सभी काम में बाधा आना, सफलता ना मिलना, लगातार कोई ना कोई परेशानी या कष्ट का बना रहना ही दुर्भाग्य है. यदि किसी जन्मांग में दुर्भाग्य कि स्थिति बन रही हो तो संघर्ष तो करना ही पड़ता है, किन्तु सुख या शांति कि प्राप्ति नहीं होती और अपने भी साथ नहीं देते. किस प्रकार की विसंगति तथा अवरोध उस व्यक्ति के जीवन को आक्रांत करेगी, यह तथ्य ग्रहों की जन्मांग में स्थिति पर निर्भर करती है.

जिसमें संतानहीनता, पारिवारिक विसंगतियां, कलहपूर्ण दांपत्य जीवन, आर्थिक विषमता, आकस्मिक धनहानि, स्वास्थ्य, निरंतर अथवा असाध्य व्याधि से पीड़ा, व्यवसाय तथा व्यापार में अवनति या हानि या प्रगति में अवरोध, सभी प्रकार के कार्यो में विलंब, जिसमें शिक्षा, संतान प्राप्ति, उन्नति, विवाह आदि में विलंब का कारण भी अष्टम या भाग्य स्थान पर राहु या इन स्थानों या इन स्थानों के ग्रहों पर राहु का प्रभाव के कारण संभव है.

कष्ट शमन हेतु किसी विद्धान आचार्य द्वारा होने वाली हानि का क्षेत्र जानकर उस से संबंधित शांति विधिपूर्वक किया जाना जिसमें विषेषकर रूद्राभिषेक, नागबलि-नारायण बलि आदि का विधान एवं राहु से संबंधित दान एवं मंत्रों के उपचार द्वारा दोष को दूर किया जा सकता है. इसके अलावा दत्तात्रेय मन्त्र जाप, सूक्ष्म जीवों कि सेवा करना साथ ही दीपदान करना चाहिए. इसके लिए पीपल के वृक्ष में तिल के तेल का दीपक जलाकर चीटियों के लिए आता शक्कर का भोग निकलना चाहिए.