वीरेंद्र गहवई, बिलासपुर। सक्ति जिले के एक गरीब रिक्शा चालक जय प्रकाश रात्रे को लगभग तीन साल बाद आखिरकार हाईकोर्ट से इंसाफ मिला है। पुलिस ने उसे बेवजह आरोपी बनाकर न सिर्फ थाने में बिठाए रखा, बल्कि 17 हजार रुपये जबरन वसूल लिए। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर को निरस्त करने का आदेश दिया है।

क्या था मामला?
जय प्रकाश रात्रे रिक्शा चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है, 2 नवंबर 2022 को वह अपने घर पर मौजूद था। तभी पुलिस कांस्टेबल किशोर साहू और सिविल ड्रेस में आए तीन अन्य पुलिसकर्मी उसके घर पहुंचे और उसे थाने ले आए। थाने में उससे 17 हजार रुपये की मांग की गई। मजबूरी में उसकी पत्नी ने झोपड़ी की मरम्मत के लिए कर्ज लेकर रखे रुपये पुलिस को दिए, तब जाकर पति की रिहाई संभव हो सकी।
आरोप है कि रिश्वत मिलने तक जय प्रकाश को थाने में बंधक बनाकर रखा गया। इसके बाद उसके खिलाफ आबकारी अधिनियम की धारा 34(1)(ए) के तहत झूठा प्रकरण दर्ज कर दिया गया।
हाईकोर्ट की टिप्पणी
करीब ढाई साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी मामले में पुलिस आरोप-पत्र दाखिल नहीं कर सकी। इस पर जय प्रकाश ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर न्याय की गुहार लगाई। याचिका में यह भी मांग की गई कि कांस्टेबल किशोर साहू के खिलाफ आपराधिक और विभागीय कार्रवाई की जाए।
सरकारी वकील ने कोर्ट में डीजीपी की ओर से हलफनामा प्रस्तुत करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को बांड भरने के बाद रिहा कर दिया गया था। हालांकि कोर्ट ने पाया कि इतने लंबे समय में आरोप-पत्र पेश न किया जाना गंभीर लापरवाही है और प्राथमिकी को देखते ही साफ है कि याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई मामला बनता ही नहीं। इसलिए हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने का आदेश दिया।
पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई
इस प्रकरण में पहले हाईकोर्ट ने क्रिमिनल रिट पिटीशन पर सुनवाई करते हुए जांच के आदेश दिए थे। जांच रिपोर्ट आने के बाद दोषी पुलिसकर्मी को लाइन अटैच कर दिया गया। इसके बाद जब एफआईआर निरस्तीकरण की याचिका दाखिल हुई तो डीजीपी ने भी कठोर कदम उठाते हुए चार थानेदारों को निंदा की सजा दी और एक उपनिरीक्षक (एसआई) को निलंबित कर दिया।
पौने तीन साल तक संघर्ष के बाद इंसाफ
गौरतलब है कि करीब पौने तीन साल तक न्याय पाने के लिए जय प्रकाश रात्रे को अदालतों के चक्कर लगाने पड़े। गरीब परिवार पर अचानक आए इस संकट ने उसे आर्थिक और मानसिक रूप से तोड़ दिया था, लेकिन अंततः हाईकोर्ट ने उसके साथ हुई नाइंसाफी को मान्यता देते हुए उसे राहत दी।
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