मार्कण्डेय पाण्डेय, लखनऊ- कलेक्टर, सूर्यास्त कानून, लगान और स्टील की चौखट जैसे मनहूस शब्दों को भारतीय जनजीवन भूल ही चुका है। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ये शब्द ब्रिटानिया हूकूमत के जुल्म की याद दिलाते हैं। उसी हूकूमत की पैदाईश है भारत में इंडियन सिविल सर्विस जिसे बाद में प्रशासनिक सेवा नाम दिया गया। वक्त के साथ स्वतंत्र व जागरुक नागरिकों और कानूनों में हुए बदलाव के बाद सिविल सेवा के चरित्र में भी बदलाव आया है। लेकिन ‘लोकसेवा’ में अपेक्षित बदलाव अब भी देखना बाकी है।
इन लोक सेवकों को भर्ती करने वाले राज्य लोकसेवा आयोगों के हाल बुरे हैं। चाहे पंजाब-हरियाणा हो, बिहार-झारखंड हो या अब उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग दिनोंदिन अपनी प्रतिष्ठा अपने हाथों से ही मिट्टी में मिलाता जा रहा है। सिलसिला मुलायम सिंह यादव सरकार, मायावती सरकार से शुरू हुआ जो अखिलेश यादव सरकार में अपने चरम पर जा पहुंचा।

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अखिलेश यादव सरकार में तो अभ्यर्थियों ने इसका नाम ही बदलकर यादव सेवा आयोग रख दिया था। 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी सरकार आने के बाद उम्मीद की जा रही थी कि भ्रष्टाचारियों की धरपकड़ होगी और आयोग की सुचिता को बरकरार किया जाएगा। लेकिन नतीजा ढ़ाक के तीन पात ही निकला। पिछले सात सालों से यूपी लोक सेवा आयोग की जांच सीबीआई कर रहा है लेकिन जांच के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है कारण कि हम्माम में सब नंगे हैं।
पिछले दिनों लोकसभा चुनावों के तुरंत पहले उत्तर प्रदेश में हुए समीक्षा अधिकारी- सहायक समीक्षा अधिकारी परीक्षा का पेपर लीक हो गया। लिहाजा उत्तरप्रदेश लोक सेवा आयोग को यह परीक्षा रद्द करनी पड़ी। इस परीक्षा में कुल 411 पद थे जिसके लिए 10,76,004 छात्रों ने आवेदन किया था और प्रदेश के 58 जिलों में 2387 केंद्रों पर यह परीक्षा 11 फरवरी को आयोजित की गई थी।

इतना ही नहीं, इस परीक्षा के पहले उत्तर प्रदेश न्यायायिक सेवा सिविल जज जूनियर डिवीजन की परीक्षा का आयोजन किया गया था। इसमें कुल 303 पद थे जिसके लिए 24 मई 2023 को परीक्षा हुई थी। आयोग ने 30 अगस्त 2023 को इसका नतीजा प्रकाशित कर दिया। अब इंटरव्यू होना था। लेकिन इस परीक्षा में शामिल अभ्यर्थी श्रवण पाण्डेय ने मामला हाईकोर्ट में दायर कर दिया। श्रवण पाण्डेय को अपने प्राप्त अंकों पर विश्वास नहीं हुआ। उन्होंने जब सूचना के अधिकार का प्रयाग करके अपनी उत्तर पुस्तिका देखी तो हैरान रह गए। वह उनकी उत्तर पुस्तिका ही थी। उनकी हैंड रायटिंग ही नहीं थी। उनको अंग्रेजी के पेपर में 200 में से महज 47 अंक मिले थे। श्रवण ने अपनी सभी उत्तर पुस्तिकाएं दिखाने की मांग की तो पैर के नीचे से जमीन खिसक गई। कारण कि उनकी हैंड रायटिंग थी ही नहीं, बल्कि हिंदी की उत्तरपुस्तिका में तीन चार पन्ने भी फाड़ दिए गए थे।

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मामला हाईकोर्ट पहुंचा
इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट की शरण ली। उत्तर पुस्तिकाओं में हेरफेर की बात प्रतियोगी छात्रों में फैल गई और छात्र अपनी-अपनी उत्तर पुस्तिकाएं दिखाने की मांग करने लगे। दूसरी तरफ हाईकोर्ट ने भी आयोग को आदेश दिया कि अभ्यर्थी श्रवण पाण्डेय की उत्तर पुस्तिकाएं हाईकोर्ट में पेश की जाएं। इस परीक्षा में कुल 3019 अभ्यर्थी शामिल हुए थे और छह विषयों की 18,042 उत्तर पुस्तिकाएं हैं जो संदेह के घेर में आ चुकी है। आयोग इस बात से इंकार नहीं कर पा रहा है कि गड़बड़ी नहीं हुई है। आयोग की कार्य प्रणाली संदेह के घेरे में आ चुकी है।

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प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अवनीश कुमार पाण्डेय, अभिनव मिश्रा कहते हैं कि आयोग के कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना इस तरह की गड़बड़ी नहीं हो सकती। आयोग अपने भ्रष्ट अधिकारियों और कर्मचारियों पर अंकुश लगा पाने में विफल है। पहले भी गड़बडिय़ां हुई है लेकिन साल 2011 के बाद से यह सिलसिला तेज है। एपीएस और पीसीएस 2011, 2013 और 2015 में हुई धांधली को लेकर सीबीआई करीब 600 पदों की भर्ती की जांच कर रही है। लेकिन सीबीआई की जांच रेंगती हुई गति से हैं जिसे लेकर छात्रों ने कई बार मांग किया कि जल्द जांच पूरी हो जाती तो भ्रष्टाचारियों पर दबाव बनता। लेकिन न जांच पूरी हो रही है, न भ्रष्टाचार रुक रहा है।

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