कुमार इंदर, जबलपुर। हाईकोर्ट के आदेश का पालन न करने पर एक अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ अभिमन्यु सिंह सीवीसी दिल्ली, जबलपुर कैंट बोर्ड के अध्यक्ष और प्रिंसिपल सेक्रेटरी लखनऊ को 20-20 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है। साथ ही उनसे जवाब भी मांगा है। दरअसल मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में जबलपुर कैंटोनमेंट में साल 2018 में गुमटियों को लेकर एक याचिका लगाई गई है। जिसमें यह कहा गया था कि कैंटोनमेंट बोर्ड ने 45 गुमटियों को अवैध तरीके से नगर निगम की जमीनों पर जमा दिया था। याचिका में यह भी कहा गया था कि इन गुमटियों के आवंटन में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। इसमें एक पार्षद के नाम पर कई गुमटियां आवंटित की गई थी।
इसे लेकर हाईकोर्ट ने कई बार जबलपुर कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ, कैंटोनमेंट बोर्ड के अध्यक्ष और प्रिंसिपल सेक्रेटरी लखनऊ को इस बाबत दोषियों पर कार्रवाई कर रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। लेकिन इस मामले में चार से पांच बार सुनवाई होने के बाद भी ना तो गुमटी के आवंटन मामले में किसी पर कार्रवाई की गई और न ही कोर्ट में कोई रिपोर्ट पेश की गई। इसी मामले पर हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रवि मलिमठ और जस्टिस विशाल मिश्रा की बेंच ने सुनवाई करते हुए वर्तमान कैंटोनमेंट बोर्ड के सीईओ अभिमन्यु सिंह, तत्कालीन प्रिंसिपल सेक्रेटरी एसएन गुप्ता, सीवीसी दिल्ली और कैंटोनमेंट बोर्ड के तत्कालीन अध्यक्ष को 20, 20 हज़ार की कॉस्ट लगाई है। इस मामले में कार्रवाई को लेकर जवाब भी मांगा गया है। अब मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को तय की गई है।
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क्या है पूरा मामला
दरअसल कटंगा निवासी नरेश भाटिया, सदर के आबिद हुसैन, राजेश शर्मा ने हाईकोर्ट में साल 2019 में याचिका दायर कर कटंगा में कैन्ट बोर्ड द्वारा 45 गुमटियों का निर्माण कर आवंटित करने के मामले में भारी अनियमितता होने का आरोप लगाया था। याचिका के अनुसार हाईकोर्ट ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी बनाई थी। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि कैंट बोर्ड ने नगर निगम की जमीन पर गुमटियों का निर्माण कर दिया है। इसके बाद गुमटियों को तोड़ने के आदेश दिए गए थे। सभी गुमटियों को जमींदोज करने के बाद कोर्ट ने दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई का ब्योरा मांगा था।
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हर बार दिया जाता है कार्रवाई का भरोसा
मामले में इससे पहले जितनी बार भी हाईकोर्ट में सुनवाई हुई हर बार कैंट बोर्ड की तरफ से कोर्ट को आश्वासन दिया जाता रहा है कि इस मामले में दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। लेकिन हाई कोर्ट ने अंतिम में पाया कि अभी तक उसके आदेश पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं की गई है। इसी बात से नाराज होकर कोर्ट ने चारों अधिकारियों से 20 हजार रुपए की कॉस्ट लगाई है।
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