अवैध संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि पति पत्नी का मालिक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है. महिला को पुरुष की तरह सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता.
नई दिल्ली: अवैध संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि पति पत्नी का मालिक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि महिला के सम्मान के खिलाफ आचरण गलत है. महिला को पुरुष की तरह सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता. महिला से असम्मान का व्यवहार असंवैधानिक है. कोर्ट ने कहा कि अवैध संबंध तलाक का आधार बन सकता है लेकिन अपराध नहीं हो सकता. सुप्रीम कोर्ट धारा 497 को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाते हुए यह कहा. धारा 497 में किसी दूसरी शादीशुदा महिला से संबंधों पर केवल पुरुष को दोषी माना जाता है.
प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने आठ अगस्त को अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद के जिरह पूरी करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले में पीठ ने एक अगस्त से छह दिनों तक सुनवाई की थी। इस पीठ में न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, ए एम खानविलकर, डी वाई चंद्रचूड और इंदु मल्होत्रा भी शामिल हैं.
केंद्र सरकार ने व्यभिचार पर आपराधिक कानून को बरकरार रखने का पक्ष लेते हुए कहा था कि यह एक गलत चीज है जिससे जीवनसाथी, बच्चों और परिवार पर असर पड़ता है. इस मामले पर सुनवाई के दौरान संविधान बेंच की एकमात्र महिला जज जस्टिस इंदू मल्होत्रा ने पूछा था कि क्या पत्नी के साथ एक संपत्ति की तरह व्यवहार होना चाहिए. सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि ये आश्चर्च है कि अगर एक अविवाहित पुरुष किसी विवाहित महिला के साथ यौन संबंध बनाता है तो वो व्याभिचार की श्रेणी में नहीं आता है.
उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि शादी के बाद दोनों पक्ष शादी की मर्यादा को बनाए रखने के लिए बराबर के जिम्मेदार हैं. न्यायालय ने कहा था कि विवाहित महिला अगर अपने पति के अलावा किसी विवाहित पुरुष के साथ यौन संबंध बनाती है तो उसके लिए केवल पुरुष को ही क्यों सजा दी जाए? क्योंकि इसमें दोनों बराबर के भागीदार हैं.
उच्चतम न्यायालय ने पूछा था कि कई मामलों में जब महिला अपने पति से अलग रह रही है तो वो दूसरे पुरुष के साथ यौन गतिविधियों में शामिल होती है, तो क्या उसके पति की शिकायत पर महिला के खिलाफ व्याभिचार का अपराध कायम होता है.