कुमार इंदर, जबलपुर। एक बड़ी पुरानी कहावत है कि एक मां अपने 100 बच्चों को पाल लेती है, लेकिन वही 100 बच्चे मिलकर एक मां को नहीं पाल पाते। कुछ ऐसा ही मामला आज मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पहुंचा। जहां पर जस्टिस अहलूवालिया ने एक मां के चारों बेटों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक मां ने चार बेटों को पाल पोस कर बड़ा किया, लेकिन चार बेटे मिलकर एक मां को नहीं पाल रहे।
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दरअसल मामला पैतृक संपत्ति के बंटवारे और मां के भरण पोषण को लेकर था। नरसिंहपुर की रहने वाली एक बुजुर्ग महिला के चारों बेटों में से एक बेटे ने हाईकोर्ट में अपनी मां को भरण पोषण दिए जाने के एसडीएम के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी। जिसे खारिज करते हुए जस्टिस जीएस आहलुवालिया ने कहा कि संपत्ति का बंटवारा एक अलग मेटर है। लेकिन बूढ़े मां-बाप की देखरेख और उनका भरण पोषण औलाद की न केवल नैतिक जिम्मेदारी, बल्कि उनका कर्तव्य भी है। हाईकोर्ट ने नरसिंहपुर एसडीएम के आदेश को जारी रखते हुए फैसला सुनाया कि बूढी मां को चारों बेटे दो-दो हजार रुपए मिलकर महीने के 8000 रूपए भरण पोषण के लिए देंगे।
वादे से मुकरे तो रजिस्ट्री शून्य
वहीं मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अगर औलाद मां-बाप के लालन-पालन की नैतिक जिम्मेदारी से अगर मुकरता है, तो पैतृक संपत्ति से उसकी रजिस्ट्री शून्य हो जाएगी। माता-पिता की सेवा ना केवल नैतिक जिम्मेदारी है, बल्कि उनका कर्तव्य भी है।
क्या है पूरा मामला
दरअसल नरसिंहपुर निवासी एक बुजुर्ग महिला ने अपने चारों बेटे से भरण पोषण पाने के लिए नरसिंहपुर जिला प्रशासन से गुहार लगाई थी। जिसके बाद नरसिंहपुर के एक एसडीएम ने बुजुर्ग महिला को 8000 रूपए महीने भरण पोषण के लिए दिए जाने का आदेश दिया था। एसडीएम के इस आदेश को महिला के बेटे ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। इसके साथ ही दलील दी थी कि उनकी मां पैतृक जमीन का बंटवारा नहीं कर रही है, लिहाजा वह अपनी मां को भरण पोषण नहीं दे रहे।
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