इस साल साहित्य का नोबेल हंगरी के लेखक लास्जलो क्रास्नाहोरकाई को मिला है। स्वीडिश एकेडमी ने गुरुवार को इसका ऐलान किया। इससे पहले उन्हें 2015 में मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज मिल चुका है। स्वीडिश एकेडमी ने कहा कि लास्जलो की रचनाएं बहुत प्रभावशाली और दूरदर्शी हैं। वे दुनिया में आतंक और डर के बीच भी कला की ताकत को दिखाती हैं। उन्हें 11 मिलियन स्वीडिश क्रोना (10.3 करोड़ रुपए), सोने का मेडल और सर्टिफिकेट मिलेगा। पुरस्कार 10 दिसंबर को स्टॉकहोम में दिए जाएंगे। बता दें कि, लास्जलो को प्रतिष्ठित मैन बुकर अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है।

भारतीय मूल के सलमान रुश्दी चूके

साहित्य की इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में भारतीय मूल के लेखक सलमान रुश्दी का नाम भी चर्चा में था। लेकिन इस बार नोबेल साहित्य पुरस्कार उनकी झोली में नहीं गया। रुश्दी ने पिछले दशकों में विश्व साहित्य को अपनी बहुचर्चित कृतियों से समृद्ध किया है, लेकिन इस बार यह सम्मान उनके हाथ नहीं आया।

Salman Rushdie Receives Prestigious German Peace Prize | Sakshi Education

पुरस्कार की खासियत

नोबेल पुरस्कार के साथ विजेता को बड़ी धनराशि, गोल्ड मेडल और विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त होती है। साहित्य के क्षेत्र में यह सम्मान लेखक के जीवन और कृतित्व का सर्वोच्च सम्मान माना जाता है।लास्जलो क्रास्नाहोरकाई हंगरी के सबसे प्रभावशाली समकालीन लेखकों में से एक हैं। उनकी प्रमुख रचनाओं में “Satantango”, “War and War” और “Seiobo There Below” शामिल हैं। उनका साहित्यिक सफर उनके गहन विचार और अनूठी शैली के कारण विश्वभर में सराहा गया है।इस वर्ष के नोबेल साहित्य पुरस्कार से हंगरी का नाम विश्व साहित्य के मानचित्र पर और भी चमक उठा है। वहीं, सलमान रुश्दी जैसे भारतीय मूल के लेखकों के लिए यह एक चुनौती भी है कि वे और भी उत्कृष्ट कृतियाँ प्रस्तुत करें।

सतांटैंगो लास्जलो क्रास्नाहोरकाई का पहला और सबसे मशहूर उपन्यास है।

लास्जलो की किताबों पर फिल्म बन चुकी है

लास्जलो क्रास्नाहॉर्कई हंगरी के सबसे प्रतिष्ठित समकालीन लेखकों में से एक हैं। उनकी किताबें अक्सर दर्शनात्मक होती हैं, जिनमें मानवता, अराजकता और आधुनिक समाज के संकटों का जिक्र होता है।

लास्जलो क्रास्नाहोरकाई डीप थिंकिंग वाली उदास कहानियां लिखते हैं। साल 1985 में आई ‘सतांटैंगो’ उनकी सबसे मशहूर किताब है। 1994 में इस किताब पर सतांटैंगो नाम से ही 7 घंटे लंबी फिल्म भी बनाई गई थी। इसकी कहानी एक छोटे से गांव और उसके लोगों की मुश्किल जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। इसमें अराजकता, धोखा और मानव स्वभाव की कमजोरियों को दिखाया गया है। इसके अलावा उनकी किताब ‘द मेलांकली ऑफ रेसिस्टेंस’ पर भी फिल्म बन चुकी है।

टैगोर एशिया के पहले लेखक जिन्हें नोबेल मिला

रविंद्रनाथ टैगोर एशिया के पहले ऐसे लेखक थे, जिन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला। यह सम्मान उन्हें 1913 में उनकी मशहूर किताब गीतांजलि के लिए दिया गया था। यह किताब कविताओं का संग्रह है, जिसमें टैगोर ने जीवन, प्रकृति और ईश्वर के प्रति अपनी गहरी भावनाओं को आसान और सुंदर शब्दों में लिखा है। यह पहली बार था जब किसी गैर-यूरोपीय को साहित्य का नोबेल मिला था। स्वीडिश एकेडमी ने उनकी रचनाओं को गहरी भावनाओं और सुंदर भाषा वाला बताया था।

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