के निस्तारण में मनमानियां व्याप्त ना रहे, इस के लिए गाइड लाइन जारी की जा सकती है और इसे हाईकोर्ट रूल्स 2007 में जगह दी जा सकती है, ताकि उच्च न्यायालय के सभी आदेशों का क्रियान्वयन उच्चतर गुणदोष पर आधारित और तत्काल प्रभाव से समय सीमा के भीतर उत्तरवादीगण, अधिकारी गण प्रभावी रूप से कर सकें। उक्त ज़रूरी मांग के लिए पाण्डेय ने 20 जनवरी 2020 को हाईकोर्ट को एक अभ्यावेदन भी दिया था, जिसे रजिस्ट्रार जनरल द्वारा सातवें दिन बिना विचार किये नस्तीबद्ध कर दिया गया, इस पर अधिवक्ता द्वारा सूचना के अधिकार के तहत दस्तावेज़ निकाल कर उक्त सिविल रिट याचिका पेश किया था, जिसमें भारत संघ, छत्तीसगढ़ शासन और उच्चन्यायालय को पक्षकार बनाया गया था।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 216 के तहत उच्चन्यायालय गठित होता है, जिसमें मुख्य न्यायाधीश सहित सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं, इसलिए उच्च न्यायालय में किया गया कोई भी विशेष अभ्यावेदन रजिस्ट्रार जनरल द्वारा स्वयं नहीं, बल्कि केवल हाईकोर्ट के सभी जजों की पूर्णपीठ द्वारा उचित निर्णय किया जाना चाहिए।
याचिका की सुनवाई करते हुए जस्टिस पी सैम कोशी की एकल पीठ ने कहा चूंकि रजिस्ट्रार जनरल और मुख्यन्यायाधीश के द्वारा उक्त अभ्यावेदन नस्तीबद्ध करने का प्रशासनिक निर्णय लिया जा चुका है, तो यदि उक्त आदेश याचिकाकर्ता को स्वीकार्य नहीं है, तो वह कानून के तहत उचित उपचारात्मक उपाय करने के लिए स्वतंत्र होगा, अतः इसमे अब किसी और निर्देश दिए जाने की ज़रूरत नहीं है। याचिका अस्वीकार की गई।
अवमानना मामलों की सुनवाई के लिये अपनाई जाने वाली सात बिंदु गाइडलाइन जो याचिकाकर्ता द्वारा सुझाई गई – जिस आदेश की अवहेलना की गई है वह आदेश पूर्णत: स्पष्ट, विधि, अधिकारिता के अनुरुप और औचित्यपूर्ण रहा हो, उसके पालन की अधिकतम समय सीमा हो, उसकी व्यक्तिगत तामिली पालन करने वाले अथॉरिटी पर उचित समय सीमा के भीतर हुई हो, उसका पालन करना उस अधिकारी की पदीय क्षमता के भीतर रहा हो, लेकिन उसने जानबूझकर आदेश का पालन पूर्णत: और सही ढंग से और नियम के अनुरूप नहीं किया हो, अवमाननाकर्ता को दोषी साबित होने पर उचित जुर्माना या सजा या दोनों का प्रावधान किए जाने में न्यायिक विवेक और युक्तियुक्तता का आधार लिया गया हो, आधारहीन अथवा तुच्छ अवमानना याचिका पेश करने पर याचिकाकर्ता के विरुद्ध न्यायालयीन प्रक्रिया के दुरुपयोग किए जाने के कारण जुर्माना लगाया गया हो।
इन आंकड़ों से समझिए लंबित अवमानना याचिकाओं की स्थिति
वर्ष पेंडिंग कब तक कुल-पेश कुल-निराकृत
2012 – 359 अक्टूबर
2013 – 411 नवंबर
2014 – 594 दिसंबर
2015 – 380 दिसंबर 611 814
2016 – 412 दिसंबर 650 597
2017 – 500 दिसंबर 792 736
2018 – 810 दिसंबर 1329 1019
2019 – 1061 दिसंबर 1209 958
2020 – 1350 सितंबर 67 29
(स्रोत: हाईकोर्ट वेबसाइट)