Holi : सिंधी समाज में रंगों के त्योहार होली पर रिश्तों में मिठास घोलने का काम पाकिस्तान से आई मिठाई करती है, उसकी बात ही अलग है. इस मिठाई का नाम घीयर है. सिन्धी समाज के हर घर में इस मिठाई की पूजा-अर्चना होती है और होली के दिन सभी के घर घीयर जरूर पहुंचती है. कहते हैं कि होली के पर्व पर आपसी बैर भूल कर सभी एक-दूसरे को रंग लगाते हैं तो वहीं इस पर्व में सिंधी समाज की खास परंपरा है. इसमें समाज के लोग अपनी बहन बेटियों को हमेशा साथ जोड़ने के लिए इस मिठाई को उनके घर पर भेजते हैं. अपने आसपास में रहने वाले पड़ोसियों को भी यह मिठाई दी जाती है.

रिश्तेदारों में जो पास में होते हैं उन्हें होली के दिन या होली से पहले घीयर को भेजा जाता है. अगर कोई रिश्तेदार दूर है तो उसे ऐसे समय में भेजते हैं ताकि यह होली के दिन तक मिठाई उसके घर पहुंच जाए. इस मिठाई को खास तौर पर बहू बेटियों के घर जरूर भेजा जाता है.

क्या होती है ‘घीयर’ मिठाई

सिंधी समाज में घीयर मिठाई का विशेष महत्व है. इस रसीली और स्वाद में खट्टी मीठी मिठाई वर्ष में 20 दिन ही चखने को मिलती है. होली के लिए ही यह मिठाई बनाई जाती है. घीयर बनाने वाले महेश मिहानी बताते हैं कि इसके लिए मैदा का पेस्ट शक्कर और तेल का इस्तेमाल किया जाता है. यह पूरी तरह से शुद्ध और पवित्र होती है, इसे तेल में जलेबी की तरह तलकर शक्कर की चासनी में डुबोया जाता है. इस मिठाई को रंग पंचमी तक बनाया जाता है.

जलेबी नहीं है घीयर

घीयर को देखकर ज्यादा लोग इसको जलेबी ही समझ लेते हैं, जबकि इसके आकार और स्वाद में काफी फर्क है. घीयर को मैदा से बनाया जाता है. इसमें रंग और खटाई के लिए थोड़ी मात्रा में टाटरी मिलाई जाती है. इसके बाद इसका घोल तैयार करके एक दिन के लिए रख दिया जाता है, ताकि उसमें खमीर उठ सके. खमीर उठने के बाद हलवाई इसको खोलते तेल और घी के सांचे में डालकर बनाते हैं. इसके बाद घीयर को चाशनी में डाल दिया जाता है. खमीर जितना अच्छा उठेगा, घीयर भी उतना अच्छा बनेगा. सांचे के छोटे और बड़े आकार में इसको बनाया जाता है. जिन लोगों ने घीयर को पहले नहीं खाया है, वह इसको बड़ी जलेबी समझते हैं. घीयर का स्वाद चखने के बाद ही इसका जायका पता चलता है.